वाराणसी. फ्रांस के माइकल मैक्रोन पैन. 20 दिन पहले फ्रांस से काशी मोक्ष की चाह में आए थ. मगर, उन्हें मुमुक्ष भवन में जगह नहीं मिली. कई दिनों तक काशी की तंग गलियों में भटके रहे. फिर एक दिन बीमार पड़ गए. पुलिस ने उन्हें मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराया. अब वह नौ दिनों से इमरजेंसी वार्ड में भर्ती हैं. माइकल कहना है कि अब मैं दिनभर बेड पर पड़े-पड़े सिर्फ दो नॉवेल पढ़ता हूं. मैं तो यहां मोक्ष के लिए आया था. मगर मौत भी नसीब नहीं हो रही है. यहां मैं जिंदा लाश बनकर रह गया हूं. इसलिए मुझे अब अपने देश जाना है. इसके लिए मुझे 500 डॉलर चाहिए.
जानकारी के मुताबिक माइकल ने बताया कि मेरी उम्र 60 साल है. एक साल पहले पता चला कि मुझे स्टमक कैंसर. वो भी लास्ट स्टेज पर. मैंने काफी इलाज करवाया. मगर कुछ भी आराम नहीं मिला. इसके बाद नॉवेल से मुझे वाराणसी के मुमुक्ष भवन के बारे में पता चला. फिर लोगों ने मुझे बताया कि काशी में जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति मिल जाती है.
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बता दें कि अपने परिवार को अलविदा कह कर आठ अक्टूबर को वाराणसी पहुंचा. मगर यहां पर विदेशी होने के चलते मुझे मुमुक्षु भवन में कमरा नहीं मिला. इसके बाद मैंने मुंशी घाट स्थित एक गेस्ट हाउस में रहा। इसके बाद 21 अक्टूबर मैं बीमार पड़ गया.