शंकर राय, भैंसदेही(बैतूल)। विकास यात्रा की विजयगाथा के इस दौर में एक ऐसा गांव भी है, जहां ना बिजली है, ना पानी, ना स्कूल और ना आंगनबाड़ी है। मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर बसा ये बैतूल जिले का अंतिम गांव है, जो आदिम युग में जी रहा है। गांव तो मध्यप्रदेश में है, लेकिन देश की आजादी के बाद से आज तक इस गांव के सारे बच्चे पढ़ाई करने महाराष्ट्र जा रहे हैं। तमाम सुविधाओं से महरूम इस गांव में कोई लड़की बहू बनकर आना नहीं चाहती। जहां के ग्रामीण गेंहू पिसाने से लेकर मोबाइल चार्ज करने भी महाराष्ट्र जाते हैं। वहीं राशन लेने के लिए 8 किमी दूर और दूसरे सरकारी कामों के लिए 60 किमी दूर जाना पड़ता है। ऐसे गांव की व्यथा जहां अब ग्रामीण कह रहे हैं कि बिजली नहीं तो वोट नहीं।

बिजली, पेयजल, स्कूल, आंगनबाड़ी, राशन दुकान ये वो मूलभूत सुविधाएं हैं जो आज हर गांव कस्बे में मिल जाती हैं। लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी भैंसदेही के बुरहानपुर गांव में ऐसी कोई सुविधा नहीं है, जिसे विकास कहा जा सकें। गांव में लोग आदिम युग सा जीवन बीता रहे हैं। यहां सबसे बड़ी और पहली समस्या है। बिजली की जिसकी मांग करते करते कई पीढ़ियों ने चिमनी और दीये की रोशनी में जिंदगी गुजार दी। इसके बाद भी ग्रामीणों को बिजली नहीं मिली। इनके लिए उजाले का मतलब केवल दोपहर का समय है, इसके बाद सब कुछ अंधियारा है।

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ग्रामीण तुलसीराम धोटे ने बताया कि बैतूल के भैंसदेही ब्लॉक में आने वाले बुरहानपुर की दूरी ब्लॉक मुख्यालय से ही 60 किमी है। जबकि महाराष्ट्र के परतवाड़ा की दूरी यहां से महज 5 किमी है, इसलिए गांव के लोग हर छोटे बड़े कामों के लिए महाराष्ट्र पर निर्भर हैं। चाहे गेंहू पिसवाना हो, बच्चों का स्कूल कॉलेज हो, खेती किसानी की जरूरतें हो या मोबाइल को चार्ज करना हो सब कुछ महाराष्ट्र जाकर हो पाता है।

ग्रामीण महिला लाला सावलकर और सुरेखा सावलकर ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में गांव का कोई भी बच्चा एमपी के स्कूल में नहीं पढ़ पाया है। जिसकी वजह है बिजली सहित मूलभूत सुविधाओं का ना होना। छोटी उम्र में ही यहां के बच्चों को पढ़ने के लिए महाराष्ट्र भेज दिया जाता है। कई लोग तो स्कूल के दर्शन ही नहीं कर पाए और जवान हो गए। अब उन्हें अपनी आने वाली पीढ़ियों की फिक्र सताती है।

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किशन भुसुम ने बताया कि बिजली नहीं होने से पेयजल और सिंचाई की सुविधाएं नहीं है। खेती के लिए ग्रामीण बारिश का इंतजार करते हैं, तो वहीं पीने का पानी डेढ़ से दो किमी दूर जाकर लाना पड़ता है। इन समस्याओं का खामियाजा गांव के नौजवानों को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि गांव की दुर्दशा देखकर कोई भी लड़की यहां बहु बनकर आना नहीं चाहती।

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गामा जमुनकर ने बताया कि 19 फरवरी 2023 के दिन गांव में विकास यात्रा आई थी। गांव के हालात देखकर विकास यात्रा का ही दम फूल गया और घबराए नेता, अधिकारी एक बार फिर बिजली लाने का आश्वासन देकर भाग खड़े हुए। 75 साल में हजारों बार आश्वासन झेल चुके ग्रामीणों कहना है कि अगर अब बिजली नहीं मिली तो मतदान करना भी बंद कर दिया जाएगा।

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ग्राम बुरहानपुर आकर यकीन करना मुश्किल होता है कि हम 21वीं सदी के उस दौर में जी रहे है, जहां विकास की गाथा बताने के लिए विकास यात्राएं गांव-गांव पहुंच रही है। गांव से महज एक किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के गांव बिजली से जगमग है। वहीं, जिस भैंसदेही ब्लॉक में ये गांव आता है वहां भी 24 घंटे 365 दिन बिजली रहती है। ऐसे गांव में विकास यात्रा का जाना बेहद शर्मनाक है। शायद अधिकारियों को यहां ये तो समझ आया ही होगा कि उन्होंने कितना और कैसा विकास किया है।

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