Bombay High Court: बच्चें को उसकी मां से दूर रखना भारतीय दंड संहिता के तहत क्रूरता के बराबर है. हाईकोर्ट ने इसे IPC की धारा 498-अ के तहत परिभाषित क्रूरता के समान माना है. बाम्बे हाईकोर्ट (High Court) ने यह फैसला निचली अदालत के आदेश का पालन नहीं करने को लेकर दिया है और जालना (Jalna) की रहने वाली एक महिला के ससुराल वालों के खिलाफ दर्ज कराए गए FIR को रद्द करने से इनकार कर दिया. औरंगाबाद (Aurangabad) में न्यायाधीश न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी (Vibha Kankanwadi) और न्यायमूर्ति रोहित जोशी (Rohit Joshi) की पीठ ने 11 दिसंबर के फैसले में कहा कि निचली अदालत के आदेश के बावजूद महिला की चार साल की बेटी को उससे दूर रखा जा रहा है.
दरअसल एक महिला ने कोर्ट में अपील कर बताया कि उसकी शादी 2019 में हुई और 2020 में उसकी एक बेटी हुई. जिसके बाद पति और उसके परिवार के सदस्यों ने उसके माता-पिता से पैसे मांगना शुरू कर दिया और उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित कर और उसके साथ गाली गलौच भी की . महिला को मई साल 2022 में उसके ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया और उसे अपनी बेटी को साथ नहीं ले जाने दिया, जिसके बाद महिला ने अपनी बेटी की ‘कस्टडी’ के लिए मजिस्ट्रेट के पास आवेदन दिया था.
बता दे कि मजिस्ट्रेट अदालत ने 2023 में पति को बच्चे की कस्टडी मां को सौंपने का आदेश दिया, लेकिन आदेश का पालन नहीं किया गया. महिला द्वारा दर्ज कराए प्राथमिकी को लेकर उसके ससुराल वालों ने हाईकोर्ट में खारिज करने याचिका दायर की थी जिस पर महिला ने बताया कि उन्हे कोर्ट के आदेश के बावजूद उनके बच्चें से नहीं मिलाया गया. अदालत ने कहा, ‘‘चार साल की छोटी बच्ची को उसकी मां से दूर रखना भी मानसिक उत्पीड़न के बराबर है, जो क्रूरता के समान है क्योंकि इससे निश्चित रूप से मां के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचेगा.’’ हाईकोर्ट ने कहा कि ससुराल वालों का ऐसा व्यवहार भारतीय दंड संहिता की धारा 498-अ के तहत परिभाषित ‘क्रूरता’ के समान है. पीठ ने कहा, ‘‘मानसिक उत्पीड़न दिन-प्रतिदिन आज तक जारी है. यह एक गलत काम है.’’ पीठ ने कहा कि हालांकि बच्चा पति के पास था, लेकिन आवेदक उसके ठिकाने की जानकारी छिपा कर उसकी मदद कर रहे थे.
वहीं हाईकोर्ट ने प्राथमिकी खारिज करने को लेकर कहा कि प्राथमिकी रद्द नहीं की जाएगी क्योंकि यह अदालत के हस्तक्षेप के लिए उपयुक्त मामला नहीं है. महिला के ससुर, सास और ननद ने कथित क्रूरता, उत्पीड़न और आपराधिक धमकी के लिए महाराष्ट्र के जालना जिले में उनके खिलाफ दर्ज 2022 की प्राथमिकी रद्द करने की मांग की थी.
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