कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्यप्रदेश के “ग्वालियर शहर”! इसके अतीत के आईने में झांकें तो न जाने कितनी यादें समेटे हुए है। यहां का किला सात समंदर पार तक अपनी पहचान रखता है। लेकिन ग्वालियर सिर्फ अपने किले के लिए ही नहीं,बल्कि कई ऐतिहासिक धरोहरों के लिए भी प्रसिद्ध है। इन्हीं में से एक है मोती महल। जो कभी सिंधिया राजघराने का सचिवालय हुआ करता था। यह मध्यभारत की पहली विधानसभा भी रहा,आजादी के बाद लम्बे समय तक कई प्रशासनिक विभागों के दफ्तर भी लम्बे समय तक यहां संचालित रहे।

मोती महल में मध्य भारत की विधानसभा बैठती थी

मोती महल का निर्माण 18वीं शताब्दी में महाराजा जयाजीराव सिंधिया द्वारा कराया गया था। कहा जाता है कि जयविलास पैलेस और मोती महल दोनों का निर्माण साथ-साथ हुआ था। जहां जयविलास पैलेस राजमहल के रूप में बना, वहीं मोती महल प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र था। इसलिए इसे सिंधियाओं का सचिवालय भी कहा गया।आजादी के बाद यह भवन मध्यभारत की विधानसभा के रूप में भी इस्तेमाल हुआ। वर्ष 1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तब ग्वालियर को मध्य भारत की राजधानी बनाया गया और मोती महल में मध्य भारत की विधानसभा बैठती थी।

“मोतियों का राजा” कहा जाने लगा

उस वक्त जीवाजी राव सिंधिया राज्य के राजप्रमुख थे और लीलाधर जोशी पहले मुख्यमंत्री बने। मोतीमहल मध्यभारत की विधानसभा के रूप में 1947 से 31 अक्टूबर 1956 तक कार्यरत रहा। कहा जाता है कि महाराजा जयाजीराव सिंधिया इसी महल के दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास में रियासत की नीतियों पर चर्चा किया करते थे। मोती महल नाम भी उस समय पड़ा, जब सिंधिया घराने को “मोतियों का राजा” कहा जाने लगा।

छतों पर 24 कैरेट सोने के वर्क का काम

महल का हर कोना इसकी गरिमा और कलात्मकता की गवाही देता है। दीवारों पर मोतियों के आकार की नक्काशी और छतों पर 24 कैरेट सोने के वर्क का काम आज भी आंखों को चकाचौंध कर देता है। तीसरी मंज़िल पर स्थित ‘रागरागिणी कक्ष’ तो मानो इतिहास को जीवित कर देता है। इसकी दीवारों पर चित्रित रागों और रागिणियों के दृश्य आज भी संगीत और संस्कृति की झलक दिखाते हैं, छह रागों की कुल 64 रागिणियां इस कमरे में सजीवता से उकेरी गई हैं।

महल की विशेषताएं

-मोतीमहल का निर्माण 18वीं शताब्दी में सिंधिया राजघराने के जयाजीराव सिंधिया ने कराया था।
-इसका आकार और वास्तुकला को देखे तो पूना के पेशवा पैलेस की तर्ज पर इसे बनाया गया था।
-यह महल सिंधिया राज्य का सचिवालय था,जहां दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास में रियासत की नीति-निर्धारण की बैठकें होती थीं।
-दरबार हॉल में विशेष झरोखे बनाये गए थे जहाँ शाही परिवार की महिलाएं बैठक राजनीतिक रणनीति, क्षेत्र विकास और आर्थिक नीतियों पर होने वाले मंथन को सुना समझा करती थी।
-यह महिलाओ के लिए एक तरह ही यूनिवर्सिटी हुआ करता था
-स्वतंत्रता के बाद 1947 में जब मध्य भारत राज्य बना, तब ग्वालियर को इसकी राजधानी बनाया गया और मोतीमहल मध्यभारत विधानसभा भवन बना।
-इसी भवन में मध्य भारत के पहले मुख्यमंत्री को शपथ दिलाई गई थी
-मोतीमहल में एक बड़ा दरबार हॉल है जिसमें दीवारों और छत पर सोने की परत चढ़ी हुई है,जो अपनी नक्काशी और कलाकृतियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है

महल में 4000 से अधिक कमरे
-दरबार हॉल में मौजूद झूमर भारत का सबसे विशाल झूमर का स्थान रखता है
-इसके जैसा एक झूमर जर्मनी की महारानी के रॉयल पैलेस में आज भी मौजूद है
-इस महल में 4000 से अधिक कमरे हैं ,जिनमें कई पुराने जमाने की पेंटिंग, शीशाकारी और भव्य सजावट आज भी मौजूद है
-मोतीमहल मध्यभारत की विधानसभा के रूप में 1947 से 31 अक्टूबर 1956 तक कार्यरत रहा
-उस समय मध्य भारत की छोटी-बड़ी 22 रियासतें शामिल थी
-मध्यप्रदेश की स्थापना के साथ मोतीमहल में कई विभाग और कार्यालय लम्बे समय तक संचालित होते रहे
-मूल रूप से यह ऐतिहासिक भवन पुरातत्व विभाग के संरक्षण के अधीन है

यह ग्वालियर की शान और इतिहास का सजीव दस्तावेज

यहां घूमने आने वाले पर्यटकों का भी कहना है कि मोतीमहल अपने नाम की तरह ही बहुत खूबसूरत और नायाब है। यहां मौजूद मध्यभारत की पहली विधानसभा की खूबसूरती सबसे अनोखी है, जिसे देखकर भारतीय संस्कृति और मध्यप्रदेश की समृद्धि को करीब से देखा जा सकता है। मोती महल सिर्फ एक इमारत नहीं, यह ग्वालियर की शान और इतिहास का सजीव दस्तावेज़ है। सरकार अब इस धरोहर के संरक्षण और जीर्णोद्धार के लिए तेजी से काम कर रही है, ताकि आने वाली पीढ़ियां मध्यभारत यानी मध्यप्रदेश के वैभवशाली अतीत को समझ और जान सके।

लालू राजावत- पर्यटक
केशव पांडेय — इतिहासकार

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