रायपुर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा है कि केवल चंद पूंजीपतियों, जमाखोरों और दलालों को संरक्षण देने वाली भारतीय जनता पार्टी किसान हितैषी होने का ढोंग कर रही है! देश में अधिनायक वादी रवैया अपनाकर कल किसान विरोधी काले कानून पास किए गए! सदस्यों की मांग के बावजूद मत विभाजन के बिना ध्वनि मत से विधेयक का पारित किये जाने से भी बहुत से प्रश्नचिन्ह खड़े हो गए है! मूल सवाल यह है कि महामारी की आपदा के समय राज्य सरकारों किसान संगठनों और सदन में चर्चा के बगैर ऐसे काले कानून क्यों थोपे जा रहे हैं?

एपीएमसी अर्थात कृषि उपज मंडियों में खरीदी की व्यवस्था को नष्ट करने का निर्णय किसान विरोधी होने के साथ ही संविधान के सातवीं अनुसूची के तहत राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण भी है!

आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 क के तहत स्टॉक लिमिट को खत्म करने का निर्णय ना केवल किसान विरोधी है बल्कि आम उपभोक्ताओं के शोषण के लिए जमाखोरों को संरक्षण देने का कुत्सित प्रयास है! धान, गेहूं, तेल, तेल के बीच, आलू, प्याज जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करना मोदी सरकार की किसान और उपभोक्ता विरोधी नीति को प्रमाणित करता है! जमाखोरी की लालच में निश्चित ही चंद पूंजीपतियों द्वारा लाभ की संभावनाओं में बड़े पैमाने पर भंडारण किया जाएगा और इसी नियत से ही विगत बजट सत्र में मोदी सरकार ने रिटेल जैसे सेक्टर में 100% एफडीआई को मंजूरी दी गई है!

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा है कि जो व्यवस्था पूरी दुनिया में फेल हो चुकी है यूरोप और अमेरिका तक में आज हालत यह है कि इसी तरह के किसान विरोधी फैसलों के कारण वहां के 91% किसान दिवालिया हो चुके हैं! इसी तरह का फैसला 2006 में बिहार में नीतीश कुमार सरकार के द्वारा लिया गया और उस दौरान बिहार के किसानों को बड़े-बड़े सपने दिखाए गए कि आप लोगों को मंडी की बाध्यता से मुक्त किया जाता है और निजी व्यापारियों के द्वारा आपको एमएसपी से ज्यादा कीमत मिलने लगेगी पर आज हकीकत यह है कि पूरे देश में सबसे ज्यादा शोषित पीड़ित प्रताड़ित और कर्जदार बिहार का किसान है किसान बिहार में रहा ही नहीं पूरी तरह से बंधुआ मजदूर बन चुका है बिहार का किसान धान और गेहूं 1200 से 1300/- प्रतिक्विंटल से अधिक में नहीं बेच पाता, बिहार का किसान आज अपना कृषि उत्पाद पंजाब और हरियाणा में बेचने मजबूर है, क्योंकि बिहार में apmc पहले ही ख़त्म कर दिया गया है,अब यदि पूरे देश में यही हालत होगी तो देश का किसान कहां जाएगा।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा है कि यदि मोदी सरकार किसान हितेषी है तो मिनिमम सपोर्ट प्राइस को किसानों का कानूनी अधिकार बनाती ! असलियत यह है कि चंद पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए काम करने वाली मोदी सरकार किसान हितैषी होने का केवल ढोंग कर रही है! वास्तव में यदि मोदी सरकार किसानों को जमाखोरों और बिचौलियों के शोषण से मुक्त कराना चाहती तो न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर खरीदी करने वाले बिचौलियों और दलालों पर सक्त कानूनी प्रावधान सुनिश्चित करती लेकिन मोदी सरकार तो किसानों के शोषण के लिये ईस्ट इंडिया कंपनी बनाने में लगी है।