रायपुर। ‘सामाजिक न्याय-समरसता मुहिम’ संस्था की सदस्य और आदिवासी महिला चिकित्सकों का एक प्रतिनिधि मंडल गुरुवार को राज्यपाल अनुसूईया उइके से मिला। डॉ. रश्मि ठाकुर और डॉ. रश्मि नाईक भुआर्य ने राज्यपाल से मुलाकात कर सरकार के ऊपर आरोप लगाया कि शासन अ.ज.जा. कर्मचारियों की भयानक समस्याओं को लेकर गंभीर नहीं है। उऩ्होंने आरोप लगाया कि वरिष्ठ अधिकारियों और जन-प्रतिनिधियों द्वारा बहुपक्षीय चर्चा और संवैधानिक-विधि के विद्वानों से विमर्श को टाला जा रहा है। आरक्षित प्रवर्ग के कर्मचारी संगठनों अजाक्स और अ.ज.जा. शासकीय सेवक संघ भी परिस्थिति को बैठक बुलाने लायक गंभीर नहीं समझ रहे जबकि समाज में गहरी चिंता और गुस्सा है।
उऩ्होंने कहा कि अविलंब पदोन्नति में आरक्षण पर नीतिगत फ़ैसला लेकर 2003-19 तक की आरक्षित पदोन्नतियां पलटने से बचाने की जरूरत है। महाराष्ट्र मूल की कोष्टि पिछड़ा जाति के फ़र्जी जाति प्रमाण पत्र धारियों की नौकरी को विधि-विरुद्ध संरक्षण देने वाले जीएडी के 3 जून 2020 के परिपत्र को वापस लेने की मांग की गई।
उन्होंने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट की मंशा से लिखित तौर पर अवगत होने के बावजूद विभागीय सचिव ने यह कार्य किया है। जो कि प्रथम दृष्ट्या कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट 1971, प्रिवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट 1988 और एससी-एसटी एट्रोसिटीज एक्ट 1989 (यथा संशोधित की धारा 3 थ) में वर्णित अपराध कारित करने के संदिग्ध हैं।
उऩ्होंने राज्यपाल से कहा कि जनजाति हित विरोधी कार्यपालिक फ़ैसले रोकने और उच्च न्यायालय में धक्का पहुंचने से रोकने के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय में मजबूत व्यक्तित्व के वरिष्ठ संवैधानिक सलाहकार नियुक्त करना होगा।
उन्होंने राज्यपाल को ज्ञापन सौंप कर केन्द्र सरकार से मांग की कि अनुसूचित जनजाति- जाति प्रवर्ग में क्रीमी लेयर फ़िल्टर के औचित्य पर जनमत संग्रह कराया जाए। चार दशक से जारी इस विवाद पर आखिरी सफ़ाई के लिए महामहिम राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 143 के तहत इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय से सलाह के लिए संदर्भ भेजने की मांग किया।