अजय शर्मा, भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र भले ही खत्म हो गया, लेकिन इस बार सबसे ज्यादा परेशानी बीजेपी को अपने ही विधायकों से झेलनी पड़ी। सदन में सरकार को जितना कांग्रेस विधायकों ने नहीं घेरा, उससे कड़े शब्दों के साथ इस बार बीजेपी के विधायकों ने अपने मंत्रियों और नौकरशाही पर सवाल उठाकर सरकार की फजीहत करा दी। बीजेपी के किसी विधायक ने कहा कि मैं निरीह हूं… तो किसी ने कहा, मेरी जगह कांग्रेस विधायक को जांच समिति में शामिल कर दिया जाए, ताकि जांच निष्पक्ष होगी… तो किसी को कहना पड़ा चुनावी साल है जनता के बीच में क्या मुंह दिखाएंगे… वहीं आसन्दी तक ने एक मंत्री को कह दिया कि अधिकारी पर कार्रवाई कर दो, क्यों सरकार की छवि खराब कर रहे है।
जानिए किस विधायक ने कौन सा मुद्दा उठाया?
1. भाजपा विधायक वीरेंद्र रघुवंशी ने सहकारी बैंक में गबन का मामला उठाया। उन्होंने कहा, जिन बैंकों में लोगों को लाखों रुपए जमा हैं। उन्हें हजार रुपए दिए जा रहे हैं। बैंक ने किसानों का भुगतान करने में हाथ खड़े कर दिए।
इस पर सहकारिता मंत्री ने कहा– अपेक्स बैंक स्वतंत्र बाडी है। बैंक की ओर भुगतान को लेकर उच्च अधिकारियों से चर्चा कर भुगतान कराया जाएगा।
विधायक रघुवंशी ने कहा – चुनावी साल है, हम लोगों के घर जाएंगे तो क्या मुंह दिखाएंगे।
2. बीजेपी विधायक गौरीशंकर बिसेन ने पशुधन एवं कुक्कुट विकास निगम एमडी के खिलाफ शिकायतों का मामला उठाया। बिसेन ने कहा, 11 शिकायतों को बिना जांच किए ही बंद कर दिया गया, क्या मंत्री फिर से इस मामले की जांच कराएंगे?
पशुपालन मंत्री प्रेम सिंह पटेल का जवाब- इस मामले की जांच समिति के जरिए जांच कराई जाएगी, फिलहाल जांच की जाएगी। बिसेन ने कहा, 4 साल बाद में पहली बार सवाल पूछा गया है, इसके बाद भी कोई सरकार की तरफ से स्पष्ट जवाब नहीं आ रहा है। मंत्री जांच कराएं, दूध का दूध और पानी का पानी कराएं।
3. बीजेपी विधायक यशपाल सिंह सिसौदिया ने प्रदेश भर में कुत्तों के हमले की घटनाओं का मामला उठाया। इस पर मंत्री ओपीएस भदोरिया ने कहा कि बर्थ कंट्रोल के लिए अभियान चलाया जा रहा है। प्रदेश भर में यह अभियान चल रहा है।
- सिसौदिया ने कहा कि लोगों की सुरक्षा का विषय है। सरकार और निजी अस्पतालों में लगने वाले रेबीज के इंजेक्शन से पता लगाया जा सकता है कि कितने मामले सामने आ रहे हैं। मानवाधिकार आयोग ने 11 बार सिफारिश की है। हर घटना में लाख रुपए का मुआवजा देने की बात कही है। सिसोदिया ने कहा, नियमों के बीच कैसे लोगों की सुरक्षा के लिए उपाय किए जाएंगे। इस दौरान मंत्री-विधायक के बीच तीखी नोकझोंक हुई।
4. बीजेपी विधायक उमाकांत शर्मा ने प्रधानमंत्री सड़कों के निर्माण का मुद्दा उठाया। उन्होंने पूछा- विदिशा के लटेरी के कई गांवों में पिछले 5 साल में क्यों नहीं बन पाई सड़कें? उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी जो अधिकारी दोषी है।
इसका जवाब देते हुए मंत्री सिसौदिया ने कहा कि जो सड़कें बननी है, वह बन रही है, उनका निर्माण चल रहा है, जो सड़के नहीं बन पा रही हैं, उनकी विधायक जानकारी दें।
विधायक उमाकांत शर्मा ने बार-बार मंत्री से पूछा आखिर क्यों नहीं बनी सड़कें, मंत्री ने कहा कि जो सड़कें नहीं बनी है, उसकी जांच करा ली जाएगी। विधायक ने कहा कि सरकार उनकी है, मैं तो जानकारी दूं कि आखिर सड़कें क्यों नहीं बनेगी। मंत्री बताएं कि 2 साल में बनी सड़कों की गुणवत्ता की जांच कराई जाएगी या फिर नहीं। गुणवत्ताहीन काम किया जा रहा था तो शिकायत कर काम रुकवाया गया।
पंचायत मंत्री सिसोदिया ने कहा कि विधायक सड़कों की खराब होने की जानकारी दे तो सड़क क्यों खराब हुई है, जांच करा ली जाएगी, पहले वह सूची दे।
5. आजीविका मिशन को लेकर बीजेपी विधायक राजश्री रुद्र प्रताप सिंह ने कहा कि पंचायत मंत्री ने जो जानकारी दी है, उससे मैं संतुष्ट नहीं हूं। इस पर मंत्री ने कहा कि राशि वितरित की गई है, स्व सहायता समूह को कितनी राशि दी गई है, इस मामले में एक सप्ताह के अंदर जानकारी दी जाएगी।
6. विधायक शरदेंदु तिवारी ने श्याम शाह चिकित्सा महाविद्यालय के डीन द्वारा पद के दुरुपयोग किए जाने को लेकर चिकित्सा शिक्षा मंत्री कारण से जवाब मांगा।
मंत्री विश्वास सारंग का जवाब– मानचित्रकार सुदामा प्रसाद पांडे की चिकित्सा के मामले में समिति में सबसे ज्यादा जांच कराई गई, वो पात्र नहीं है, उनके द्वारा दस्तावेज भी मांगे गए, लेकिन दस्तावेज नहीं आए। पूरी तरीके की व्यवस्था रीवा मेडिकल कॉलेज में है। कोई भी शिकायत लंबित नहीं है।
कैंसर मरीजों के इलाज के एक मामले में बीजेपी विधायक ने आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि आवेदन करने के बाद स्वीकृति देने की प्रक्रिया में लेटलतीफी की वजह से मरीज परेशान होता है। डीन की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, यह गंभीर अवस्था का विषय है। पूरी करवाई कब कराई जाएगी, यह बताएं मंत्री ?
जवाब- मंत्री सारंग ने कहा कि राज्य के अंदर या बाहर कोई भी इलाज कराता है, उसके लिए एक प्रक्रिया है। सुदामा प्रसाद पांडे ने नागपुर के जिस अस्पताल में इलाज कराया। वह मध्यप्रदेश सरकार की सूची में नहीं है। रीवा मेडिकल कॉलेज में इसलिए गया और रिजेक्ट हो गया, क्योंकि इस सूची में अस्पताल नहीं था। फिर से फरियादी से जानकारी मांगी। मेडिकल कॉलेज इस विषय पर निर्णय नहीं ले सकता, इसलिए जिस विभाग का है उसे भेजा जा चुका है। सिंचाई विभाग से जुड़ा हुआ कर्मचारी है वहां से जानकारी आएगी।
7. पंचू लाल प्रजापति बीजेपी विधायक ने कहा– रीवा मेडिकल कॉलेज में जो डीन है, उनका खुद का एक अस्पताल है। मेडिकल कॉलेज में बैठते नहीं हैं और जूनियर डॉक्टर इलाज करते हैं, वो कहते हैं कि डीन से इलाज कराना है तो उसके लिए हॉस्पिटल में चले जाए। ऐसे डीन को हटा दिया जाना चाहिए।
अध्यक्ष ने कहा कि सरकारी कर्मचारी ने इलाज करा लिया और इस्टीमेट भेज दिया। सवाल इस बात का है कि विभाग ने पैसा स्वीकृत नहीं किया और ना ही निरस्त करने की सूचना दी। अध्यक्ष ने सामान्य प्रशासन विभाग का हवाला देते हुए कहा कि नियम है कि यदि कोई विधायक पत्र भेजते हैं तो उसके साथ उचित व्यवहार कर जवाब दिया जाए, लेकिन इस मामले में ऐसा कोई भी पालन नहीं किया गया। अध्यक्ष ने मंत्री को दो टूक कहा कहा “डीन को हटा दो, सरकार की बदनामी क्यों करा रहे हो”।
8. बीजेपी विधायक आशीष शर्मा ने भी अपनी ही सरकार को सदन में घेरा…. शर्मा ने कहा कि गांव में किसानों ने अपने खेतों में कुआं बना लिया है लेकिन भुगतान नहीं होने की वजह से किसानों में नाराजगी है। इसके अलावा मनरेगा का भुगतान भी लंबित है।
जवाब- मंत्री रामखेलावन पटेल ने कहा कि – वेरिफिकेशन करा के हितग्राहियों के खाते में पैसे डाले जा चुके हैं।
मनरेगा का भुगतान के लिए वेरिफिकेशन होता है। भारत सरकार के पोर्टल में इसकी जानकारी राज्य सरकार देती है। जिसके बाद फिर से भुगतान करने के लिए पोर्टल में अधिकारियों से जानकारी दी जाती है।
बीजेपी विधायक के सवाल पर सदन में विपक्ष के विधायकों ने मुद्दा उठाया। सिर्फ एक ही जिले में मनरेगा के भुगतान की समस्या नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश भर में बनी हुई है। इस समस्या को दूर करने के लिए क्या कदम उठाएंगे।
वहीं सदन के अंदर अपनी ही सरकार को घेरते हुए बीजेपी विधायक उमाकांत शर्मा ने कहा, बहुत पीड़ित हूं और प्रताड़ित हूं अधिकारियों की तानाशाही मत चलने दीजिए। मंत्री उमा कांत शर्मा ने मंत्री इंदर सिंह परमार को जमकर खरी-खोटी सुनाई।
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