सुप्रिया पांडेय, रायपुर। राजधानी के चौक-चौराहों में भीख मांगने वाली कोई नजर आए तो उसे हिकारत की नजर से मत देखिएगा. फटे, मैले-कुचेलै कपड़े में भीख मांगने से उसकी आप औकात का अंदाजा नहीं लगा सकते हैं. हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी ही भिखारी के बारे में, जिसका एक बेटा विदेश में काम करता है, दूसरा बेटा किराना दुकान चलाता है. यही नहीं भिखारी ने खुद के घर को किराए पर दिया हुआ है.

केवल बेनवती की ही बात नहीं है, बल्कि राजधानी में अनेक ऐसे भिखारी हैं, जिनकी माली हालत अच्छी होने के बाद भी इस पेश को अच्छी आमदनी की वजह से नहीं छोड़ रहे हैं. इसका खुलासा समाज कल्याण विभाग के भिखारियों के रेक्स्यू कार्यक्रम के दौरान हुआ, जब भिखारियों को पकड़कर उनसे पूछताछ की गई.

बेनवती ने पकड़े जाने के बाद विभागीय टीम को जानकारी दी, तो सदस्यों की स्थिति का अंदाजा आप लगा सकते हैं. अच्छी माली हालत के बाद भी भीख मांगने पर बेनवती ने बताया कि उसे बीमारी है, जिसकी वजह से वह मंदिर-मस्जिद का चक्कर लगाते रहती है. उसने बताया कि अपना मकान किराए पर दे रखा है, जिससे प्रति महीने 5-6 हजार रुपए किराए के तौर पर मिल जाता है. यही नहीं बैंक अकाउंट में उसके 60 हजार रुपए जमा भी है.

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भिक्षुक पुनर्वास केंद्र की संचालक ममता शर्मा बेनवती बताती हैं कि काफी भिखारी ऐसे मिल रहे हैं जो संपन्न परिवार से हैं. रायपुर के चौक-चौराहों में भीख मांगकर रोजाना हजारों रुपए कमाते हैं. वहीं कुछ संगति में भी भीख मांगने के लिए निकल जाते हैं. इनका काफी बड़ा ग्रुप है. उन्होंने बताया कि समाज कल्याण विभाग द्वारा भिखारियों को रेस्क्यू कर जब इन्हें पुनर्वास केंद्र लाया जाता है, तो लगभग 85 प्रतिशत भिखारी भीख मांगने से इंकार कर देते हैं, जिससे उन्हें जल्द ही छोड़ दे.

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