Modi-Putin-Jinping Friendship & World Politics: चीन के तियानजीन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान दुनिया को नया वर्ल्ड ऑर्डर देखने को मिला। SCO Summit में मोदी-पुतिन-जिनपिंग की दोस्ती की जबरदस्त कमिस्ट्री को पूरी दुनिया ने देखा। पीएम नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन गर्मजोशी से मिले। भारत-चीन-रूस का यह नया अवतार विश्व राजनीति में होने वाले बदलाव की तरफ इशारा कर रहे हैं। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की बेचैनी बढ़ाना वाला है। इस कदम से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकियों और अमेरिकी दादागीरी (US Hegemonism) खत्म हो सकता है।

बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप जिस बेलगाम तरीके से भारत समेत दुनिया के बाकी देशों पर टैरिफ लगा रहे हैं। उससे कई देश अमेरिका की नीतियों से नाराज हैं। भारत भी अमेरिका की नीतियों से परेशान होकर चीन पहुंचा है।

दुनिया में डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए एक नया वित्तीय ढांचा तैयार करने की कोशिश की जा रही है। भारत, रूस और चीन की यह दोस्ती दुनिया में एक नया पावर सेंटर बना सकती है, जो अमेरिका और उसके सहयोगियों से अलग होगा। यह सब दुनिया में शक्ति संतुलन को बदलने का काम कर रहा है। न सिर्फ SCO बल्कि ब्रिक्स को मजबूत करके भी ये तीनों देश अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती दे सकते हैं।

BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) और SCO (शंघाई सहयोग संगठन) दोनों ही संगठन वक्त के साथ ताकतवर हो रहे हैं। दोनों संगठनों का मकसद अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती देना है। अमेरिका की टैरिफ नीतियों ने इन देशों को और करीब लाकर खड़ा कर दिया है। हाल के वर्षों में ब्रिक्स एक बड़ा आर्थिक संगठन बनकर उभर रहा है, जिसकी अर्थव्यवस्था 20 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा है। रूस और चीन मिलकर इसे और मजबूत बनाने में लगे हैं। ब्रिक्स देश अब वैश्विक अर्थव्यवस्था के एक-चौथाई से ज़्यादा और दुनिया की लगभग आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। ब्रिक्स देशों की साझा जीडीपी ग्रोथ पिछले साल चार फीसदी रही थी जबकि वैश्विक जीडीपी ग्रोथ का औसत तीन फीसदी के करीब था। वैश्विक अर्थव्यवस्था का करीब 40 फीसदी हिस्सा ब्रिक्स देशों के हिस्से आता है, जो कि इस साल एक फीसदी बढ़ने का अनुमान है।

डॉलर को चुनौती

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और वर्ल्ड बैंक में सुधार की बात कही है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ देश पैसे को ‘नियो कॉलोनियलिज्म’ यानी ‘नव उपनिवेशवाद’ के हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। उनका इशारा साफ तौर पर अमेरिका की तरफ था। रूस और चीन एक-दूसरे के साथ रूबल और युआन में व्यापार बढ़ा रहे हैं। दोनों बड़ी अर्थव्यवस्थाएं दुनिया को एक नया वित्तीय विकल्प देना चाहती हैं। अगर ये देश अपनी एक साझा मुद्रा बना लेते हैं, तो यह डॉलर के प्रभुत्व के लिए बहुत बड़ी चुनौती साबित होगा।

भारत की भूमिका और चुनौतियां

साल 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद रिश्ते ठंडे पड़े हैं. लेकिन पीएम मोदी और जिनपिंग के बीच हालिया मुलाकात में तनाव कम करने पर बातचीत हुई है। पीएम मोदी ने रविवार को चीन राष्ट्रपति से मुलाकात में रिश्तों को पटरी पर लाने की पहल का स्वागत किया। उन्होंने पिछले साल रूस के कजान में हुई वार्ता को अहम बताया, जिसके बाद बॉर्डर पर डिसइंगेजमेंट हुआ, मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू हुई और अब दोनों देश डायरेक्ट फ्लाइट शुरू करने की तैयारी में हैं। पीएम मोदी ने जिनपिंग से मुलाकात में रविवार को आपसी सम्मान, परस्पर विश्वास और संवेदनशीलता के आधार पर दोनों देशों के रिश्तों को मजबूती देने की बात कही।

नए वर्ल्ड ऑर्डर से क्या-क्या बदलेगा?

मोदी-पुतिन-जिनपिंग की दोस्ती और SCO-BRICS की बढ़ती ताकत से ग्लोबल ऑर्डर पूरी तरह बदल सकता है। भारत और चीन मिलकर अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने की रणनीति बना रहे हैं। SCO और BRICS के जरिए वैकल्पिक ट्रेड कॉरिडोर और पेमेंट सिस्टम विकसित किए जा रहे हैं, इससे अमेरिकी डॉलर को चुनौती मिलना तय है। भारत और चीन जैसे देश रेयर अर्थ मेटल्स और अन्य संसाधनों की सप्लाई में सहयोग बढ़ा रहे हैं, जो वैश्विक सप्लाई चेन को लचीला बनाएगा। SCO और BRICS के जरिए भारत, चीन और रूस एक ऐसे वर्ल्ड ऑर्डर को बढ़ावा दे रहे हैं, जहां कोई एक देश हावी न हो। भारत अपनी नीतियों और रणनीतिक स्वायत्तता के साथ, ग्लोबल साउथ का एक प्रमुख नेता बनकर उभर रहा है।

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