मार्गशीर्ष मास (अगहन माह) की 17 नवंबर को कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से मां अन्नपूर्णा का 17 दिवसीय व्रत शुरू होगा. इस व्रत को करने से घर-परिवार में धन-धान्य की वर्ष भर कमी नहीं होती. भंडार पर भी माता की कृपा बनी रहती है.

क्या है श्री अन्नपूर्णा की पूजा का महत्व

मान्यता है कि जगत शिव और शक्ति का स्वरूप है जहां शिव विश्वेश्वर हैं और उनकी शक्ति मां पार्वती हैं. सृष्टि की रचना काल में पार्वती को ‘माया’ कहा जाता है और पालन के समय वही ‘मां अन्नपूर्णा’ नाम से जानी हैं, अन्न-धन, ऐश्वर्य, आरोग्य और संतान की कामना करने वाले स्त्री-पुरुषों को मां अन्नपूर्णा का व्रत-पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए. Read More – Kitchen Tips : इन टिप्स को अपना कर बनाएं भिंडी की सब्जी, नहीं होगी चिपचिपी …

मिलता है शुभ फल

हर साल एक बार मार्गशीर्ष (अगहन) मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को श्री अन्नपूर्णा षष्ठी का पूजा और व्रत किया जाता है, व्रत अगहन मास में कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से प्रारंभ होकर शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि तक 16 दिन चलता है, लेकिन जिनके ऐसा करना संभव ना हो वे एक दिन में इसका संपूर्ण लाभ पा सकते हैं. सबसे पहले स्नानादि से निवृत्त होकर स्व’छ वस्त्र धारण करके पूजन की सामग्री रख कर रेशमी अथवा साधारण सूत का डोरा लेकर उसमें 17 गांठ लगाएं. मां अन्नपूर्णा की प्रार्थना करें. प्रार्थना के बाद पुरूष दाहिने हाथ तथा स्त्री बाएं हाथ की कलाई में डोरे को धारण कर कथा को सुनें. ध्यान रहे कथा निराहार रह कर ही कहें और सुनें. ऐसा करने से पुत्र, यश, वैभव, लक्ष्मी, धन-धान्य, वाहन, आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. Read More – विदेश में अब भी हिट है Alia Bhatt का गंगूबाई काठियावाड़ी लुक, मलेशिया में हुए फैशन शो में मिस स्टार मलेशिया 2022 ने किया प्रेजेंट …

पूजन सामग्री, मुहूर्त और पूजन विधि

अन्नपूर्णा षष्ठी की पूजा के लिए धूप, दीप, लाल फूल, रोली, हरे धान के चावल, अन्नपूर्णा देवी का चित्र या मूर्ति, रेशमी या साधारण सूत का डोरा, पीपल का पत्ता, सुपारी या ग्वारपाठा, तुलसी का पौधा, धान की बाल का कल्पवृक्ष, अन्न से भरा हुआ पात्र, करछुल, 17 पात्रों में बिना नमक के पकवान और गुड़हल या गुलाब जैसे पुष्पों की आवश्यकता होती है. यह पूजा शाम सूर्यास्त के बाद होती है. सारी सामग्री एकत्रित करके सफेद वस्त्र धारण कर पूजागृह में धान की बाली का कल्पवृक्ष बनाएं और उसके नीचे मां अन्नपूर्णा की मूर्ति सिंहासन या चौकी पर स्थापित कर पूजा करें.