जांजगीर-चांपा. छतीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले के चंद्रपुर की पहाड़ी पर मां चंद्रहासिनी विराजमान है. यह मंदिर सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है. यहां बने पौराणिक व धार्मिक कथाओं की सुंदर झाकियां, लगभग 100 फीट विशालकाय महादेव पार्वती की मूर्ति मां चंद्रहासिनी के दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है.
मां चंद्रहासिनी मंदिर जांजगीर-चांपा से 120 किलोमीटर और रायगढ़ से 30 किलोमीटर दूर चित्रोत्पला गंगा महानदी के तट पर बसे चंद्रपुर की पहाड़ी पर है. मां चंद्रहासिनी और नदी के बीच मां नाथलदाई भी विराजमान हैं. नवरात्रि के मौके पर मां चंद्रहासिनी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. चारों ओर से प्राकृतिक मनमोहक सुंदरता से घिरे चंद्रपुर की खूबसूरती देखने लायक है. कहा जाता है कि मां दुर्गा के 52 शक्तिपीठों में से एक स्वरूप मां चंद्रहासिनी के रूप में विराजित है. पहले यहां बलि प्रथा का प्रचलन था, लेकिन समय के साथ इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.


दीवार पर सिक्का चिपकाते हैं भक्त
मां चंद्रहासिनी मंदिर के ठीक पीछे भक्त सिक्का चिपकाते हैं. ऐसी मान्यता है कि जिसकी मनोकामना मातारानी पूरी करती है उसका सिक्का चिपक जाता है और जिनकी मन्नत अधूरी रहती है उसका सिक्का नीचे गिर जाता है. ऐसी भी मान्यता है कि मां चंद्रहासिनी संतानदायिनी हैं और मां अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती है.
मां ने राजा को दिया था सपना
दूसरी कथा के अनुसार एक बार संबलपुर के राजा चन्द्रहास जंगल में आखेट करने आए थे, तब वो एक जानवर का पीछा करने लगे. इस दौरान जंगल के बहुत दूर तक आ गए.र जैसे ही राजा चन्द्रहास ने जानवर को मारने के लिए धनुष उठाया तब जानवर ने देवी रूप धारण कर लिया और वहां से अंतर्ध्यान हो गईं. उसी रात देवी ने सपने में आकर राजा से कहा कि राजन तुम यहां मेरा मंदिर बनवाओ और अपनी यश कीर्ति बढ़ाओ.
मान्यता के अनुसार देवी के आदेश को मानते हुए राजा चन्द्रहास ने महानदी के तट पर पहाड़ी के ऊपर मां चंद्रहासिनी के मंदिर का निर्माण कराया. साथ ही उन्होंने मां चंद्रहासिनी की छोटी बहन मां नाथलदाई का मंदिर निर्माण नदी के बीच बने टापू पर करवाया. मां नाथलदाई का मंदिर नदी के बीच टापू पर बना है, लेकिन चाहे नदी में कितनी भी बाढ़ हो मां का मंदिर कभी नहीं डूबता.
यहां गिरा मां का बायां कपोल
मान्यता के अनुसार माता सती का बायां कपोल महानदी के पास स्थित पहाड़ी में गिरा, जो आज बाराही मां चंद्रहासिनी मंदिर के रूप में जाना जाता है. मां की नथनी नदी के बीच टापू में जा गिरी, जिसे आज नाथलदाई मंदिर के नाम से जाना जाता है.
बच्चे की बचाई थी जिंदगी
कहा जाता है कि मां चंद्रहासिनी और उनकी छोटी बहन नाथलदाई के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है. मां चंद्रहासिनी और नाथलदाई की एक पौराणिक कथा भी है, जिसमें एक निर्दयी पुलिसवाला अपने छोटे बच्चे को पुल के ऊपर से नदी में फेंक देता है, जिसे मां चंद्रहासनी और नाथलदाई अपने आंचल में रख लेती हैं और मासूम की जान बच जाती है. घटना के बाद से भक्तों की मां के ऊपर श्रद्धा और बढ़ गई. इसके बाद चंद्रपुर में नवरात्र के साथ-साथ साधारण दिन में भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता के दरबार में आकर उनका आशीर्वाद लेते हैं.
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