रायपुर- छत्तीसगढ़ में रमन सरकार अब तक 75 हजार करोड़ रूपए का धान खरीद चुकी है. ये राशि कितनी बड़ी है, इसका आंकलन इस आधार पर ही किया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ सरकार का एक साल का सालाना बजट करीब इतना ही है. आकाशवाणी पर प्रसारित होने वाले मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह के रमन के गोठ कार्यक्रम में इसकी जानकारी साझा करते हुए उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में खेती और उससे संबंधित व्यवसायों का टर्नओवर 44 हजार करोड़ रूपए तक पहुंच गया है, जिसे साल 2022 तक बढ़ाकर करीब 87 हजार करोड़ तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है.

रमन के गोठ के प्रसारण की इस कड़ी में मुख्यमंत्री डाॅ.रमन सिंह कृषि क्षेत्र में फोकस नजर आए. उन्होंने साल 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लक्ष्य का उल्लेख करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार ने इसके लिए राज्य को तीन अलग-अलग जलवायु क्षेत्र में बांटकर कार्ययोजना तैयार की है. जमीन की विशेषता के अनुरूप किसानों को बीज उपलब्ध कराए गए और प्रशिक्षण भी दिया गया.  मुख्यमंत्री ने कहा कि साल 2003-04 से 2016-17 तक 14 वर्ष में राज्य सरकार ने किसानों से छह करोड़ 91 लाख मीटरिक टन से ज्यादा धान खरीदकर सहकारी समितियों के जरिए उन्हें 75 हजार करोड़ रूपए का भुगतान किया है.  साल 2016-17 में सरकार ने उनसे 69 लाख मीटरिक टन धान खरीदा, जिस पर उन्हें 300 रूपए प्रति क्विंटल की दर से 2100 करोड़ रूपए का बोनस दिया जा रहा है. मुख्यमंत्री ने कहा-बोनस केवल धान के लिए नहीं है, बोनस तेन्दूपत्ता संग्राहकों और गन्ना उत्पादक किसानों को भी दिया जा रहा है. वर्ष 2004 से 2017 तक जहां तेन्दूपत्ता संग्रहण में एक हजार 904 करोड़ रूपए का पारिश्रमिक दिया गया, वहीं उनको वर्ष 2004 से 2015 तक लगभग एक हजार 223 करोड़ रूपए का बोनस भी मिला.  प्रदेश में संचालित चार शक्कर कारखानों की सहकारी समितियों में ढाई लाख से ज्यादा गन्ना उत्पादक किसान सदस्य के रूप में शामिल हैं.  उन्हें 50 रूपए प्रति क्विंटल की दर से बोनस दिया जा रहा है डॉ. रमन सिंह ने कहा-राज्य में जहां-जहां अलग प्रकार की खेती होती है, उन्हें बोनस देने की शुरूआत हमने की है और किसानों की अर्थव्यवस्था में इससे काफी लाभ मैं देख रहा हूं.

मुख्यमंत्री ने किसानों को बताया कि इस वर्ष 2017-18 में खरीदे गए धान का बोनस भी किसानों को दिया जाएगा, जो उन्हें अगले साल मिलेगा.  मुख्यमंत्री ने किसानों को यह खुशखबरी भी दी कि इस बार अगर किसान राज्य की सरकारी समितियों के उपार्जन केन्द्रों में धान बेचेंगे तो उन्हें प्रति क्विंटल के बढ़े हुए समर्थन मूल्य और 300 रूपए बोनस मिलाकर प्रति क्विंटल 1890 रूपए यानी लगभग 1900 रूपए मिलेंगे. उन्होनें कहा-किसान धूप में, गर्मी में बरसात में और ठंड में मेहनत करता है और उसके पसीने की एक-एक बूंद से धान का एक-एक दाना उपजता है. धान के उत्पादन में उनके परिश्रम की कीमत और उसमें जो लागत आती है, किसानों को लगता है कि उन्हें उसके लिए बोनस के रूप में अतिरिक्त राशि मिलनी चाहिए. राज्य सरकार ने उन्हें वर्ष 2013-14 में 2434 करोड़ रूपए का बोनस दिया और वर्ष 2015 में सूखा राहत में लगभग दो हजार करोड़ रूपए की सहायता दी। डॉ. सिंह ने कहा-प्रदेश में इस बार फिर अकाल की छाया है। राज्य सरकार ने 96 तहसीलों को सूखा ग्रस्त घोषित किया है, जहां किसानों को राहत देने के उपाय भी शुरू किए गए हैं। इन परिस्थितियों में जब 2100 करोड़ रूपए का बोनस हमारे किसानों के घर पहुंचेगा तो न सिर्फ इस साल वे दीवाली का त्यौहार खुशी से मना पाएंगे, बल्कि सूखे से लड़ने और आगे की कार्ययोजना बनाने में भी सक्षम होंगे.  मुख्यमंत्री ने कहा-किसानों के पास पैसा आने पर उनके घरों में मांगलिक कार्य होंगे, वे अपने बेटे-बेटियों की शादी कर सकेंगे, जरूरी सामान खरीद सकेंगे और जरूरी निर्माण कार्य भी करवा सकेंगे.  इस प्रकार किसान और गांवों का विकास होगा.  डॉ. रमन सिंह ने अपने रेडियो प्रसारण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मोदी के आशीर्वाद से ही राज्य सरकार को यह निर्णय लेने की शक्ति मिली.  मुख्यमंत्री ने कहा-छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में मुख्य रूप से धान की खेती होती है, लेकिन जब हम दक्षिण और उत्तर की ओर बढ़ते हैं तो सम्पूर्ण बस्तर और सरगुजा संभाग में वहां के ग्रामीणों के लिए लघु वनोपज भी आमदनी का मुख्य जरिया होता है। बस्तर में तेन्दूपत्ता संग्रहण उनकी आमदनी का सबसे बड़ा साधन है।

राज्य में धान की पैदावार में 39 प्रतिशत वृद्धि

मुख्यमंत्री ने कहा-राज्य सरकार ऐसे उपाय कर रही है, जिससे किसानों को आमदनी के अन्य साधन भी मिल सके.  उन्होंने श्रोताओं से कहा-आपको यह जानकार खुशी होगी कि छत्तीसगढ़ धान का कटोरा होने के साथ-साथ अब फलों और सब्जियों का टोकरा भी बन गया है.  सरकार के प्रयासों से दो फसली रकबा पांच लाख हेक्टेयर से बढ़कर दस लाख 50 हजार तक पहुंच गया है.  फसल सघनता 119 प्रतिशत से बढ़कर 137 प्रतिशत हो गई है.  धान के उत्पादन में 39 प्रतिशत, गेहूं के उत्पादन में 24 प्रतिशत और दलहन-तिलहन के उत्पादन में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.  पिछले दस वर्षों में छत्तीसगढ़ में उद्यानिकी फसलों का रकबा दो लाख हेक्टेयर से बढ़कर आठ लाख 31 हजार हेक्टेयर और उत्पादन 17 लाख मीटरिक टन से बढ़कर 91 लाख मीटरिक टन तक पहुंच गया है.  मुख्यमंत्री ने कहा-फसल विविधिकरण (फसल चक्र परिवर्तन) हमारे लिए सिर्फ नारा नहीं, बल्कि राज्य के किसान इसे अपनाते जा रहे हैं.  उद्यानिकी फसलों के रकबे और उत्पादन में जो वृद्धि आप देख रहे हैं, वह अपने-आप में चमत्कृत करने वाली है.  उन्होंने कहा-प्रदेश में उद्यानिकी फसलों को बढ़ावा देने के लिए कृषक उत्पादक संगठन बनाए जा रहे हैं, जिनमें 40 हजार से ज्यादा किसान पंजीकृत हो गए हैं.  उनके लिए बाजार की व्यवस्था भी की जा रही है. राज्य में डेयरी, पशुपालन और मछली पालन को बढ़ावा देने के फलस्वरूप किसानों की आमदनी में भी वृद्धि हो रही है.  मुख्यमंत्री ने रमन के गोठ में कहा – खेती के क्षेत्र में बस्तर में आ रहे परिवर्तन का उल्लेख करते हुए कहा-सहकारिता के जरिए वहां किए जा रहे उपाय काफी सफल हो रहे हैं.  बस्तर अंचल में आठ हजार हेक्टेयर से अधिक रकबे में काजू के पौधे लहलहा रहे हैं और वहां इसका वार्षिक उत्पादन छह हजार मीटरिक टन से ज्यादा हो गया है.  इससे बास्तानार, बकावण्ड, बस्तर, तुरेनार, तोकापाल और दरभा क्षेत्रों में खाली पड़ी जमीन और जंगल को अतिक्रमण से बचाने में भी मदद मिल रही है.  मुख्यमंत्री ने कहा- काजू प्रसंस्करण के लिए बस्तर के ग्राम आसना में सहकारिता के मॉडल के अनुरूप कारखाना लगाया जा रहा है.  इसका संचालन भी स्व-सहायता समूह द्वारा किया जाएगा. आदिवासी परिवारों को स्व-सहायता समूहों के माध्यम से काजू के 300-300 पौधे दिए जा रहे हैं, जो राजस्व और वन विभाग की भूमि पर लगाए जाएंगे.  इससे बस्तर में काजू का कारोबार 35 करोड़ रूपए से ज्यादा का होने का अनुमान है.  केरल, कर्नाटक और गोवा में भी छत्तीसगढ़ के बस्तर के काजू बेचने के लिए अनुबंध की तैयारी की जा रही है.