नीरज काकोटिया, बालाघाट। पढ़ने की ललक, लगन और जुनून ऐसा की खराब सड़कें और लंबी दूरी होने के बाद भी एक नाबालिग छात्र पढ़ाई के प्रति अपनी रूचि खत्म नहीं की, बल्कि इस बाधा का विकल्प उसके नाना ने घोड़ा उपलब्ध कर दूर कर दिया। जिसके चलते बालक घुड़सवारी करते हुए प्रतिदिन स्कूल पहुंच रहा है।

आप ने वर्तमान में स्कूल जाने वाले छात्रों को साइकिल, मोटरसाइकिल या स्कूल वाहन से स्कूल जाते देखा या सुना होगा लेकिन आज हम ऐसे छात्र से मिलवाने जा रहें हैं, जो इस आधुनिक दौर में घुड़सवारी करते हुए स्कूल आना जाना कर रहा है। हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के कक्षा छठवीं का छात्र ललित कुमार कोड़ोपे की।

गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है छात्र

बालाघाट जिले की परसवाड़ा विधायक और आयुष मंत्री रामकिशोर कावरे के विधानसभा क्षेत्र के आदिवासी अंचल ग्राम खैरलांजी के कक्षा छठवीं का छात्र ललित कुमार कोड़ोपे जो स्कूल आने जाने के लिए घोड़े का उपयोग करता है। दरअसल, छात्र ललित कुमार कोड़ोपे बहुत धनवान नहीं है। वह अपने नाना के यहां छोटे कच्चे मकान में रहता है। गरीब परिवार से ताल्लुक रखता है।

ललित शासकीय माध्यमिक शाला खैरलांजी में कक्षा छठवीं का छात्र है और वह अपने नाना नानी के घर रह कर पढ़ाई कर रहा है। उसके नाना नानी का घर खेत में होने के कारण उसके स्कूल की दूरी 4 किलोमीटर पड़ती है। यह मार्ग कच्चा और बहुत खराब है। ऐसे में अधिक दूरी और सड़क खराब होने की स्थिति में कोई भी बालक पढ़ने के लिए स्कूल जाना नहीं चाहेगा, लेकिन छात्र ललित कुमार कोड़ोपे में पढ़ाई के प्रति ऐसी लगन है कि उसके नाना और गरीब पिता ने घोड़े की सुविधा दे दी।

एक मजे हुए खिलाड़ी की तरह घोड़े पर स्कूल पहुंचता है ललित

बताया जाता है कि ललित के नाना नानी के पास घोड़ा है। ललित ने इसी घोड़े को स्कूल आने जाने के लिए अपना वाहन बना लिया है।  जो कक्षा चौथी से घुड़सवारी करना सीख गया था। जिसके चलते अब वह एक मजे हुए खिलाड़ी की तरह घोड़े पर बैठकर न सिर्फ स्कूल पहुंचता है, बल्कि उसी से वापस उस उबड़ खाबड़ सड़क के माध्यम से घर भी जाता है।

ललित हर दिन अपने घोड़े पर सवार होकर बड़ी शान से स्कूल जाता है। पढ़ाई के दौरान स्कूल के पास के मैदान में वह घोड़े को बांध देता है। घोड़ा मैदान में चरते रहता है। ललित स्कूल की छुट्टी होने पर वापस घोड़े पर सवार होकर अपने घर के लिए चल देता है। आज के इस आधुनिक युग में किसी छात्र को घोड़े पर सवार होकर स्कूल जाते देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। जब भी कोई व्यक्ति ललित को घोड़े पर स्कूल जाते देखता है तो वह भी चकित हो जाता है।

इस संबंध ललित ने बताया कि वह पढ़ना चाहता है। सड़क खराब है, साइकिल भी नहीं थी। इसलिए नाना और पिता ने घोड़े पर बैठकर स्कूल जाने की सुविधा दी। ललित ने बताया कि घोड़े की सवारी कर स्कूल आने जाने का कुछ अलग ही आनंद है। ललित को देखकर तो यही लगता है कि अभावों के बीच भी खुशियां तलाशी जा सकती है। ललित की यह लगन दूरस्थ क्षेत्रों के अन्य छात्रों के लिए भी प्रेरणादायक है।

पढ़ाई के प्रति लगन देख प्रधान पाठक भी खुश

स्कूल के प्रधान पाठक भी बच्चे की पढ़ाई के प्रति लगन को लेकर खुश है और बताते हैं कि वह इसी ललक के चलते घोड़े पर बैठकर आ रहे हैं। यहां पर सड़क की समस्या और अधिक दूरी के कारण उसके परिजन इस तरह से घोड़े के माध्यम से उसे स्कूल भेज रहे हैं।

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