शाहजहांपुर में मस्जिदों को ढका जा रहा है. शहर की करीब 65 से ज्यादा मस्जिदों को तिरपाल और पन्नी से कवर किया जा रहा है. इसके अलावा सड़कों पर भी मरम्मत का काम किया जा रहा है. ये सारी तैयारियां लाट साहब के जुलूस के लिए हो रही है.

दरअसल, शाहजहांपुर में होली के दिन लाट साहब का जुलूस निकाला जाता है. इसी की तैयारी में शहर ही 67 मस्जिद-मजारों को तिरपाल से ढका जा रहा है. ताकि उन पर होली का रंग ना पड़े. बता दें कि यहां लाट साहब का मतलब अंग्रेजों के शासन के क्रूर अफसर है.

क्या है ये परंपरा ?

इस जुलूस के लिए पहले एक युवक को लाट साहब के रूप में चुना जाता है. फिर उसका चेहरा ढक कर उसे जूते की माला पहनाई जाती है. इसके बाद उसे बैलगाड़ी पर बैठाकर घुमाया जाता है. इसके लिए ही जुलूस के रूट में पड़ने वाले मस्जिद और मजारों को तिरपाल से ढक दिया जाता है.

जुलूस में लाट साहब को पूरी तरह तिरपाल से ढक दिया जाता है. लोग उसे जूते-चप्पल और झाड़ुओं से पीटते हुए नगर में घूमाते हैं. उसके बदले में उसको शराब की बोतलों से लेकर कपड़े और रुपये इनाम के रूप में दिए जाते हैं.

जानिए इस अनोखी होली का इतिहास ?

जानकारों के मुताबिक ये परंपरा शाहजहांपुर के अंतिम नवाब अब्दुल्ला खां ने 1746-47 में शुरू की थी. किले पर दोबारा कब्जा करने के बाद इसकी शुरुआत की गई थी. नवाब ने किला मोहल्ला में एक रंग महल बनवाया था. अब जिसे रंग मोहल्ला के नाम से जाना जाता है. अब्दुल्ला खां वहां पर आकर हर साल होली खेलते थे. तब जुलूस निकाला जाता था, जिसमें हाथी-घोड़े, बैंड बाजा होते थे. तब से क्रम चला आ रहा है.

बाद में भारत में अंग्रेजों का शासन आया. जिसके बाद अंग्रेजों ने जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगा दिया. फिर भी लोगों ने जुलूस निकालना बंद नहीं किया. लेकिन जुलूस के तरीकों में बदलाव कर दिया गया. पहले जो जुलूस उत्सव के रूप में निकाला जाता था, अब उसे अंग्रेजों के विरोध में निकाला जाने लगा. जिसका नाम नवाब साहब के जुलूस की जगह लाट साहब का जुलूस कर दिया गया.