हृदयेंद्र प्रताप सिंह, रायपुर. रानी मुखर्जी और यशराज फिल्म्स दोनों बेहद साधारण विषयों को असाधारण तरीके से पेश करने के लिए मशहूर हैं. फिल्म एक पेचीदा से ‘टूरेट सिंड्रोम’ से पीड़ित एक लड़की की कहानी है. टूरेट सिंड्रोम एक न्यूरोसाइकियाट्रिक डिसआर्डर है जिससे पीड़ित व्यक्ति को बोलने में दिक्कत होती है. कैसे रानी मुखर्जी उस डिसआर्डर से जूझती हुई अपने सपने को पाने और उसे पूरे करने की कोशिशों में लगी रहती हैं. उस पूरी जर्नी को बेहद सलीके औऱ करीने से फिल्म में दिखाया गया है.

फिल्म की थीम :

इस फिल्म में न सिर्फ डिसआर्डर से संघर्ष करती लड़की की कहानी कही गई है बल्कि देश के मौजूदा एजूकेशन सिस्टम में मौजूद खामियों को बेहद करीने से कुरेदा गया है. इंडिया औऱ भारत के बीच मौजूद फर्क को इस फिल्म में बखूबी दिखाने की कोशिश की गई है.

रानी मुखर्जी ने आखिरी बार फिल्म मर्दानी में अपने शानदार प्रदर्शन से लोगों का दिल जीत लिया था. इस बार भी पूरी फिल्म रानी मुखर्जी के अभिनय के इर्द गिर्द ही टिकी रहती है. यशराज फिल्म्स की मूवीज बेहद कसावट भरी पटकथा औऱ निर्देशन के लिए जानी जाती हैं. एक अंग्रेजी कहावत है ‘नो स्टोन अनटर्न्ड’ यानि कोई भी कमी नहीं छोड़ना. पूरी फिल्म की कहानी बेहद सहज और सरल तरीके से आगे बढ़ती है. बिना वजह की नाटकीयता औऱ ड्रामा के बगैर फिल्म अपनी कहानी कहने में कामयाब रहती है.

स्टोरी लाइन :

सिद्धार्थ मल्होत्रा के निर्देशन में बनी फिल्म में रानी मुखर्जी नैना माथुर का किरदार निभा रही हैं. जो टूरेट सिंड्रोम से पीड़ित होती हैं. जो कि उनके बोलने में दिक्कत पैदा करता है. बावजूद इसके रानी टीचर बनने के अपने सपने को पाने की हर मुमकिन कोशिश करती हैं. रानी को इस सिंड्रोम से पीड़ित होने के चलते किसी स्कूल में टीचर की नौकरी नहीं दी जाती. शहर का नामी स्कूल उनकी काबिलियत से प्रभावित तो है लेकिन उसे डर है कि रानी की बोलने में आड़े आने वाली कमजोरी उन्हें बच्चों के साथ संवाद करने में दिक्कत पैदा करेगी. जिसके चलते उन्हें राइट टू एजूकेशन के तहत स्कूल में दाखिला दिए गए गरीब बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाती है.

बेहद शरारती औऱ अनगढ़ किस्म के बच्चों को रानी एक पैशनेट टीचर की तरह पढ़ाती हैं. इस दौरान उनको ढेर सारी दिक्कतें बच्चों औऱ स्कूल मैनेजमेंट की तरफ से आती हैं लेकिन रानी इन सबका दिलेरी से मुकाबला कर अपनी काबिलियत और जुनून को साबित करती हैं.

कुल मिलाकर फिल्म बेहद संवेदनशीन इमोशनल ड्रामा है, जिसमें एक साधारण इंसान की आसाधारण कहानी को सलीके से कहा गया है. फिल्म धीरे-धीरे आगे बढ़ती है और अपने संदेश को कहने में सफल रहती है.

गीत-संगीत और दूसरे डिटेल्स :

यशराज फिल्म्स की खास बात होती है उनके भव्य सेट्स और सिनेमैटोग्राफी. संगीत एक ऐसा पहलू है जिसपर यशराज बैनर बेहद काम करता है. यही वजह है कि फिल्म का गाना ‘ओए हिचकी’ ठीक-ठाक बना है. एक बार सुना जा सकता है. ‘मैडम जी गो इजी’ फंकी नंबर है उसे भी एक बार सुना जा सकता है. शिल्पा राव की आवाज में गाया गया सांग ‘फिर क्या है गम’ सुनने में कानों को राहत देता है. कुल मिलाकर फिल्म के गाने ठीक-ठाक बन पड़े हैं. फिल्म की सबसे खास बात उसका बेहद कसा हुआ निर्देशन है. सिद्धार्थ मल्होत्रा इससे पहले करीना कपूर औऱ अर्जुन रामपाल को लेकर वी आर फेमिली मूवी डायरेक्ट कर चुके हैं. वो मूवी भले ही बाक्स आफिस पर फ्लाप रही हो लेकिन एक निर्देशक के तौर पर सिद्धार्थ ने इस फिल्म में कमाल दिखाया है. अगर फिल्म के दूसरे सबसे खास पहलू की बात करें तो वो है फिल्म की सिनेमैटोग्राफी. अविनाश अरुण फिल्म के सिनेमैटोग्राफर हैं. वे किल्ला, मसान, दृश्यम जैसी बेहद सक्सेसफुल फिल्मों में सिनेमैटोग्राफी कर चुके हैं. अविनाश के कैमरे ने इस बार भी गजब का कमाल दिखाया है.

फिल्म में लंबे-चौड़े डायलाग्स के बजाय छोटे छोटे और कायदे से कहे गए कनवर्सेशन हैं जो बेहद वजनदार तरीके से अपनी बात कहते हैं औऱ दर्शकों को बांधे रखने में सफल होंगे. अगर आप भी भाग-दौड़ भरी जिंदगी में दिमाग को दर्द दिए बिना एक देखने लायक फिल्म का प्लान बना रहे हैं तो जरूर ये फिल्म देखिए. औऱ हां, फिल्म के लीड एक्टर के बारे में बता दें, वो कोई और नहीं बल्कि अपनी रानी मुखर्जी ही हैं.

हमारी रिकमेंडेशन :

हम आपको ये फिल्म देखने की सलाह देते हैं. बिना वजह की मारपीट-भव्य सेट्स और महंगे कास्ट्यूम्स के बिना ये फिल्म साधारण तरीके से कही गई एक आसाधारण कहानी है. अगर आप यशराज की फिल्मों के फैन हैं तो जरूर देखिए. सिद्धार्थ मल्होत्रा ने जरुर अपने डायरेक्शन से इस फिल्म में चौंकाया है. तो, आप मूवी देखने का प्लान बना रहे हैं हिचकी आपके लिए परफेक्ट फ्राइडे फन हो सकती है. हमारी तरफ से इतना ही बाकी आप सिनेमाहाल में देख-सुन-समझ सकते हैं.