कुमार इंदर, जबलपुर। मध्यप्रदेश में बिजली टैरिफ बढ़ाने के मामले में नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच की मेहनत रंग लाई है। मंच की आपत्ति और विरोध के बाद हाईकोर्ट ने मामले में संज्ञान लिया है। बिना रेगुलेशन के बिजली के रेट तय करने के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार, विद्युत नियामक आयोग और ऊर्जा विभाग के सचिव को नोटिस जारी किया है।
शहर के नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने याचिका लगाई थी।

यह है पूरा मामला
मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी करते हुए बिजली के नए टैरिफ नियम बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसे लेकर नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच ने आपत्ति दर्ज कराई है। मंच के अध्यक्ष पीजी नाजपांडे और सदस्य रजत भार्गव ने इसे लेकर विद्युत नियामक आयोग को नोटिस भेजा था। नोटिस में कहा गया था कि, यदि विद्युत नियामक आयोग ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन नहीं किया तो मामले में हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की जाएगी।

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यह कहा था सुप्रीम कोर्ट ने
23 नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सारे राज्यों के विद्युत नियामक आयोग को कहा था कि, आयोग को बिजली के रेट निर्धारण करने के लिए नए सिरे से दर निर्धारण के मापदंड तय करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में आयोग को स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए कहा है कि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश जारी होने से 3 महीने के अंदर विद्युत अधिनियम की धारा 61 तथा राष्ट्रीय बिजली नीति को ध्यान में रखते हुए टैरिफ निर्धारण करने के नए रेगुलेशन बनाएं। मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने बगैर मापदंड बनाए बिजली के रेट निर्धारण करने की प्रक्रिया शुरू कर दी। साथ ही बिजली कंपनियों द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर 21 दिसंबर को सार्वजनिक सूचनाएं भी जारी कर दी।

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क्या कहता है नियम
दरअसल नियम के तहत यदि देखा जाए तो मध्यप्रदेश विद्युत नियामक आयोग को टैरिफ बढ़ाने के पहले कम से कम 2 राष्ट्रीय अखबार में नोटिस जारी करना होता है। इसके बाद आयोग लोगों द्वारा दावे आपत्ति बुलाता है। सारे दावे आपत्ति सुनने के बाद विद्युत नियामक आयोग टैरिफ बढ़ाने के बारे में अपना फैसला करता है।

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