हेमंत शर्मा, जोबट। मध्य प्रदेश में 4 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं। हर चुनावों की तरह इस चुनाव में भी वादों की झड़ी लगी हुई है। लेकिन जनता से किए गए वादे क्या सच में पूरे होते हैं? वोट मांगने घर-घर पहुंचने वाले नेता क्या जीतने के बाद कभी दुबारा झांकते भी हैं? बड़े उम्मीदों से घंटों लाइन में खड़े रहकर वोट देने वाली जनता की उम्मीदों का क्या होता होगा ? विकास के वादों की तस्वीर देखने लल्लूराम डॉट कॉम भी अपनी चुनावी यात्रा पर है। जहां हम आपको वादों और उम्मीदों की उन स्याह तस्वीरों को दिखा रहे हैं। जो आजादी के 74 बरस बाद भी आम जनता को आंसू बहाने पर मजबूर कर दे रही है। अपनी चुनावी यात्रा में लल्लूराम डॉट कॉम की टीम को जोबट विधानसभा में एक ऐसा गांव नजर आया जहां पहुंचने के लिए कोई भी रास्ता नहीं है, पूरे गांव में एक भी व्यक्ति शिक्षित नहीं है। यहां स्कूल तो है लेकिन 16 साल से यहां बच्चों को पढ़ाने कोई शिक्षक पहुंचा ही नहीं। गांव में एक भी छोटा अस्पताल भी नहीं है।
30 किलोमीटर का सफर 5 घंटे में
मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे जोबट के इस गांव का नाम धक्कापुरा है। इस गांव तक पहुंचने के लिए lalluram.com की टीम को 30 किलोमीटर का रास्ता तय करने में 5 घंटे का समय लग गया। इससे आप इस गांव की हालत समझ सकते हैं। यहां आपको सड़क भले ही कहीं नजर न आए लेकिन आप को मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना का बोर्ड लगा जरुर नजर आ जाएगा। हमारी टीम से बात करने पर ग्रामीणों का दर्द बाहर आ गया। उन्होंने बताया सड़क नहीं होने का खामियाजा अक्सर उन्हें उठाना पड़ता है।
एंबुलेंस तक नहीं पहुंच पाती
ग्रामीणों ने बताया कि नेता सिर्फ वोट मांगने हमारे गांव में आते हैं और इसके बाद कभी नजर नहीं आते। हमारे गांव में पहुंचने का रास्ता इतना खराब है यहां कोई आसानी से यहां पहुंच ही नहीं सकता। गांव में कोई अस्पताल नहीं है और रात को किसी की तबियत खराब हो जाए तो एंबुलेंस पहुंचने में दूसरा दिन लग जाता है, ऐसे में कई मरीज इलाज के अभाव में गांव में ही दम तोड़ देते हैं।
16 साल से शिक्षक की बाट जोहते-जोहते जर्जर हुआ स्कूल
इस गांव में पहुंचने के बाद आपको बेहद हैरानी होगी, यहां एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो शिक्षित हो। ग्रामीण इसकी वजह बताते हैं, उनका कहना है कि गांव में एक स्कूल है लेकिन उस स्कूल में पढ़ाने के लिए पिछले 16 सालों से एक भी शिक्षक नहीं आया। हम उस स्कूल तक पहुंचे जो पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से शिक्षक और बच्चों की बाट जोह रहा है। स्कूल की छत जर्जर हो चुकी है, खिड़कियां टूट चुकी है। अंदर न कोई टेबल न कोई बेंच।
पिता फिर बच्चे भी मजदूरी के लिए मजबूर
स्कूल के सामने रहने वाले युवक ने कहा, जब मैं छोटा सा था तब से ही स्कूल को बंद ही देखता आ रहा हूं। गांव के बच्चे पढ़ना तो चाहते हैं पर उन्हें गांव से लगभग 30 किलोमीटर दूर गुजरात में पढ़ने जाना पड़ेगा लेकिन वे वहां भी नहीं जा सकते। वजह उनकी खराब आर्थिक स्थिति है। परिवार का मुखिया मजदूरी कर पत्नी और बच्चों का पेट भरते हैं, जैसे ही बच्चे बड़े होते हैं वह भी खेत में मजदूरी के काम में जुट जाते हैं।
मजदूरी, मजबूरी और पलायन
गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति खराब होने की वजह बेरोजगारी है। जिसका सबसे बड़ा कारण गांव में किसी भी व्यक्ति का शिक्षित ना होना है। शिक्षित नहीं होने की वजह से वे निजी और सरकारी नौकरी की पहुंच से कोसों दूर हैं। इसलिए यहां रहने वाले युवाओं को रोजी-मजदूरी का ही काम करना पड़ता है। गांव के युवक अब इस तरह मजदूरी का काम नहीं करना चाहते लेकिन घर चलाना और सबका पेट भरने के लिए मजदूरी करना उनकी मजबूरी बन गई है। जिसके लिए ये अन्य राज्यों गुजरात और महाराष्ट्र की ओर पलायन करते हैं।
बांस और लकड़ी पर पहुंची बिजली
इस गांव में आपको बिजली जरुर मिल जाएगी लेकिन उसके लिए भी ग्रामीणों ने लंबा पापड़ बेला है। यहां गांव में बिजली भी ग्रामीणों ने खुद खंबे लगाकर लाई है नहीं तो कुछ समय पहले तक गांव अंधेरे में डूबा हुआ था। गांव के भीतर आपको ऐसे लकड़ी और बांस के बने हुए खंबे नजर आ जाएंगे। ग्रामीणों ने बताया कि नेता सिर्फ वोट मांगने हमारे गांव में आते हैं और इसके बाद कभी नजर नहीं आते।