शिखिल ब्यौहार, भोपाल। विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग के फरमान के बाद सियासी दलों की टिकट वितरण को लेकर मुसीबत बढ़ा दी है। मामला दागदार छवि के प्रत्याशियों को टिकट देने से जुड़ा हुआ है। दरअसल बीते बुधवार को चुनाव आयोग ने मीडिया से चर्चा के दौरान साफ किया था कि आपराधिक छवि के उम्मीदवार को नामांकन फॉर्म में सारी जानकारी देनी है। अगर झूठी जानकारी दी तो उम्मीदवारी निरस्त की जा सकती है।
कैंडिडेट की पूरी जानकारी आयोग की वेबसाइट पर रहेगी। ऐसे उम्मीदवार को तीन बार इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में विज्ञापन देना पड़ेगा। राजनीतिक दलों को भी यह प्रकाशित करना पड़ेगा कि उन्होंने क्रिमिनल कैंडिडेट क्यों चुना। साथ ही उन्हें बताना पड़ेगा कि उन्हें दूसरा उम्मीदवार क्यों नहीं मिला। ऐसे में बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दलों ने अपनी टिकट वितरण को लेकर एक बार फिर विचार मंथन शुरू कर किया है। पार्टियों का दावा है कि एक बार और संभावित उम्मीदवारों को स्कैन किया जा रहा है।
मामले पर कांग्रेस ने साफ किया कि अपराधी हो या आरोपी इन्हें टिकट देने के पक्ष में पार्टी नहीं है। लेकिन साजिशन लगे आरोपों पर प्रत्याशियों पर विचार मंथन किया जाएगा। दावा इस बात का भी बीजेपी में गंभीर अपराध की श्रेणी में आने वाले आरोपियों की संख्या ज्यादा है। उधर बीजेपी का कहना है कि टिकट को लेकर बारीकि से उम्मीदवारी पर मंथन किया जा रहा है। लेकिन राजनीतिक द्वेष से फंसाए गए उम्मीदवारों को टिकट देने में हर्ज नहीं है।
दोनों ही पार्टियों ने अपराधिक प्रवृति के नेताओं की संख्या को लेकर आरोप भी एक दूसरे पर लगाया। बता दें कि 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कुल 94 दागदार प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे गए थे..इसमें 47 पर गंभीर अपराधिक मामले दर्ज थे। आश्चर्य की बात यह है कि मध्यप्रदेश में कुल 230 सीटों में यह दावेदार प्रत्याशियों का आंकड़ा 41 फीसदी का था, जो 2013 में हुए विधानसभा चुनाव से अधिक था।
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