राकेश चतुर्वेदी, भोपाल। चुनावी मुहाने पर पहुंच चुके मध्यप्रदेश में इन दिनों अब सरकारी कर्मचारियों (government employees) के तबादले भी सियासत का मुददा बन गए हैं. हर साल होने वाले तबादलों (transfers) से इस बार सिर्फ जिला स्तर पर तबादलों से रोक हटी तो इस पर जमकर सियासत (Politics) शुरू हो गई है. विपक्ष (Congress) ने प्रदेश में तबादला उद्योग शुरू करने का आरोप लगाते हुए इसे चुनावी तबादला करार दिया, तो बीजेपी (BJP) ने पलटवार करते हुए कहा है कि तबादला उद्योग (transfer industry) तो कांग्रेस की सरकार में चला था।

लंबे इंतजार के बाद मध्य प्रदेश में आज से तबादलों पर अगले 16 दिन के लिए प्रतिबंध हटा दिया गया है. 30 जून तक तबादलों की राह खोलने के साथ यह स्पष्ट कर दिया गया है कि प्रभारी मंत्री सिर्फ जिले से जिले में ही स्थानांतरण कर सकेंगे. एक और अहम गाइडलाइन ये है कि इस समय सीमा में सिर्फ चतुर्थ व तृतीय श्रेणी कर्मचारियों को ही लाभ मिल सकेगा. राज्य स्तर पर तबादले मुख्यमंत्री के समन्वय से ही होंगे. तबादलों से बैन हटने पर कांग्रेस ने आपत्ति ली है. पूर्व पंचायत मंत्री कमलेश्वर पटेल ने निशाना साधते हुए कहा है कि ये चुनावी तबादले हैं और प्रदेश में इन दिनों जमकर तबादला उद्योग चलेगा।

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देखा जाए तो मध्य प्रदेश में हर साल एक निश्चित समय के लिए तबादलों से प्रतिबंध हटाया जाता रहा है. लेकिन कोरोनाकाल के बीच ये प्रक्रिया लंबे समय तक अटकी रही. सरकार ने 2022 में कुछ समय के लिए अतिआवश्यक तबादलों की छूट दी थी. ऐसे में चुनावी साल में मंत्रियों से लेकर कर्मचारियों को अप्रैल माह में तबादलों से बैन हटने की उम्मीद थी, लेकिन तबादला विवाद से बचने के लिए सरकार ने देरी के साथ मंत्रियों को सिर्फ जिलों से जिले में तबादला करने के सीमित अधिकार दिए हैं. इधर, कांग्रेस के तंज पर बीजेपी खुलकर सामने आई है. डाॅ. हितेष बाजपेयी, प्रवक्ता ने कहा कि पार्टी का तर्क है कि ये चुनावी नहीं हर साल होने वाली रूटीन प्रक्रिया है और जिलों में तबादला नीति के तहत पारदर्शिता के साथ जरूरतमंदों की बदली होगी. तबादला उद्योग तो कांग्रेस शासनकाल में चला था.

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