रायपुर। पीसीसी के मीडिया विभाग के चेयरमैन शैलेश नितिन त्रिवेदी ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि देश का किसान और खेत मजदूर सड़कों पर है और सत्ता के नशे में मदमस्त मोदी सरकार उनकी रोजी रोटी छीन खेत खलिहान को पूंजीपतियों के हवाले करने का षडयंत्र कर रही है। कृषि विरोधी तीन काले कानूनों ने समूची मोदी सरकार के ‘सबका साथ, सबका विकास’ के मुखौटे को उतार दिया है। असल में मोदी सरकार का मूलमंत्र है:- किसानों को मात, पूंजीपतियों का साथ!खेत मजदूरों को शोषण, पूंजीपतियों का पोषण! गरीबों का दमन, पूंजीपतियों को नमन!

किसान आंदोलन के चलते कल मोदी सरकार ने आनन-फानन में रबी फसलों, विशेषतः गेहूँ का एमएसपी घोषित किया। एक बार फिर साफ हो गया कि देश के किसानों का आंदोलन और मोदी सरकार पर खेती को खत्म करने के षडयंत्र का इल्ज़ाम बिल्कुल सही है। क्योंकि अब मोदी सरकार एमएसपी की प्रणाली को ही लागत+परिवारिक मजदूरी+जमीन का किराया भी न देकर खत्म करने में लगी है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की 2021-22 की रिपोर्ट से खेती के खिलाफ हो रहे इस षडयंत्र की परतें खुल गई हैं। खेती विरोधी षडयंत्र के महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं:-
1. मोदी का वादा था कि किसान को कृषि लागत + मेहनत + जमीन का किराया (A2+FL+Rent of Land = C2) पर 50 प्रतिशत मुनाफा दिया जाएगा।  कृषि मूल्य आयोग रिपोर्ट 2021-22 ही इसे साफ तौर से झुठला देती है।
2. गेहूँ के 2021-22 के एमएसपी में मात्र 2.6 प्रतिशत वृद्धि ही मोदी सरकार की एमएसपी को खत्म करने व लागत +50 प्रतिशत मुनाफा न देने का सबूत है।
3. कृषि लागत व मूल्य आयोग की 2021-22 की रिपोर्ट ही मोदी सरकार की बेईमानी को उजागर करती है।  रिपोर्ट के पैरा 6.26 में टेबल 6.1, टेबल 5.4 व एनेक्सचर टेबल 5.4 (Annexure A1-A4) का अवलोकन करने से साफ है कि कृषि लागत + फैमिली लेबर + जमीन का किराया (A2+FL) 2021-22 में भी वही रखा गया है, जो 2020-21 में था। मोदी सरकार की बेईमानी का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है। मोदी सरकार व कृषि लागत व मूल्य आयोग के मुताबिक पिछले एक साल में न तो किसान के डीज़ल की कीमत बढ़ी, न कीटनाशक दवाई की कीमत बढ़ी, न बिजली पानी की कीमत बढ़ी, न बीज-खाद की कीमत बढ़ी और न ही ट्रैक्टर तथा अन्य कृषि उपकरणों की कीमत बढ़ी। मोदी सरकार के मुताबिक मजदूरी भी नहीं बढ़ी। इसका सबूत टेबल 5.4 (Annexure A3) है, जहां साल 2020-21 में A2+FL 960 रु. दिखाई गई है। 2021-22 में भी (टेबल 6.1, Annexure A1 एवं टेबल 5.4 Annexure A2) में भी गेहूं की A2+FL 960 रु. दिखाई गई। यही सबसे बड़ी बेईमानी है। उदाहरण के तौर पर पिछले साल डीज़ल की कीमत 65 रु. लीटर थी, जो आज बढ़कर 71.28 रु. हो गई है और ज्यादातर समय 80 रु. लीटर रही है। अगर 100 लीटर डीज़ल प्रति एकड़ भी इस्तेमाल हो, तो केवल इसमें 1000 रु. प्रति एकड़ का इजाफा हुआ है। कीटनाशक दवाई की कीमतों में 20 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है। यही हालात बीज, खाद, बिजली, पानी इत्यादि की है। मतलब साफ है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को भी बंधक बना किसान को धोखा दिया जाए। अगर मोदी जी का लागत+50 प्रतिशत का फॉर्मूला लगाएं, तो 2020-21 की कीमतों पर भी गेहूँ का एमएसपी 2200 रु. प्रति क्विंटल होना चाहिए।
4. यही नहीं, सीएसीपी की रिपोर्ट खुद कहती है कि कई राज्यों में 2021-22 के लागत मूल्य (A2+FL) से असली लागत कहीं अधिक है। उदाहरण के तौर पर गेहूँ के लिए A2+FL 2021-22 में 960 रु. प्रति क्विंटल दर्शाया गया है, जबकि सीएसीपी की रिपोर्ट खुद कह रही है कि उत्तर प्रदेश में यह 1033 रु. प्रति क्विंटल है और महाराष्ट्र में 1916 रु. प्रति क्विंटल। गुजरात और छत्तीसगढ़ में 1204 और 1226 रु. क्विंटल लागत बताई गई है।
5. सीएसीपी की खुद की रिपोर्ट में जौ की फसल की लागत (A2+FL) 971 रु. 2021-22 में है। और साल 2020-21 में भी यही लागत बताई गई थी। सीएसीपी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हालांकि लागत 971 रु. दिखाई गई है पर हिमाचल प्रदेश आदि में इसकी लागत 1645 रु. क्विंटल आती है।
6. चने की फसल की 2021-22 में लागत 2866 रु. दिखाई गई है। 2020-21 में भी लागत 2866 रु. प्रति क्विंटल दिखाई गई।
यही नहीं, सीएसीपी की रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र में चने की असली लागत 3379 रु. आती है और कर्नाटक में 3428 रु. प्रति क्विंटल आती है।
7. मसूर दाल का लागत मूल्य 2021-22 में 2864 रु. प्रति क्विंटल बताया गया है। 2020-21 में भी यही मूल्य बताया गया था।
यही नहीं, सीएसीपी की इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में मसूर दाल की लागत 2864 रु. प्रति क्विंटल नहीं, बल्कि 3489 रु. प्रति क्विंटल आती है।
8. यही हालत सरसों और रेप सीड की फसल की एमएसपी की है। मोदी सरकार के मुताबिक रेप सीड की उत्पाद लागत (A2+FL) 2415 रु. है। परंतु 2415 रु. साल 2021-22 में है। पर साल 2020-21 में भी लागत 2415 रु. ही दिखाई गई है।
यही नहीं, सीएसीपी की रिपोर्ट के मुताबिक असम में यह लागत 4586 रु. प्रति क्विंटल है, पश्चिम बंगाल में लागत 3257 रु. प्रति क्विंटल, गुजरात में 2344 रु. प्रति क्विंटल व उत्तर प्रदेश में 2530 रु. प्रति क्विंटल है।
उपरोक्त तथ्यों से साफ है कि मोदी सरकार ने कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को भी पंगु बना दिया है। अब सीएसीपी का होना या न होना बेमाने हो गया है। क्योंकि वो किसान की कीमत का निर्णय करने में असक्षम हैं, व मोदी सरकार के आदेशों पर दस्तखत करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। साफ है कि अब किसान खेत मजदूर के इस संघर्ष को निर्णायक मोड़ पर ले जाना पड़ेगा।