रेणु अग्रवाल,धार। रामनवमी (Ram Navami) के अवसर पर ऐतिहासिक नगरी मांडू (Mandu) के चतुर्भुज राम मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से ही लगी रही। हवन पूजन के साथ महाआरती की गई। जिसमें दूर-दूर से आए श्रद्धालु शामिल हुए। दुर्लभ वनवासी स्वरूप में भगवान राम की मूर्ति मांडू में विराजित हैं। धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से मांडू का इतिहास वैभवशाली रहा है। श्री राम की मूर्ति दुर्लभ और आकर्षक है। यह मूर्ति संवत 957 की है। ऐसा बताया जाता है कि चरण पीठ के नीचे मूर्ति करीब 1150 वर्ष से थी।

इस स्थान को चमत्कारिक माना जाता है। किवंदती है कि संवत 1823 में पुणे में साधना संत रघुनाथ दास महाराज को स्वयं प्रभु राम ने स्वप्न में आकर बताया कि मांडू में पूर्व की ओर गूलर के पेड़ के नीचे भैरव बाबा का मंदिर है। इस मंदिर के नीचे तलघर है, जहां में विराजमान हूं, अब मैं प्रकट होना चाहता हूं। जिसके बाद संत सुबह ही मांडू के लिए रवाना हुए। उन्होंने यहां पहुंचकर सपने के आधार पर स्थान को चिंहित किया। इसके बाद तत्कालीन पवार राजवंश की महारानी सकूबाई पवार को अपने सपने के बारे में बताया, इसके बाद रानी भी मांडू पहुंची। स्थानीय लोगों की उपस्थिति में स्थान की खुदाई करवाई गई, जहां से चतुर्भुज राम की मूर्ति के साथ सीता, लक्ष्मण, हनुमान, सूर्य नारायण देव के साथ जैन तीर्थंकर, भगवान शांतिनाथ की मूर्ति निकली। इस चमत्कारिक घटना की चर्चा पूरे देशभर में हुई। ऐसा बताया जाता है कि जब यह मूर्ति प्रकट हुई थी, उस समय श्रीराम के चरणों में दो दीपक जल रहे थे।

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