हेमंत शर्मा, इंदौर। मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर में 100 साल से झांकियां निकालने का सिलसिला आज भी जारी है। 32 साल पहले बंद हुई मिल के बाद आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद भी मिल मजदूरों ने झांकियां निकालने का सिलसिला जारी रखा। वर्तमान में कोई आर्थिक मदद नहीं मिल रही है। मिल जब संचालित थी तो मजदूर एक दिन का वेतन काटकर झांकी निकालने के लिए मदद करते थे।
दरअसल किसी जमाने में इंदौर को मिलों का शहर कहा जाता था जहां पर बड़ी संख्या में मिलें हुआ करती थी। आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए 1924 में सेठ हुकुमचंद ने झांकी निकालने की शुरुआत की थी। इन झांकियां को हुकुमचंद मिल से लेकर किशनपुरा पुल तक ले जाया जाता था, जहां पर खान नदी में गणपति जी का विसर्जन होता था। यह सिलसिला मिल मजदूरों ने आज भी कायम रखा है। हुकुमचंद मिल के प्रधानमंत्री गणेश उत्सव समिति के नरेंद्र श्री वंश ने बताया कि पहले निकलने के लिए मजदूर अपनी एक दिन की सैलरी कटवा कर झांकियां में चंदा दिया करते थे।
आज मिल को बंद हुए 32 साल हो चुके हैं इसके बाद भी झांकियों को निकालना और इंदौर की संस्कृति को जीवित रखना एक बड़ी चुनौती है। आज इस महंगाई के दौर में तीन झांकियां को पूरा करने में 10- लाख रुपए का खर्च आ रहा है। इंदौर नगर निगम और नंदा नगर संस्था द्वारा दी गई राशि से झांकियां को बनाकर पूरा नहीं किया जा सकता। इसके बाद बंगाल से आए कारीगर आज भी इन झांकियां को बनाने में बेजोड़ तरीके से जुड़े हुए हैं। इंदौर में राजकुमार मिल, हुकुमचंद मिल, भंडारी मिल, स्वदेशी मिल, मालवा मिल, कल्याण मिल आदि मिलकर अलग-अलग झांकियां निकाला करती है।
हुकुमचंद मिल के 6000 से ज्यादा मजदूर अपनी लड़ाई सरकार से लड़ते आ रहे हैं। 6000 मजदूरों में से 22 सौ मजदूरों की मौत भी हो चुकी है। 2007 में हाईकोर्ट के आदेश पर मध्य प्रदेश सरकार ने 229 करोड रुपए मंजूर किए थे जो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश होने के बाद 2017 में मात्र 50 करोड रुपए ही दिए गए। आज भी मिल मजदूर अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं। इसी बीच अनंत चतुर्दशी पर निकलने वाली झांकियां को पूरी मेहनत के साथ मिल मजदूर काम करने में पीछे नहीं है। हुकुमचंद मिल के गणेश उत्सव समिति के प्रधानमंत्री ने बताया कि विद्युत विभाग जाकर बिजली तक काट देता है। नगर निगम यहां पर सफाई तक नहीं करता, लेकिन हम इंदौर की संस्कृति को कभी खत्म होने नहीं देंगे।
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