पुरुषोत्तम पात्र,गरियाबंद. गरियाबंद जिले के सुपेबेड़ा में एक के बाद एक मौतों का सिलसिला जारी है. सुपेबेड़ा में किडनी की बीमारी से 2009 से लेकर अब तक 69 लोगों की मौत हो चुकी है. 12 सौ की आबादी वाले इस गांव में 400 रक्त नमूने लिए गए जिसमें 256 किडनी की बीमारी से पॉजिटिव पाए गए है. यहां तक की मरने वालों के परिजनों को सहायता राशि भी दी जा चुकी है. लेकिन अभी तक इस बीमारी का सही इलाज नहीं निकाला जा सका है.
दरअसल सुपेबेड़ा में किडनी से 14 नवम्बर 2016 को 27 वर्षीय बीरसिंह सोनवानी, फिर 16 नवम्बर को 16 वर्षीय डालिमो की मौत के मामले ने तूल पकड़ा था. जिसके बाद पहले राजधानी की टीम आई, फिर दिल्ली व हैदराबाद से विशेषज्ञयों के दल को जांच के लिए बुलाया गया और पानी, मिट्टी और सम्भावित पीड़ितों के ब्लड का सेम्पल लिया गया.
यहां करीब 12 सौ आबादी वाले गांव में लिए गए 400 रक्त नमूने में 256 किडनी रोग के पॉजिटिव पाए गए. जांच प्रक्रिया आरम्भ होने के बाद डेढ़ साल की अवधि में 22 पीड़ितों की जान जा चुकी थी. 2005 से 2018 तक किडनी बीमारी से मरने वाले परिजनों को संसदीय सचिव स्वेच्छानुदान से 20 हजार और मुख्यमंत्री से 50 -50 हजार की सहायता राशि दी गई. वहीं जिला प्रशासन केवल कागजों में खानापूर्ति कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेती है.
सुपेबेड़ा की पानी में हैवी मेटल पाया गया, जिस वजह से पीने के लिए साफ पानी उपलब्ध कराने गांव में 2 फ्लोराइड, 2 अर्सनिक रिमूवल प्लांट के लिए 90 लाख रुपए खर्च किए गए. पानी की समस्यां ना हो इसलिए 3 किमी दूरी से पाइपलाइन के जरिए साफ पानी की सप्लाई नलों के माध्यम से किया जा रहा है. लेकिन अभी स्तिथि जस की तस बनी हुई है. अब तक इस बीमारी के इलाज नहीं निकाला जा सका है. जिस वजह से लगातार किडनी की बीमारी से मौत होना बदस्तूर जारी है.