अमन शुक्ला. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन को लेकर अब दोनों पार्टियों के प्रमुख आमने सामने आ गए हैं. गठबंधन के सफल ना होने को लेकर दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. इस आरोप का आधार फोन कॉल बना हुआ है. एक तरफ मायावती कहती हैं कि सपा प्रमुख ने मेरा फोन का जवाब देना बंद कर दिया था. तो दूसरी तरफ अखिलेश इस बात को बहुत छोटा बता रहे हैं. ये पहली बार नहीं था जब सपा-बसपा में गठबंध हुआ था. 2019 से पहले 1993 में भी प्रदेश का राजनीतिक रुख बदलने के लिए दोनों पार्टियां साथ आई थीं. लेकिन इन दोनों की साझेदारी टिक नहीं पाई. अब यहां पर सवाल ये आता है कि आखिर इतने साल बीत जाने के बाद ये जख्म हरा कैसे हो गया?

दरअसल, शनिवार को अखिलेश यादव ने पार्टी दफ्तर में प्रेसवार्ता की. इस दौरान पत्रकारों के बीच से सपा-बसपा गठबंधन को लेकर आवाज आई. अब चूंकि बात सपा की थी तो प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक भी था. सपा-बसपा गठबंधन से निकली बात फोन कॉल पर आकर अटक गई है. अतीत को समेटे हुए सवालों का एक तीर अखिलेश की तरफ आया. इस पर अखिलेश ने सहज भाव से कह दिया कि जब गठबंधन हुआ तब मैं ये कहता था कि सपा-बसपा का गठबंधन देश की राजनीत को बदलेगा, लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी आई कि वो गठबंधन नहीं चल सका और इसमें बहुत छोटी सी बात निकल आई है कि ‘किसने किसका फोन नहीं उठाया, किसने किसको फोन किया’.

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निशाने पर तीर?

अखिलेश ने तो तीर छोड़ दिया, इसके बाद मायावती की जो प्रतिक्रिया सामने आई उससे यही लगता है कि तीर निशाने पर लगा. अब ‘बबुआ’ के बोल सुनने के बाद भला ‘बुआ’ भी कैसे पीछे रहतीं ? तो मायावती ने भी गठबंधन की असफलता के पीछे फोन नहीं उठाने का राग अलापना शुरु कर दिया. इसका माध्यम बना सोशल मीडिया. बस यही से इस बहस को हवा मिल गई.

मायावती ने X पर अपनी भड़ास निकाली. उन्होंने लंबा चौड़ा पोस्ट करते हुए लिखा है कि ‘लोकसभा चुनाव-2019 में यूपी में BSP के 10 व SP के 5 सीटों पर जीत के बाद गठबंधन टूटने के बारे में मैंने सार्वजनिक तौर पर भी यही कहा कि सपा प्रमुख ने मेरे फोन का भी जवाब देना बंद कर दिया था जिसको लेकर उनके द्वारा अब इतने साल बाद सफाई देना कितना उचित व विश्वसनीय? सोचने वाली बात.’

हित और आत्म-सम्मान सर्वोपरि

मायावती आगे लिखती हैं कि ‘बीएसपी सैद्धान्तिक कारणों से गठबंधन नहीं करती है और अगर बड़े उद्देश्यों को लेकर कभी गठबंधन करती है तो फिर उसके प्रति ईमानदार भी जरूर रहती है. सपा के साथ सन 1993 व 2019 में हुए गठबंधन को निभाने का भरपूर प्रयास किया गया, किन्तु ’बहुजन समाज’ का हित व आत्म-सम्मान सर्वोपरि.’

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मायावती ने बहुजन समाज का मतलब भी बखूबी समझा दिया. उन्होंने आगे लिखा कि ‘बीएसपी जातिवादी संकीर्ण राजनीति के विरुद्ध है. अतः चुनावी स्वार्थ के लिए आपाधापी में गठबंधन करने से अलग हटकर ’बहुजन समाज’ में आपसी भाईचारा बनाकर राजनीतिक शक्ति बनाने का मूवमेन्ट है ताकि बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर का मिशन सत्ता की मास्टर चाबी प्राप्त कर आत्मनिर्भर हो सके.’

अंगूर खट्टे हैं…

शायद इसी को राजनीति कहते हैं. जब तक सब सही चल रहा है तब तक ठीक है. जहां तक अपना हित सध रहा है उसे सधने दो, लेकिन अगर उद्देश्य की पूर्ति ना हो या मन चाहा मुकाम ना मिले तो फिर अंगूर खट्टे हो जाते हैं. ऐसा ही कुछ बुआ और बबुआ के बयान से लग रहा है. जिस तरह गठबंधन सफल ना होने का ठीकरा महज एक फोन कॉल पर फोड़ा जा रहा है, ऐसे में तो यही समझ आता है कि गठबंधन टूटने की वजह कुछ और ही रही होगी, फोन कॉल तो बस एक बहाना है.