रायपुर. छत्तीसगढ़ में स्कूल मॉनिटरिंग सिस्टम निष्क्रिय है. सरकार की योजना निचले स्तर तक नहीं पहुंच पा रही. स्कूलों में ड्राप आउट बढ़ रहा है, जिसकी वजह से स्कूल बंद हो रहे हैं. इसका सबसे ज्यादा असर आदिवासियों पर हो रहा है. यह बात शिक्षा के अधिकार के क्षेत्र में सक्रिय आरटीई फोरम अलायन्स फ़ॉर राइट टू एजुकेशन और सीएसीएल के वक्ताओं ने कही.

पत्रकार वार्ता के दौरान मौजूद 6 राज्यों के प्रतिनिधियों में शामिल सुधीर पाल ने ‘असर’ रिपोर्ट के हवाला से बताया कि  34 % बच्चों को पांचवी पंहुचने के बाद भी हिंदी का अक्षर पढ़ने को नहीं आता, 6-14 साल तक के 5% बच्चों ने स्कूलों में प्रवेश नहीं लिया है. उन्होंने कहा कि सबसे ज़्यादा संसधान के बाद भी छत्तीसगढ़ के लोग हासिए पर हैं. उन्होंने आरटीई कानून को 18 साल तक के बच्चों पर लागू करने की वकालत करते हुए 15 से 18 वर्ष की अवधि को भविष्य के लिए अहम बताया. 2018 में 57 बच्चों पर एक टीचर था, वहीं मिड डे मील 91 प्रतिशत स्कूलों में ही बांटा जा रहा है.

पत्रकार वार्ता के दौरान बताया कि 100 दिन शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले तीनों नेटवर्क राष्ट्रीय स्तर पर ट्रेवल जोन के 6 राज्यों में शिक्षा को लेकर अभियान शुरू किया है.  यह 100 लोकसभा क्षेत्र में चलाया जाएगा, जिसमें कैसे शिक्षा के अधिकार को मुद्दा बनाया जाए, इसके प्रति लोगों को जागरूक करेंगे. पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधि ने बताया कि उनके प्रांत में सबसे ज्यादा बच्चों को ट्रेफिकिंग होती है. महज 200 रुपए में बच्चों को बेच दिया जाता है.

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