नई दिल्ली. उत्तरपश्चिम अफ्रीका के मारितुआना के दूरस्थ इलाके में मिले इस 5.5 किलो पत्थर के टुकड़े की कीमत जानकर आप चौंक जाएंगे. पत्थर की नीलामी करने वालों ने साढ़े तीन करोड़ रुपए मिलने की उम्मीद जताई थी, लेकिन उम्मीद से कहीं ज्यादा बोली लगाने वाले ने 4 करोड़ 48 लाख रुपए में पत्थर को खरीद लिया.
चांद से गिरा सबसे बड़ा टुकड़ा
आप समझ ही गए होंगे कि बेचा गया पत्थर खास है. दरअसल, अमरीका के बोस्टर शहर की कंपनी आरआर ऑक्शन द्वारा बेचा गया पत्थर चांद से गिरे एक उल्कापिंड (meteorite) का एक हिस्सा है. इस उल्कापिंड के टुकड़े की खासयित इसका आकार है, जो पृथ्वी पर मिला अब तक का सबसे बड़ा टुकड़ा है, वहीं पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते समय तीव्र तापमान के दबाव को झेलने के बाद इसकी संरचना में भी आया अनोखा बदलाव है. विशेषज्ञों का मानना है यह उल्कापिंड हजारों साल पहले चांद से पृथ्वी पर गिरा होगा. नीलाम किया गया टुकड़ा उल्कापिंड के छह हिस्से में से एक है.
खास होते हैं उल्कापिंड
आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं, उन्हें उल्का (meteor) और साधारण बोलचाल में ‘टूटते हुए तारे’ अथवा ‘लूका’ कहते हैं. उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (meteorite) कहते हैं. प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत अल्प होती है. वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे आकाश में विचरते हुए विभिन्न ग्रहों इत्यादि के संगठन और संरचना (स्ट्रक्चर) के ज्ञान के प्रत्यक्ष स्रोत केवल ये ही पिंड हैं. इनके अध्ययन से हमें यह भी बोध होता है कि भूमंडलीय वातावरण में आकाश से आए हुए पदार्थ पर क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ होती हैं. इस प्रकार ये पिंड ब्रह्माण्डविद्या और भूविज्ञान के बीच संपर्क स्थापित करते हैं.