साजा। छत्तीसगढ़ गठन के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव के बाद से ही सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को 2018 के विधानसभा चुनाव में ब़ड़ा झटका लगा था. कांग्रेस एक झटके में 34 सीटों से 71 सीटों पर पहुंच गई. लेकिन 2018 में आई बदलाव के बयार का धरातल पर कोई असर पड़ा या नहीं. इसका जायजा लेने के लिए लल्लूराम डॉट कॉम प्रदेश के तमाम विधानसभाओं में पहुंचकर जनता के बीच विधायक जी का हिसाब-किताब मांग रहे हैं. आइए जानते हैं कि साजा विधानसभा में बीते साढ़े चार सालों में आए बदलाव को लेकर जनता क्या सोचती है.

विधानसभा का इतिहास

साजा पूरी तरह से कृषि प्रधान क्षेत्र रहा है. साजा के किसान सपन्न किसान माने जाते हैं. साजा को चना उत्पादक क्षेत्र माना जाता है. दलहन फसल के लिए साजा का नाम विश्व प्रसिद्ध है. हालांकि, साजा की एक चर्चा इन दिनों छत्तीसगढ़ और देश में साम्प्रदायिक हिंसा के लिए भी हुई. बिरनपुर में दो समुदायों के बीच खूनी हिंसा ने साजा की छवि को न सिर्फ धूमिल किया, बल्कि एक नई राजनीतिक पृष्ठभूमि को भी तैयार कर दिया है. फिलहाल, साजा में घटित घटना के बाद से छत्तीसगढ़ में यही चर्चा है क्या बिरनपुर की घटना 2023 चुनाव का राजनीतिक मुद्दा बनेगा?

बेमेतरा जिले में कांग्रेस का सबसे मजबूत गढ़ साजा को ही माना जाता है. साजा विधानसभा में कांग्रेस का दबदबा 60 के दशक से रहा है. 1967 में विधानसभा सीट बनने के बाद से हुए चुनाव में कांग्रेस लगातार जीतती रही है. बीच के कुए एक चुनाव छोड़ देें, तो साजा में कांग्रेस और चौबे परिवार का ही वर्चस्व रहा है. वर्तमान विधायक और मंत्री रविन्द्र चौबे के माता-पिता से लेकर भाई तक साजा से विधायक रहे हैं. रविन्द्र चौबे महज 27 साल में विधायक चुनकर मध्यप्रदेश के भोपाल विधानसभा पहुँच गए थे. 1985 से लेकर 2013 तक लगातार 6 बार रविन्द्र चौबे विधायक रहे. 2013 में पहला चुनाव हारे, लेकिन 2018 में पुनः जोरदार वापसी करते हुए 7वीं बार विधायक बने.

बात करें साजा विधानसभा के जातीय समीकरण की तो साहू और लोधी समाज बाहुल्य है. क्षेत्र की करीब 70 फीसदी आबादी साहू और लोधी समाज की है. यही वजह है कि जीत-हार में लोधी समाज की भूमिका अहम रहता है. लोधी समाज में कांग्रेस का दखल अधिक है, वहीं साहू समाज में भाजपा का दखल अधिक है.

विधायक का दावा

विधायक रविन्द्र चौबे का दावा है कि क्षेत्र की जनता की अपेक्षाएं पूरी हुई है. शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हुए. 11 नवीन महाविद्यालय खोले जा रहे हैंं. आटीआई, कृषि, उद्यानिकी महाविद्यालयों की स्थापना के साथ फिशरीज और पॉलेटिक कॉलेज की स्थापना की गई है. प्रदेश में सर्वाधिक 37 नवीन धान खरीदी केंद्र, 10 से अधिक नवीन विद्युत उपकेन्द्र शुरू किए गए. सभी समाजों के लिए सामाजिक भवनों का निर्माण किया गया. अधोसंरचना पर 100 फीसदी काम हुआ है. विधायक का मानना है कि बिरनपुर घटना का कहीं कोई असर नहीं है. भाजपा के लोगों ने साजा में माहौल खराब किया.

विपक्ष का आरोप

पूर्व विधायक लाभचंद बाफना ने दावा किया कि विकास के कार्य अधूरे हैं, जो हुए हैं वो मेरे कार्यकाल के दौरान का है. उन्होंने आरोप लगाया कि साजा में भ्रष्टाचार को बढ़ा है. यही नहीं अपराध बढ़ा है, गुंडागर्दी बढ़ी है. क्षेत्र की जनता के बीच विधायक का खौफ है. बिरनपुर घटना के लिए कांग्रेस जिम्मेदार है. साजा में विकास और भय बड़ा मुद्दा रहेगा.

बिरनपुर की सुलग रही आग

साजा में बिरनपुर की घटना चुनाव में असर डालेगी या नहीं इस पर मतदाता बंटे हुए हैं. मतदाताओं के एक वर्ग का मानना है कि इस घटना का चुनाव पर असर पड़ेगा. विधायक को गांव में प्रभावित पीड़ित परिजनों से मुलाकात करनी चाहिए थी. लोगों का मानना है कि विधायक ने उनकी मांगों को पूरा करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ी. वहीं कुछ इलाकों में सड़क की समस्या की बात ग्रामीणों कहते हैं. वहीं कुछ इलाकों में बिजली की समस्या है.

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