ओडिशा के झारसुगुड़ा में बेरोजगारी का ऐसा मंजर सामने आया है की पुरे राज्य में इस मामले ने झकझोर कर दिया है. कड़ाके की ठंड में महज 639 रुपये की दिहाड़ी वाली होमगार्ड नौकरी के लिए हजारों युवाओं का हुजूम उमड़ पड़ा. हैरानी की बात यह है कि जिस पद के लिए योग्यता केवल 5वीं पास थी वहां एमबीए और एमसीए डिग्रीधारी युवा अपनी किस्मत आजमाने पहुंचे थे।

इस घटना के वीडियो वायरल होने के बाद राजनीति भी गरमा गई है. विपक्ष ने इसे भाजपा की ‘डबल इंजन’ सरकार की विफलता बताया है. टीएमसी ने तीखा तंज कसते हुए कहा कि यह कोई फिल्म का सीन नहीं, बल्कि भाजपा शासित राज्य में उच्च शिक्षित युवाओं की बेरोजगारी का कड़वा और नग्न सच है. 639 रुपये के मामूली भत्ते के लिए एमबीए पास युवाओं की यह लंबी कतार राज्य के आर्थिक ढांचे की पोल खोलती है. निजी क्षेत्र में काम न मिलना और सरकारी भर्तियों में लंबी देरी ने युवाओं को उस मोड़ पर खड़ा कर दिया है, जहां वे किसी भी तरह की सुरक्षा के लिए मजबूर हैं.

झारसुगुड़ा और संबलपुर की सड़कों पर हजारों युवाओं का हुजूम किसी जश्न के लिए नहीं, बल्कि मात्र 639 रुपये की दैनिक दिहाड़ी वाली होमगार्ड की नौकरी के लिए उमड़ा था. कड़ाके की ठंड में सुबह 6 बजे से ही युवाओं की कतारें लग गई थीं. यह दृश्य बताता है कि राज्य में सम्मानजनक रोजगार का कितना अभाव है.

होमगार्ड पद के लिए न्यूनतम योग्यता महज पांचवीं पास रखी गई थी. लेकिन परीक्षा देने पहुंचे युवाओं में एमबीए और एमसीए डिग्रीधारी उम्मीदवारों की भरमार थी. अपनी उच्च शिक्षा की डिग्रियों को झोले में दबाए ये युवा एक ऐसी नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जो उनकी योग्यता के सामने किसी मजाक से कम नहीं है.


संबलपुर में उम्मीदवारों की संख्या इतनी अधिक थी कि सामान्य मैदान छोटे पड़ गए. मजबूरन प्रशासन को एक पुरानी हवाई पट्टी (एयरस्ट्रिप) पर परीक्षा आयोजित करनी पड़ी. अनुशासन बनाए रखने और इस भारी भीड़ की निगरानी के लिए पुलिस को ड्रोन कैमरों का सहारा लेना पड़ा, जो बेरोजगारी की विकरालता का साक्ष्य बन गए.

झारसुगुड़ा में सिर्फ 102 पदों के लिए 4,040 युवाओं ने फॉर्म भरा

भर्ती के आंकड़े बताते हैं कि झारसुगुड़ा में सिर्फ 102 पदों के लिए 4,040 युवाओं ने फॉर्म भरा था. वहीं संबलपुर में 187 पदों के लिए 8,000 से ज्यादा उम्मीदवार पहुंचे. हर एक पद के लिए 40 से अधिक शिक्षित युवाओं की दावेदारी यह साबित करती है कि ओडिशा का युवा रोजगार के लिए कितना बेचैन है. जो युवा कभी बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों में ऊंचे पदों पर बैठने का सपना देखते थे, वे आज 20 नंबर के पैराग्राफ और 30 नंबर के सामान्य ज्ञान के पेपर के लिए जमीन पर बैठे नजर आए. यह महज एक परीक्षा नहीं थी, बल्कि हजारों मध्यमवर्गीय परिवारों के टूटते सपनों और आर्थिक तंगी की एक करुण दास्तां थी.