शब्बीर अहमद,भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में फतह हासिल करने के लिए बीजेपी-कांग्रेस अपनी राजनीतिक गोटिया फिट करने में जुटी हुई हैं. दोनों दल इस बार करीब 15 महीने पहले से ही चुनावी तैयारियों में जुट गए है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौतियां बीजेपी-कांग्रेस के सामने वो सीटें है, जो वो लंबे समय से नहीं जीत पाई है.

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साल 2023 के में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव का चुनाव होना है. इस बार का मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी में कांटे भरा रहने की उम्मीद है. लेकिन दोनों पार्टियों के सामने वो सीटें चुनौती बन गई है जिसे वो लंबे समय से जीत नहीं पाई है. अब दोनों सियासी दल एक दूसरे के गढ़ को ध्वस्त करने के लिए प्लानिंग तैयार कर रहे हैं. सबसे पहले बात करते हैं कांग्रेस की. क्योंकि कांग्रेस के सामने बीजेपी के मुकाबले बड़ी चुनौती है. करीब 2 दर्जन से ज्यादा ऐसी सीटें है, जहां कांग्रेस का लंबे समय से खाता नहीं खुला है.

इन सीटों पर BJP का है कब्जा

गोविंदपुरा सीट में 1980 से बीजेपी का कब्जा है. इंदौर-2 में 1993 से बीजेपी का कब्जा है.  इंदौर-4 सीट 1990 से बीजेपी के पास है. खंडवा 1990, देवास 1990, बुधनी 2003 से बीजेपी का गढ़ माना जा रहा है. 1993 जबलपुर कैंट, सागर 1993 से बीजेपी के पास है. इंदौर-5 सीट 2003, उज्जैन नॉर्थ 2003, उज्जैन साउथ 2003 से बीजेपी के पास है.  नीमच सीट 2003, जावद 2003, कुर्रवाई 2003 और गुना सीट पर 2003 से बीजेपी ने कब्जा कर रखा है.

इन सीटों पर कांग्रेस का है कब्जा

ये डेढ़ दर्जन सीटें है, जो पिछले दो दशक से बीजेपी जीत रही है. कांग्रेस की भी ऐसी आधा दर्जन सीटें है, जहां उसका लंबे समय से कब्जा है. कांग्रेस लगातार इन सीटों पर जीत दर्ज कर रही है. क्या बीजेपी इन सीटों पर अपना वर्चस्व बना पाएगी. राघौगढ़ सीट 1977, भोपाल उत्तर 1988, लहार 1993 से कांग्रेस का गढ़ माना जा रहा है.  पिछोर सीट 1993, राजनगर 2003, भितरवात 2008, गंधवानी 2008 और डिंडौरी सीट पर 2008 से कांग्रेस ने कब्जा कर रखा है.

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फिलहाल बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों की तरफ से दावा किया जा रहा है, वो इस बार पहले ही उन सीटों पर रणनीति बनाने में जुट गए है. जहां वो लंबे समय से हार रहे हैं. अब देखना होगा कि दोनों सियासी दल उन सीटों को कैसे जीतेंगे. जहां वो लंबे समय से जीत का स्वाद नहीं चख पाए हैं.

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