Moody’s Warning on US Trans-Shipment: नई दिल्ली. अमेरिकी सरकार के हालिया कदम से भारत और एशिया के कई देशों की कंपनियों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. अमेरिकी रेटिंग एजेंसी Moody’s ने चेतावनी दी है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए 40% ट्रांस-शिपमेंट टैरिफ (Trans-Shipment Tariff) से भारतीय और आसियान (ASEAN) देशों की कंपनियों को भारी नुकसान हो सकता है. खासतौर पर मशीनरी, इलेक्ट्रिकल उपकरण और सेमीकंडक्टर सेक्टर पर इसका सीधा असर देखने को मिल सकता है.
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Moody’s Warning on US Trans-Shipment
US क्या है अमेरिका का नया ट्रांस-शिपमेंट टैरिफ?
दरअसल, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 31 जुलाई को घोषणा की थी कि वे उन वस्तुओं पर 40% का अतिरिक्त शुल्क लगाएंगे जो “तीसरे देश के रास्ते” अमेरिका भेजी जाती हैं. इसका मतलब यह है कि अगर कोई सामान किसी तीसरे देश के जरिए अमेरिका पहुंचता है ताकि आयात शुल्क से बचा जा सके, तो उस पर अब भारी टैरिफ लगेगा.
यह नया टैक्स मौजूदा देश-स्तरीय शुल्कों के ऊपर लागू होगा, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार करने वाली कंपनियों के लिए लागत और अनुपालन दोनों बढ़ जाएंगे.
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Moody’s की रिपोर्ट में क्या कहा गया है? (Moody’s Warning on US Trans-Shipment)
मूडीज ने अपनी “एशिया-प्रशांत व्यापार पर असर” शीर्षक रिपोर्ट में कहा है कि अभी यह साफ नहीं है कि ट्रंप प्रशासन “ट्रांस-शिपमेंट” को कैसे परिभाषित करेगा. अगर यह परिभाषा सीमित रखी जाती है और केवल उन वस्तुओं पर लागू होती है जो चीन में बनी हैं और हल्के प्रोसेसिंग या री-लेबलिंग के बाद दूसरे देशों से अमेरिका भेजी जाती हैं, तो इसका असर बहुत बड़ा नहीं होगा.
लेकिन अगर अमेरिका इसकी परिभाषा को बहुत व्यापक बनाता है और उन सभी वस्तुओं को भी शामिल करता है जिनमें चीनी सामग्री का कोई भी हिस्सा मौजूद है, तो इसका असर बहुत गहरा होगा.
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भारतीय कंपनियों पर क्या असर पड़ सकता है?
भारत की कई इंडस्ट्रीज, खासकर मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल उपकरण, कंज्यूमर ऑप्टिक्स और सेमीकंडक्टर, चीन से आयातित कच्चे माल पर निर्भर हैं. ऐसे में अगर अमेरिका चीनी घटकों वाले उत्पादों को भी ट्रांस-शिपमेंट की श्रेणी में लाता है, तो भारतीय कंपनियों के लिए एक्सपोर्ट करना महंगा और जटिल हो जाएगा.
Moody’s का कहना है कि कई कंपनियों को अब अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए यह साबित करना पड़ेगा कि उनके उत्पाद “महत्वपूर्ण रूप से बदले” गए हैं. यानी उन्हें उत्पादन प्रक्रियाओं में अतिरिक्त बदलाव और सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया से गुजरना होगा. इससे समय, लागत और प्रशासनिक दबाव, तीनों में बढ़ोतरी होगी.
आसियान देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए भी खतरा (Moody’s Warning on US Trans-Shipment)
Moody’s ने चेतावनी दी है कि ट्रांस-शिपमेंट शुल्क से जुड़ी अस्पष्टता न सिर्फ भारत, बल्कि थाईलैंड, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे आसियान देशों के लिए भी खतरा है. इन देशों की अर्थव्यवस्था काफी हद तक मध्यवर्ती उत्पादों के निर्यात पर निर्भर करती है.
रिपोर्ट के मुताबिक, अगर अमेरिकी परिभाषा ज्यादा सख्त रही, तो पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र की सप्लाई चेन प्रभावित हो सकती है, जिससे वैश्विक व्यापार की रफ्तार धीमी पड़ जाएगी.
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एक्सपोर्टर्स के सामने बड़ी चुनौती
Moody’s ने कहा है कि अब कंपनियों को अपने हर निर्यातित प्रोडक्ट के लिए “सर्टिफिकेशन ऑफ ओरिजिन” यानी उत्पाद के मूल स्थान का प्रमाण देना पड़ सकता है. इसका मतलब है कि उन्हें साबित करना होगा कि उनके उत्पाद किसी तीसरे देश से होकर केवल गुजरे हैं, न कि उन्हें “री-पैक” या “री-लेबल” किया गया है.
यह प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली होगी, जिससे खासकर छोटे और मध्यम आकार के निर्यातकों (MSMEs) के लिए अनुपालन का बोझ काफी बढ़ सकता है.
वैश्विक व्यापार पर दबाव बढ़ेगा (Moody’s Warning on US Trans-Shipment)
Moody’s ने स्पष्ट कहा है कि यदि यह नीति बड़े स्तर पर लागू की जाती है, तो इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बाधा, भारत और आसियान की आर्थिक वृद्धि में गिरावट, और कंपनियों की लाभप्रदता में कमी देखने को मिल सकती है.
अमेरिका का यह कदम मूल रूप से चीन को निशाना बनाता है, लेकिन इसका “साइड इफेक्ट” पूरे एशिया में महसूस किया जा सकता है, और भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा.
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