मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने नारायणपुर जिले की विशेष पिछड़ी जनजाति अबूझमाड़िया को विकास की मुख्य धारा में लाने के लिए उन्हें श‍िक्षा के विशेष अवसर मुहैया कराने की जरूरत पर बल दिया.

क्या आप को पता है इस जनजाति का इतिहास…

अबूझमाड़िया जनजाति की उत्पत्ति कैसे हुई है, इस बात का प्रमाण इतिहास में बहुत कम मौजूद है. पं. केदारनाथ ठाकुर के बस्तर भूषण (1908) नामक ग्रंथ के अनुसार माड़िये तीन प्रकार के हैं- वर्तमान में अबूझमाड़िया, कुवाकोंडा हल्के माड़िये और तेलंगे माड़िये (माड़िया अर्थात कोया) ये लोग गोंड हैं. अबूझमाड़िया जैसा की इसके नाम से ही पता चलता है, वो आदिवासी समुदाय जो पर्वतीय भूमि पर निवास करते हो.

ऐसा भी कहा जाता है कि पहली बार अबूझमाड़ शब्द को उपयोग अंग्रेज अफसर कैप्टन सीएलआर गलसफर्ड ने अपनी रिपोर्ट में ‘उबूझमार्ड’ शब्द के रूप में किया था. यह आदिवासी छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के ओरछा की सबसे बड़ी जनजाति है और राज्य की पांच पीवीटीजी( विशेष रूप से कमज़ोर जनजाति) समुदायों में से एक है.

यह भी कहा जाता है कि यह गोंड आदिवासियों की उपजनजाति है, इसलिए इस समुदाय में गोंड बोली का स्थानीय स्वरूप प्रचलित है. माड़िया बोली को गोंड बोली का स्थानीय स्वरूप गियर्सन की लिग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया भाग-IV में कहा गया है.

रहन-सहन

इसके अलावा अबूझमाड़िया आभूषण के रूप में गले में ‘उबिंग’ (सिक्कों की माला), चीप माला, विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक और मोतियों की माला, गिलट के आभूषण, कलाई में कांच और विभिन्न धातुओं की चूड़ियां, अंगूठी, तोड़ा (पैरों में पहनने का आभूषण), पड़ी (पायल) पहनते हैं और त्योहार में नृत्य के लिए युवक-युवती के पास विशेष पोशाक ओर आभूषण होते हैं.

जन्म

अबूझमाड़िया जनजाति के लोग पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं. इसलिए नवजात शिशु के नामकरण के पहले अनेक विधियों से यह ज्ञात करने की कोशिश की जाती है कि नवजात शिशु का जन्म किस पूर्वज के रूप में हुआ है. उसके पिछले जन्म के नाम के आधार पर नवजात शिशु का नाम रखा जाता है.

मृत्यु

मृत्यु होने के बाद अंतिम संस्कार दफनाकर या जलाकर किया जाता है. यदि मृत्यु प्राकृतिक रूप से हुई हो तो शव को दफनाया जाता है और यदि मौत दुर्घटना, बीमारी या वन्य प्राणी के हमले से हुआ हो तो शव को जलाया जाता है.

देवी-देवता

अबूझमाड़िया समुदाय मुख्य स्तर दो प्रकार के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं. तालुर स्तर को स्थानीय स्तर भी कहा जाता है.