शिखिल ब्यौहार, भोपाल। राजधानी भोपाल में इस बार करीब चार हजार हरे-भरे पेड़ों की बली से बचाया जाएगा। यदि मध्यप्रदेश की बात की जाए तो यह आंकड़ा 50 हजार के पार होगा। यह संभव होगा उस पहल से जो आठ साल पहले शुरू की गई थी। गौकाष्ठ की होली से धार्मिक मान्यताओं को बने रहने के साथ पर्यावरण का संरक्षण।
गौकाष्ठ समिति के समन्वयक मम्तेश शर्मा बताते हैं कि एक होलिका दहन में औसतन तीन से पांच क्विंटल लकड़ी का उपयोग होता है। मतलब आठ से दस साल के व्यस्क पेड़ की पूरी कटाई से निकली लकड़ी। इतनी बड़ी संख्या में लकड़ी की आवश्यकता को पूरी करने के लिए पेड़ों की कटाई भी की जाती थी। लिहाजा पर्यावरण संरक्षण के लिए गोकाष्ठ समिति बनाई गई। जिसने गोकाष्ठ की होलिका दहन के लिए लोगों से अपील भी की। बीते चार सालों में राजधानी समेत प्रदेश के सभी बड़े शहरों में 80 फीसदी होली गोकाष्ठ की जलाई जा रही है।
भोपाल से शुरू हुई मुहिम अब पूरे प्रदेश में
राजधानी से शुरू हुई इस पहल को सरकार ने भी अलग-अलग मंचों पर सराहा। लिहाजा अब पूरे प्रदेश में गोकाष्ठ की होली को बढ़ावा दिया जा रहा है। समिति के अध्यक्ष अनिल चौधरी ने बताया कि समिति द्वारा 10 हजार क्विंटल से भी अधिक का गोकाष्ठ संग्रहण किया गया है। इसके अलावा प्रदेश के कई जिलों में गोकाष्ठ को जागरूक संगठनों को उपलब्ध भी कराया जा रहा है।
पर्यावरण का संरक्षण ही नहीं बल्कि संवर्धन भी
समिति पदाधिकारियों ने बताया कि अलग-अलग मानकों के परीक्षण में यह पाया गया है कि गौकाष्ठ से पर्यावरण की शुद्धि भी होती है। जो लकड़ी के दहन से संभव नहीं। यही कारण है कि यज्ञ समेत पूजन अर्चन में कंडों का उपयोग का विधान भी शास्त्रों में मिलता है। गोकाष्ठ के निर्माण में पूरी शुद्धता का ध्यान भी रखा जाता है।
लागत के आधे दामों में पर्यावरण के लिए वरदान गौकाष्ठ
समिति पदाधिकारियों ने बताया कि इस बार 30 किलो गोकाष्ठ रेमंड कंपनी के कपड़े से बने बैग में 300 रुपये में मिलेगी। उत्पादन शुल्क बढ़ने के बाद भी पर्यावरण के हित में छह वर्ष में गोकाष्ठ की कीमत नहीं बढ़ाई गई है। बिक्री के लिए 30 किलो गोकाष्ठ कपड़े से बने बैग में उपलब्ध कराई जाती है। इस बार गोकाष्ठ के लिए बैग बनाने मुंबई से रेमंड कंपनी का कपड़ा मंगाया गया है।
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