टिकट देने की तारीख तय
चुनाव के लिए कांग्रेस की तैयारी की बात करते हैं। इस बार कांग्रेस उपलब्ध कैंडिडेट को टिकट देने के मूड में कतई नहीं है, बल्कि कैंडिडेट की ताकत और मेहनत को नाप तौल कर पूरी तरह तैयार करके मैदान में उतारने पर काम कर रही है। कमलनाथ की कमरा बंद बैठकों के बीच अब छनकर खबर आ रही है कि दावेदारों की पहली लिस्ट मई के मध्य में आउट कर दी जाएगी। हां, यह लिस्ट सार्वजनिक प्लेटफार्म पर नजर नहीं आएगी, बल्कि हर दावेदार को कमलनाथ कान में बता देंगे। साथ ही यह जानकारी उस इलाके के दूसरे दावेदारों के साथ भी साझा करेंगे। कोशिश इस बात की होगी कि नगरीय निकाय की तरह तालमेल बैठाकर चुनाव लड़ा जाए। कांग्रेस इस बात को लेकर खुश है कि निकाय चुनाव में टिकट के लिए भले ही तनातनी का माहौल था, लेकिन कमलनाथ के बंगले पर कमरा बंद बैठक में टिकट फाइनल हुआ तो नौबत मारधाड़ तक नहीं पहुंची। अन्य दावेदार उतरे चेहरों के साथ घर ज़रूर लौट गए, लेकिन चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ उंगली नहीं की गई।

बाबा के लिए उड़ा विमान
बाबा बागेश्वर एक ही महीने में दूसरी बार भोपाल पधार गए। आयोजकों को यह अंदाजा पहले ले ही था कि जिस शोभायात्रा में वे शामिल होंगे, उसमें लोगों का बड़ा जमावड़ा लगेगा। लेकिन उनको न्योता देने बागेश्वर धाम पहुंचे आयोजकों को बाबा ने वक्त की कमी की जानकारी दे दी। बाबा से बार-बार मिन्नत करने के बाद यह रास्ता निकाला गया कि एक ही दिन में भोपाल पहुंचकर वापिस लौटने पर ही भोपाल आना हो सकता है। अब आयोजकों ने तुरंत सरकार तक बात पहुंचाकर हैलीकॉप्टर का इंतज़ाम करने का भरोसा दिला दिया। बाबा को वीआईपी दर्जा दिया गया और बाबा ने शोभायात्रा में जलवा बिखेर दिया। मुख्यमंत्री का वाहन सबसे आगे चल रहा था, जिसमें वीडी समेत सुरेश पचौरी सवार थे। उससे पीछे वाले लग्जरी वाहन में शोभायात्रा का सबसे बड़ा आकर्षण था, इस वाहन में बाबा के साथ आयोजक आलोक शर्मा सवार थे। बाबा के दर्शन के लिए मौजूद ज़बरदस्त भीड़ को आलोक शर्मा भी नजर आए। गुफा मंदिर में भव्य आयोजन हुआ। करीब 3 घंटे बाद बाबा ने अपने धाम की तरफ उड़ान भर दी। आयोजक आलोक शर्मा से आयोजन के मकसद को लेकर सवाल करने वालों को इस भव्य आयोजन के जरिए ‘उत्तर’ मिल गया। यह भी बता दें कि बाबा ने भोपाल में अपने अगले आयोजन को लेकर आलोक शर्मा को आयोजक रहने के निर्देश दे दिए हैं।

सीपी को नींद पसंद है
दफ्तर में टिकट को लेकर आमद रफ्त बढ़ गई है। यहां ज़िक्र करेंगे सीपी का। यह कोई कमिश्नर ऑफ पुलिस नहीं है, बल्कि एक नेता जी हैं। पूर्व में इन्हीं नेताजी की दफ्तर में तूती बोलती थी। अब वे टिकट को लेकर चक्कर काट रहे हैं। अध्यक्ष जी से मुलाकात हो जाए इसके लिए बार-बार चक्कर काटे जा रहे हैं। अध्यक्ष जी दफ्तर में नहीं होते हैं तो बराबर वाले कमरे में पंखे के नीचे कुर्सी पर आराम फरमाने लग जाते हैं। इसी इंतज़ार में आंखे भारी हो जाती हैं और नेताजी की नींद लग जाती है। बीते कई दिनों से यह सिलसिला लगातार हो रहा है। नेताजी का इतिहास जानने वाले दफ्तर के लोग उनसे कुछ कह नहीं पा रहे हैं। एक वक्त था, जब नेताजी का दफ्तर में रौब था। कार्यालय की हर चिट्ठी पर उनके दस्तखत नुमायां होते थे। पर अब इसी दफ्तर में अध्यक्ष जी के इंतज़ार में नेताजी को नींद लग जाती है। एक सीपी कांग्रेस में भी है, आप इस किस्से को उनसे जोड़कर मत देखिएगा।

कौन झपटेगा बसंती कुर्सी
निकाय और पंचायत चुनाव करवाने वाले मध्य प्रदेश निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म होने वाला है। बसंत कुमार सिंह मौजूदा अध्यक्ष हैं। प्रदेश के मुख्य सचिव रहे बसंत कुमार सिंह ने इस कुर्सी पर बैठकर कई बार सुर्खियां बटोरीं। यह कुर्सी काफी रौब वाली है, और रिटायर्ड आईएएस अफसरों की इस पर निगाह बनी रहती हैं। प्रदेश के दो अफसर इस कुर्सी की चाहत में पूरा दम लगा रहे हैं। सीएम के करीबी रहे एक अफसर ने संघ के अपने संबंधों का इस्तेमाल कर लिया है। दूसरे अफसर ने दिल्ली के कांटेक्ट को सक्रिय कर दिया है। तीसरे एक अहम किरदार हैं, जो इस कुर्सी पर बैठने वाले हैं। यदि यह अफसर ईमानदारी से सक्रिय हो गए तो अन्य सारे दावे ध्वस्त हो सकते हैं। दरअसल, नए दावेदार फिलहाल सरकारी नौकरी में पदस्थ हैं, लेकिन अगले महीने यदि उन्हें एक्सटेंशन नहीं मिला तो सीएम के चहेते अफसरों में शुमार इन साहब का दावा बाकी सारे दावों पर पानी फेर सकते हैं। उनको एक्सटेंशन नहीं मिला तभी इन सभी के दावे मज़बूत हो सकते हैं।

‘परमानेंट’ वाली फाइल अटकी
बीते 4-5 सालों में शिक्षा ही ऐसा विभाग है, जहां परीक्षार्थियों को जॉब मिली है। एक हैं स्कूलों के शिक्षक और दूसरे उच्च शिक्षा विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर्स। इन दोनों ही वर्गों को सरकारी नौकरी करने की खुशनसीबी हासिल हुई है। असिस्टेंट प्रोफेसर प्रदेश के अलग-अलग कॉलेजों में पदस्थ होकर अपना काम बखूबी संभाल भी चुके हैं। कॉलेजों की तरफ से नियमानुसार उनके दो साल के प्रोबेशन पीरियड पूरा करने की इत्तला भोपाल तक पहुंचा दी गई है। अब तबादलों का वक्त आ चुका है। नौकरी हासिल करने के लिए उन्होंने उपलब्ध कॉलेज में जॉइनिंग दे दी थी। अब मनपसंद जगह जाने का मौका मिला है। लेकिन जब प्रोबेशन फाइलों के कंफर्म होने की स्थिति खंगाली गई तो पता लगा कि वह आगे ही नहीं बढ़ी है। यानी नौकरी हासिल करने के बाद भी कैंडिडेट की नौकरी पक्की हो होने की खबर ने सारे असिस्टेंट को फिर से कैंडिडेट के दर्जे पर पहुंचा दिया है। उच्च शिक्षा विभाग में लंबे अर्से बाद असिस्टेंट प्रोफेसरों की पीएससी से भर्ती हुई है। इससे पहले यह महकमा प्राचीनकाल में नौकरी हासिल करने वाले प्रोफेसरों की पीएचडी डिग्री को लेकर विवादों में फंसा था। अब प्रोबेशन फाइलें के अटकने से एक बार फिर चर्चाओं में है। चर्चा हो रही है कि कि सतपुड़ा वाले उसी जनाब ने प्रोबेशन की फाइलों में नियमों का पेंच लगाकर मुनाफे की संभावना तो तलाश नहीं कर ली?

दुमछल्ला…
इंदौर संभाग के आला अफसरों में एक अवॉर्ड की चर्चा तेज है। यह अवॉर्ड इसी संभाग के एक जिले को मिला है। जिले को जिस काम के लिए अवॉर्ड मिला है, उसे जी जान से अंजाम तक पहुंचाने वाले अफसर कोई और हैं। उनका तबादला दीगर जिले में हो चुका है। लेकिन अवॉर्ड लिया फिलहाल पदस्थ ऑफिसर ने। जाहिर है, अवॉर्ड लेना जरूरी था, साथ ही पूरा क्रेडिट और बधाई भी इन्हीं अफसर को मिल गया। अब संभाग स्तर पर चर्चा इस बात की हो रही है कि ऑफिसर ने इसका क्रेडिट अब तक जिम्मेदारी से काम को अंजाम देने वाले अफसर को नहीं दिया। अब तक नाम तक नहीं लिया गया है। संभाग के अफसर चर्चा ही कर रहे हैं। वे भी क्रेडिट को इधर से उधर करने का काम नहीं कर सकते हैं। हां, यह बात अलग है कि अवॉर्ड के हकदार अफसर जिस जिले में पदस्थ हैं, वहां साहब को बधाई देने का सिलसिला अब तक चल रहा है।

(संदीप भम्मरकर की कलम से)

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