मुंबई. अक्षय कुमार की बहुप्रतीक्षित फिल्म पैडमैन 26 जनवरी को रिलीज हो रही है. बेहद नए कांसेप्ट पर बनी ये फिल्म हर तरफ रिलीज होने से पहले ही वाहवाही बटोर रही है. लोग अक्षय को बेहद संवेदनशील मुद्दे पर फिल्म बनाने के लिए खूब सराह रहे हैं. आपको शायद पता न हो कि असल जिंदगी के पैडमैन कौन हैं. जिनसे प्रेरित होकर अक्षय ने बकायदा एक फिल्म बना दी.

अरुणांचलम मुरुगनंथम, हम में से ज्यादातर लोगों ने भले ही इनका नाम न सुना हो लेकिन असली पैडमैन यही हैं. अक्षय कुमार ने इन्हीं से प्रेरणा लेकर अपनी फिल्म पैडमैन का निर्माण किया. तमिलनाडु के कोयंबटूर के स्कूल ड्राप आउट अरुणांचलम ने भारत की गरीब महिलाओं को मामूली लागत पर सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराने को लेकर अपनी लगन का परिचय दिया है. वो अरसे तक लोगों को याद रहेगी.

दरअसल मासिक धर्म के दौरान अरुणांचलम ने देखा कि उनकी पत्नी फटे पुराने कपड़ों का इस्तेमाल सैनिटरी पैड के तौर पर कर रही हैं. उन्होंने जब अपने आसपास इस चीज पर गौर किया तो देखा कि उनके गांव और आसपास रहने वाली महिलाएं फटे-पुराने कपड़े, रेत औऱ राख तक का इस्तेमाल पीरियड्स के दौरान करती हैं. महिलाओँ की इस दिक्कत को दूर करने के लिए उन्होंने मन में ठान ली थी. अरुणांचलम बताते हैं कि जब वे अपनी पत्नी को सैनिटरी पैड देने के लिए स्थानीय दुकान गए तो दुकानदार भौंचक्का रह गया. उसने चुपके से एक अखबार में इन्हें पैड दिया. वो बताते हैं कि दुकानदार ने मुझे ऐसे पैड थमाया जैसे वह मुझे कोई प्रतिबंधित चीज दे रहा हो. मेरी समझ में नहीं आया कि एक बेहद जरुरी चीज को लेकर लोगों की ऐसी दकियानूसी सोच क्यों है.

इस घटना के बाद से अरुणांचलम ने तय कर लिया था कि वे महिलाओं को इस दिक्कत से निजात दिलाएंगे. उन्होंने समाज की परवाह किए बगैर काटन सैनिटरी पैड्स के नमूने बनाने शुरु किए और अपनी पत्नी को उपयोग करने के लिए दिये. उनकी पत्नी को लगा कि अरुणांचलम का दिमाग फिर गया है. उन्होंने अपने पति के शोध में मदद करने से साफ मना कर दिया. अरुणांचलम जब अपनी बहनों के पास ये कहने गए कि वो उनके शोध में मदद करें तो उनकी बहनों ने भी उनके शोध में सहयोग करने से मना कर दिया. उल्टा इनके घरवालों को लगने लगा कि अरुणांचलम पागल हो गए हैं. उन्होंने हार न मानते हुए मेडिकल कालेज की लड़कियों से संपर्क साधा लेकिन उन्होंने भी सहयोग करने से मना कर दिया.

थक-हारकर अरुणांचलम ने ऐसा कदम उठाया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है. उन्होंने सैनिटरी नैपकिन का उपयोग खुद करना शुरु कर दिया. रबर बाल की मदद से एक गर्भाशय बनाया, उसमें जानवर का खून डाला और अपने नितंब के सहारे इसे लगा दिया. कृत्रिम गर्भाशय से अपने अंडर गारमेंट के भीतर रखे सेनिटरी पैड तक एक नली निकाली. कृत्रिम ब्लैडर को दबाकर पीरियड्स के जैसी स्थिति बनाई.

अरुणांचलम के शरीर से जल्द बदबू आनी शुरु हो गई. इस रिसर्च में अक्सर उनके कपड़ों और शरीर पर खून के धब्बे लग जाते थे. जल्द ही गांव वालों ने उनकी हालत देखकर कहना शुरु कर दिया कि या तो वे पागल हो गए हैं या फिर कुछ ऐसा कर रहे हैं जो बेहद खतरनाक है. इसका सबसे बड़ा असर उनकी पत्नी पर पड़ा. वे लोगों की बातें नहीं सह पाई और उन्होंने अरुणांचलम से अलग होना ठीक समझा.

हर तरफ से लोग अरुणांचलम की कोशिशों को निशाने पर ले रहे थे. बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी और अपने मिशन पर लगे रहे. गांव वाले उनको बेइज्जत करते, पत्नी ने उनका साथ छोड़ दिया, दोस्तों ने उनसे दोस्ती खत्म कर ली. यहां तक की उनकी मां ने उनको छोड़ दिया.

करीब तीन सालों तक एक के बाद एक प्रयोगों और सैनिटरी पैड के प्रोटोटाइप्स बनाने के बाद उस सामग्री का पता लगा लिया जिससे परफेक्ट पैड बनाया जा सकता था. यह था हार्ड बोर्ड लेटर, जो उन्हें मिला, बोर्ड में पाइन के पेड़ों से बना काटन था. चूंकि वे एक बुनकर के बेटे थे. इसलिए उन्हें पता था कि पैड को किस तरह बनाना है. अब उनका अगला मिशन ऐसी मशीन का पता लगाना था जिससे ये नैपकिन बनाए जा सकें.

अब अरुणांचलम ने एक ऐसी मशीन भी इजाद कर ली जो सस्ते सैनिटरी पैड बना सके. चूंकि इंपोर्टेड मशीनों की कीमत कई लाख डालर में थी जिसे वे खरीद नहीं सकते थे. उन्होंने अपनी मशीन ईजाद की जिसकी कीमत महज कुछ सौ डालर थी. उन्होंने इन मशीनों को भारत के लगभग सभी राज्यों में भेजा और खास बात ये है कि दुनिया के कई देशों में अरुणांचलम की मशीनें सैनिटरी पैड बना रही हैं. उन्होंने देश में इन मशीनों को छोटे छोटे स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को दिया.

बेहद साफ लफ्जों में अरुणांचलम कहते हैं कि मुझे अंबानी नहीं बनना है. मेरे सामाजिक सरोकार हैं. उनको पूरा करने के लिए मैं ये काम कर रहा हूं. मेरा मकसद देश को 100 फीसदी सेनेटरी पैड इस्तेमाल करने वाले देश के रुप में भारत को बनाना है.

कभी स्कूल ड्राप आउट रहे, इस जुनूनी शख्स को आज मेंस्टुरल मैन की उपाधि दी जाती है. दुनिया के बेहतरीन बिजनेस संस्थान उन्हें लेक्चर देने के लिए बुलाते हैं. अब अक्षय कुमार अरुणांचलम के  इस जुनून पर फिल्म भी बना चुके हैं. जिसका नाम पैडमैन है. हम उम्मीद करते हैं इस असली पैडमैन की कहानी आपको प्रेरणा देने के साथ इसके संघर्ष से भी आपको परिचित कराएगी. भले ही पैडमैन 26 जनवरी को रिलीज हो रही हो लेकिन असल जिंदगी के पैडमैन अरुणांचलम मुरुगनंथम हैं. देश की लाखों महिलाओं की जिंदगी बेहतर बनाने के लिए हमारी तरफ से अरुणांचलम को सलाम.