रायपुर। केंद्र सरकार ने सेंट्रल पूल से चावल खरीदने का कोटा 40 लाख मैट्रिक टन से घटाकर 24 लाख मैट्रिक टन कर दिया है. जबकि इसी साल मोदी सरकार ने 40 लाख मैट्रिक टन चावल सेंट्रल पूल से खरीदने की बात कही थी. मोदी सरकार के इस फैसले को लेकर छत्तीसगढ़ में आक्रोश का माहौल है. विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी सरकार का रवैया छत्तीसगढ़ से प्रतिशोध और राज्य सरकार को किसान हित में काम करने से रोकने वाला है. केंद्र किसान के उत्पादन और बाजार को ही खत्म कर देना चाहती हैं. केंद्र सरकार की यह दलित कृषि विरोधी दलील है.
इस निर्णय पर कृषि वैज्ञानिक और किसान नेता डॉ. संकेत ठाकुर ने कहा कि केंद्र सरकार सरकारी धान खरीदी को हर तरह से ख़त्म करना चाहती है. छत्तीसगढ़ के साथ फिर से सौतेला व्यवहार कर रही है. मोदी सरकार का रवैया छत्तीसगढ़ के प्रति प्रतिशोध का है. यह एक बार फिर सामने आ गया है, जबकि पंजाब में ऐसा नहीं हुआ. राजीव गांधी किसान योजना को बोनस मान लिया, जबकि प्रधानमंत्री सम्मान निधि और राजीव गांधी किसान योजना दोनों एक है. क्योंकि दोनों जमीन के आधार पर दिए जा रहे हैं. धान की प्रति एकड़ के हिसाब से पैसा दिया जा रहा है. यदि यह बोनस है, तो वह भी बोनस है. यह केंद्र सरकार को स्वीकार करना होगा. अब यह विवाद अंतरराष्ट्रीय स्तर का है.
उन्होंने आगे कहा कि एक बार फिर छत्तीसगढ़ के किसान बीजेपी के द्वारा छले गए हैं. बीजेपी बोलती कुछ और है, करती कुछ और है. इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. अब बीजेपी अपना विश्वास खो चुकी है. यह साबित हो रहा है कि केंद्र ने जो कृषि कानून लाया है, वो पूरी तरह से सरकार की धान खरीदी पर प्रतिबंध लगाने वाली कानून है. केंद्र सरकार यह नहीं चाहती कि कोई भी राज्य सरकार किसानों की मदद करें. वन नेशन का जो फार्मूला है, यह एक छत्र राज्य का फार्मूला है कि हम जो चाहेंगे वही होगा.
वहीं चार दशक से प्रदेश में जल जंगल किसान और मज़दूरों के हक़ में लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता गौतम बंधोपाध्याय कहते हैं कि केंद्र सरकार की रवैया तीनों कृषि बिल को टिकाए रखने की उनकी जो दलील है, उन दलील की प्रतिक्रिया है. इससे स्पष्ट हो रहा है कि केंद्र सरकार नहीं चाहता कि किसान मजबूत बने. छत्तीसगढ़ सरकार का धान नहीं उठा रही और बारदाना भी नहीं दे रही. आगे चलकर केंद्र बोलेगी की समर्थन मूल्य पर धान खरीदना ही सही नहीं है. केंद्र किसान के उत्पादन और बाजार को ही खत्म कर देना चाहती हैं. केंद्र सरकार की यह दलित कृषि विरोधी दलील है.
उन्होंने कहा कि केंद्र चाहती है कि किसान धान का उत्पादन ही ना करें, वो किसी दूसरे फसल का उत्पादन करें, जिसे खरीदने के लिए व्यापारी बाजार में खड़ा है. इससे किसान और कर्ज में दब जाएगा. सरकार धीरे-धीरे किसान को अपने मकड़जाल में फंसा रही है. कांग्रेस सरकार किसानों को मजबूत करना चाहती है, लेकिन केंद्र संयोजक तरीके से राज्य को परेशान कर रही है. केंद्र और राज्य के रिश्ते हैं, उस पर सवाल खड़े हो रहे हैं. केंद्र सरकार जो कर रही है, वो खुद की नहीं कारपोरेट परस्त केंद्र सरकार की नीति है.
गौतम बंधोपाध्याय ने कहा कि केंद्र सरकार का सिर्फ चार ही एजेंडा है. केंद्र और राज्य सरकार के रिश्ते में दरार, कृषि व्यवस्था के लिए सर प्लस खत्म कर देना, केवल कॉर्पोरेट के इशारे पर कॉन्ट्रैक्ट खेती को बढ़ावा देना और राज्य सरकार को किसान हित में काम करने से रोकने के इरादे से केंद्र सरकार काम कर रही है.