राकेश चतुर्वेदी, भोपाल। मध्य प्रदेश प्रदेश की राजनीति में कब क्या हो जाए ये कहना मुश्किल है। कब दो कट्टर दुश्मन एक दूसरे के खास मित्र बन जाए और दो पुराने मित्र एक दूसरे के दुश्मन बन जाए ये कोई नहीं बता सकता। 17 नवंबर को हुए मतदान के बाद अब 3 दिसंबर का बेसब्री से इंतजार है। इस दिन फैसला हो जाएगा कि मध्य प्रदेश में कमल खिलेगा या कमलनाथ आएंगे। वहीं मतगणना के पहले शीर्ष दल बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (CONGRESS) जोड़-तोड़ का खेल करने की पूरी तैयारी में जुट गई है।
मध्य प्रदेश में बीजेपी (BJP) और कांग्रेस (CONGRESS), पार्टी का विरोध करने वाले नेताओं से भी संपर्क करने की जुगत में लग गई है। पार्टियों की नजरें उन बागी नेताओं पर भी रहेगी जिन्होंने टिकट वितरण को लेकर अपने नेताओं से बगावत की थी और इसके बाद किसी ने दूसरे दलों का दामन थाम लिया था तो किसी ने निर्दलीय उतरने का फैसला किया।
फिर शुरू होगा मान मनौव्वल का दौर
बीजेपी और कांग्रेस की पहली प्राथमिकता है कि प्रदेश में स्पष्ट बहुमत से सरकार बने। अगर टक्कर कांटे की हुई तो बागी नेताओं का सहारा लेकर सरकार बनाने का प्रयास किया जा सकता है। यानी जिस तरह नाम वापसी को लेकर जहां दोनों दलों ने अपने नेताओं को मनाने का प्रयास किया था। उसी तरह बहुमत के लिए प्रदेश में एक बार फिर मान मनौव्वल का दौर देखा जा सकता है। इसके लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने स्पष्ट बहुमत न मिलने पर भी सरकार बनाने के लिए प्लान बी (PLAN B) तैयार कर लिया है।
बीजेपी का ‘प्लान-बी’
मध्य प्रदेश में सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी जोर शोर से जुट गई है। निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे पार्टी से जुड़े नेताओंसंपर्क किया जा सकता है। कांग्रेस से नाराज और टिकट न मिलने पर चुनाव लड़ रहे नेताओं पर भी नजर रखी जा रही है। नंबर गेम के लिए जरुरत पड़ने पर दूसरे दलों के जीते हुए प्रत्याशियों से भी पार्टी में शामिल होने के लिए चर्चा की जा सकती है। मतगणना के परिणाम के बाद सभी को एक जगह बुलाया जा सकता है। पार्टी बहुमत नहीं मिलने पर दूसरे प्रत्याशियों को मंत्री पद का ऑफर दे सकती है।
कांग्रेस का ‘प्लान बी’
बीजेपी की ही तरह कांग्रेस भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे पार्टी से जुड़े नेताओं से संपर्क साध सकती है। बीजेपी से टिकट नहीं मिलने पर चुनाव लड़ रहे नेताओं पर कांग्रेस की नजर रह सकती है। दूसरे दल और जीतने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों पर नजर रखी जा सकती है। साथ ही विधायकों को एकजुट रखने के लिए भोपाल बुलाने का भी प्लान तैयार किया जा रहा है। बहुमत नहीं मिलने पर दूसरों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जा सकता है।
इन नेताओं पर दोनों दलों की रहेगी नजर
- भिंड से मैदान में उतरे बसपा प्रत्याशी संजीव सिंह
- सतना सीट से बसपा प्रत्याशी रत्नाकर चतुर्वेदी
- टीकमगढ़ से निर्दलीय प्रत्याशी पूर्व विधायक केके श्रीवास्तव
- पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह के बेटे बसपा प्रत्याशी राकेश सिंह
- बुरहानपुर से मैदान में उतरे निर्दलीय प्रत्याशी हर्षवर्धन सिंह चौहान
- सीधी से मैदान में उतरे निर्दलीय प्रत्याशी केदार शुक्ला
- धार सीट से निर्दलीय प्रत्याशी राजीव यादव
- आलोट से मैदान में उतरे पूर्व विधायक प्रेमचंद गुड्डू
- महू से चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार
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2018 में ये रहे समीकरण
पिछली बार यानी साल 2018 के चुनाव की बात की जाए तो चार निर्दलीय विधायक चुनाव जीते थे। चारों निर्दलीय विधायक कांग्रेस से टिकट की मांग कर रहे थे। चुनाव जीतने के बाद सभी उम्मीदवारों ने कमलनाथ को समर्थन दिया था। सत्ता परिवर्तन के बाद निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी पाला बदला था।
2018 में निर्दलीय चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे चारों विधायकों पर कांग्रेस और बीजेपी ने इस बार भरोसा जताते हुए टिकट दिया है। निर्दलीय चुने गए विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा बुरहानपुर और केदार डाबर भगवानपुर से कांग्रेस के उम्मीदवार बनाए गए हैं। वहीं सुसनेर से निर्दलीय विधायक राणा विक्रम सिंह और वारासिवनी से निर्दलीय विधायक प्रदीप जयसवाल को बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया है।
इस मामले में बीजेपी मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कहा है कि बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ आ रही है। कांग्रेस को हार स्वीकार कर लेनी चाहिए। कांग्रेस की तैयारी से साफ़ जाहिर है कि तीन दिसंबर को क्या होने जा रहा है।
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