रायपुर. छत्तीसगढ़ राज्य अपने खनिज संसाधनों, हरियाली और सांस्कृतिक विविधता के कारण पूरे देश में विशिष्ट पहचान रखता है। रजत जयंती वर्ष (2000–2025) के इस ऐतिहासिक पड़ाव पर जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो साफ दिखाई देता है कि खनन ने राज्य की अर्थव्यवस्था, उद्योग और जनकल्याण योजनाओं को गति देने में केंद्रीय भूमिका निभाई है। खनन सिर्फ़ खनिजों के दोहन का माध्यम नहीं, बल्कि यह राज्य की सामाजिक-आर्थिक संरचना को मजबूत करने का जरिया है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में खनन क्षेत्र ने न सिर्फ नई ऊंचाइयां छुई है बल्कि यह सुनिश्चित किया गया है कि विकास और पर्यावरणीय संतुलन साथ-साथ बने रहे।

छत्तीसगढ़ बन गया खनिज संपदा का गढ़

छत्तीसगढ़ का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 1.35 करोड़ हेक्टेयर है, जिसमें से लगभग 59.82 लाख हेक्टेयर क्षेत्र घने और हरित वनों से आच्छादित है। इन वनों की गोद में कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट, चूना पत्थर, सोना, निकल, क्रोमियम, ग्रेफाइट और अब लिथियम जैसे 28 खनिजों के विशाल भंडार छिपे हैं। खनन की दृष्टि से राज्य का महत्व इतना है कि देश की कुल खनिज उत्पादन में छत्तीसगढ़ का योगदान लगभग 15% तक पहुँच चुका है। यही कारण है कि अब छत्तीसगढ़ को “भारत का मिनरल हब” भी कहा जाने लगा है।

खनन और सकल घरेलू उत्पाद (एसजीडीपी) से मिल रहा छत्तीसगढ़ को बड़ा आर्थिक सहारा

खनन का छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था में योगदान देश के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत ज़्यादा है।राज्य के एसजीडीपी में योगदान 9.38% है । राज्य के कुल आय में खनिज राजस्व का योगदान लगभग 23% है। खनिज राजस्व में 2000 से 2025 के बीच 30 गुना वृद्धि हुई है। स्पष्ट है कि खनिज राजस्व ने न केवल राज्य की आय बढ़ाई, बल्कि महतारी वंदन योजना, कृषक उन्नत योजना, तेंदू पत्ता बोनस, जल जीवन मिशन और बोधघाट बहुउद्देशीय बाँध जैसी परियोजनाओं के सफलता पूर्वक क्रियान्वयन के लिए पूंजी उपलब्ध करा रही है।

खनन और पर्यावरणीय संतुलन के साथ छत्तीसगढ़ का शानदार 25 वर्ष

यह आम धारणा है कि खनन से वन क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लेकिन छत्तीसगढ़ के आँकड़े इस मिथक को तोड़ रहे हैं। 1980 से अब तक 28,700 हेक्टेयर वन क्षेत्र को खनन के लिए परिवर्तित किया जा चुका है जो राज्य के कुल वन क्षेत्र का मात्र 0.47% है। इनमें से 27 भूमिगत खदानों में 12,783 हेक्टेयर क्षेत्र ज़रूर प्रभावित हुआ है मगर वहाँ पेड़ों की कटाई नहीं की गई। वन क्षेत्र की वास्तविक कटाई मात्र 16,000 हेक्टेयर क्षेत्र (वन क्षेत्र का 0.26%) में हुई।
इसके बावजूद 2017 से 2023 के बीच वन आवरण में वृद्धि 294.75 वर्ग किमी दर्ज की गई है और वृक्ष आवरण में वृद्धि 1809.75 वर्ग किमी हुई।
छत्तीसगढ़ में दूरदर्शिता पूर्वक खनन और वनीकरण साथ-साथ चलाया जा रहा है।

प्रतिपूरक वनरोपण और संरक्षण योजनाएं

खनन क्षेत्र में चरणबद्ध कटाई (5–6% प्रति वर्ष) की नीति अपनाई गई है। साथ ही—कैम्पा कोष में प्रति हेक्टेयर ₹11 से 16 लाख जमा होते हैं।प्रतिपूरक वनरोपण, मृदा संरक्षण, वन्यजीव प्रबंधन (परियोजना लागत का 2%) पर खर्च किया जाता है।प्रभावी रूप से प्रति हेक्टेयर ₹40–50 लाख तक पर्यावरणीय मुआवजा दिया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि खनन से प्रभावित क्षेत्र पुनः हरियाली से आच्छादित हो जाएं।

ई-नीलामी और नये खनिजों की खोज

खनन ब्लॉकों की पारदर्शी ई-नीलामी से राज्य की राजस्व क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।अब तक 44 खनिज ब्लॉक की ई-नीलामी।खनिज : लौह अयस्क, बॉक्साइट, चूना पत्थर, सोना, निकल-क्रोमियम, ग्रेफाइट, ग्लूकोनाइट और लिथियम।भारत का पहला लिथियम ब्लॉक (कोरबा, कटघोरा) छत्तीसगढ़ को मिला।
भविष्य की दिशा
‘नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन’ के तहत 56 परियोजनाओं में से 31 छत्तीसगढ़ में हैं। इससे लिथियम, निकल, ग्रेफाइट और क्रोमियम की खोज और उत्पादन तेज होगा।

रोजगार सृजन में खनन की भूमिका

खनन सिर्फ़ राजस्व नहीं बढ़ाता, यह लोगों के जीवन स्तर को भी बदलता है।प्रत्यक्ष रोजगार : 2 लाख लोग।अप्रत्यक्ष रोजगार : 20 लाख से अधिक। इससे जुड़े उद्योग – इस्पात, सीमेंट, एल्युमीनियम, बिजली, लॉजिस्टिक्स और आधारभूत संरचना।खनन ने ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे उद्योग, परिवहन सेवाएँ, होटलिंग और निर्माण क्षेत्र को भी बल दिया है।

ओडिशा बनाम छत्तीसगढ़ : सीख और चुनौतियां

ओडिशा ने नीलाम किए गए ब्लॉकों का शीघ्र संचालन कर खनन राजस्व को 2018-19 के 10,499 करोड़ से 2024-25 में 45,000 करोड़ तक पहुँचा दिया। छत्तीसगढ़ भी इसी दिशा में अग्रसर है। यदि आवंटित ब्लॉकों का संचालन तेज़ी से शुरू हो, तो आने वाले वर्षों में खनन राजस्व ओडिशा के बराबर या उससे अधिक हो सकता है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने इस दिशा में त्वरित निर्णय और नीति-सुधार शुरू किए हैं।

जनकल्याणकारी योजनाओं को बल

खनन से प्राप्त राजस्व ने राज्य की सामाजिक योजनाओं को आधार दिया है। महतारी वंदन योजना – महिलाओं के उत्थान के लिए आर्थिक सहायता।कृषक उन्नत योजना – किसानों को उन्नत बीज और खाद की उपलब्धता।जल जीवन मिशन – हर घर नल से जल।भूमिहीन कृषि मजदूर कल्याण योजना – ग्रामीण गरीबों के लिए सहायता।बोधघाट बहुउद्देशीय बाँध – 8 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई।इन योजनाओं ने दिखाया कि खनन से मिली पूंजी सीधे जनता तक पहुँच रही है।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का दृष्टिकोण

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कई बार ऐसा कहा है कि “खनन केवल उद्योग का नहीं, बल्कि समाज का आधार है।” उनके नेतृत्व में खनिज ब्लॉकों की नीलामी में पारदर्शिता आई। स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार दिया गया।खनन से प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं का विस्तार किया गया।“सतत विकास” की नीति अपनाते हुए वन संरक्षण और खनन को संतुलित किया गया।
रजत जयंती वर्ष में राज्य की उपलब्धियों और शानदार भविष्य को देखते हुए रजत जयंती वर्ष में गर्व से यह कहा जा सकता है कि
“खनिजों से भरे इस भूभाग ने अब समृद्धि और सतत विकास का संतुलित मार्ग चुन लिया है, और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ नये भारत की ऊर्जा राजधानी बनने की दिशा में अग्रसर है।” मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में खनन क्षेत्र न केवल आर्थिक प्रगति का वाहक है, बल्कि यह हर नागरिक की जीवन गुणवत्ता को सुधारने का साधन भी बन गया है। आने वाले वर्षों में जब लिथियम, निकल और क्रोमियम की परियोजनाएँ मूर्त रूप लेंगी, तब छत्तीसगढ़ “भारत के ऊर्जा संक्रमण” का केंद्र बनेगा।