रतनपुर का महामाया मंदिर केवल आस्था का ही नहीं बल्कि इतिहास और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है. यहां हर पत्थर, हर कथा, और हर परंपरा मां की अद्भुत शक्ति और श्रद्धा की गवाही देती है. यहां आकर भक्तों की न केवल मनोकामनाएं पूरी होती है, बल्कि आध्यात्मिक शांति और अनोखी ऊर्जा का भी अनुभव करते हैं.
वीरेन्द्र गहवई, बिलासपुर। बिलासपुर जिले के रतनपुर की पावन धरती पर विराजमान हैं माँ महामाया. एक ऐसा शक्तिपीठ जहाँ एक साथ महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के रूपों में मां की पूजा की जाती है. रतनपुर में स्थित यह मंदिर श्रद्धा, संस्कृति और शक्ति का अद्भुत संगम है.
यह भी पढ़ें : पॉवर सेंटर : रहस्यमयी चुप्पी…महिला आईएएस कहां?… काला अध्याय…नौकरशाही के तीन वाद….रेत से तेल…सिंडिकेट…- आशीष तिवारी

बिलासपुर जिले में शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर हरे भरे जंगल के बीच बसा है रतनपुर. एक ऐतिहासिक नगर जिसे देवी की नगरी कहा जाता है. यह शहर प्राचीन काल में दक्षिण कौशल यानी की छत्तीसगढ़ की राजधानी हुआ करता था. कल्चुरी वंश के राजा रत्नदेव ने इस शहर को बसाया था, इसीलिए इस शहर का नाम रत्नपुर था. जो आगे चल कर रतनपुर बना.
यहीं विराजमान हैं माँ महामाया— एक ऐसी देवी जिनके दर्शन मात्र से सारे दुखों का नाश होता है. इस मंदिर में श्रद्धालु बड़ी दूर-दूर से आते हैं. न सिर्फ बिलासपुर और छत्तीसगढ़. बल्कि छत्तीसगढ़ से बाहर भी देवी के महिमा के चर्चे अपार हैं. मां की महिमा के बारे में कहा जाता है. कि जो भी व्यक्ति एक बार आकर देवी महामाया के दर्शन कर लेता है. वह बार-बार इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आता रहता है. इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भी इसी बात की पुष्टि करते हैं.
मां महामाया के ऐतिहासिक धाम रतनपुर की यात्रा यहां रक्षक के रूप में स्थापित भैरव बाबा के मंदिर से शुरू होती है. कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन करने के बाद देवी मां के दर्शन करने से मां महामाया के दर्शन का लाभ सौ गुना हो जाता है. यदि कोई श्रद्धालु किसी कारण से भैरव बाबा के मंदिर में पहले दर्शन नहीं कर पाएं. तो देवी मां के दर्शन के बाद भैरव बाबा मंदिर में आना बेहद जरूरी है, इसके बिना रतनपुर की यात्रा अधूरी मानी जाती है.

भैरव बाबा के दर्शन के बाद जब हम देवी के दरबार में पहुंचते हैं. तो यहां मां की अलौकिक दिव्य छवि के दर्शन हमें प्राप्त होते हैं. इस मंदिर में माँ महालक्ष्मी, माँ सरस्वती और माँ महाकाली की पूजा एक साथ होती है. यहां के गर्भगृह में मां महालक्ष्मी और मां महासरस्वती की प्रतिमा प्रत्यक्ष रूप से विराजमान है. वहीं मां महाकाली गुप्त रूप से मंदिर में मौजूद रहती हैं. इनके समग्र स्वरूप को मां महामाया के रूप में पूजा जाता है. त्रिदेवी स्वरूप में यह मंदिर विश्व में अपनी तरह का एकमात्र स्थान माना जाता है.
शक्तिपीठों से जुड़ी पुराणों की कथा के अनुसार. यह स्थान उन 51 स्थलों में से एक है, जहाँ माता सती के अंग गिरे थे. यहाँ माँ का दाहिना स्कंध गिरा था. और तब से ये भूमि देवी शक्ति की उपासना का केंद्र बन गई. नवरात्रि में रतनपुर की छटा अलौकिक होती है. हर भक्त को माँ की दिव्यता को यहां महसूस कर पाता है.
ये मंदिर न सिर्फ धार्मिक, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी रखता है. यहाँ 38 वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है. और नवरात्र में दुनिया भर में सबसे अधिक मनोकामना ज्योति कलश इसी मंदिर में जलाए जाते हैं. इस बार नवरात्र में इनकी संख्या 31 हज़ार से भी अधिक है.
- छत्तीसगढ़ की खबरें पढ़ने यहां क्लिक करें
- लल्लूराम डॉट कॉम की खबरें English में पढ़ने यहां क्लिक करें