कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर में शनिवार शाम को वीरांगना बलिदान मेला का शुभारंभ हुआ। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई शहादत की 165 वी वर्षगांठ पर झांसी के किले से आई शहीद ज्योति को समाधि स्थल पर स्थापित किया गया। महाराजबाड़ा से शहीद ज्योति यात्रा शुरू होकर रानी लक्ष्मीबाई समाधि स्थल पहुंची।
झांसी किले से बुंदेली युवा शहीद ज्योति शनिवार रात 7 बजे लेकर ग्वालियर पहुंचे। महाराजबाड़ा पर बलिदान मेला के संस्थापक पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया के साथ हजारों लोगों ने शहीद ज्योति की अगवानी की। महाराजबाड़ा से शहीद ज्योति बलिदान भूमि लक्ष्मीबाई समाधि पहुंची। समाधि स्थल पर लाकर शहीद ज्योति स्थापित की गई। पूर्व मंत्री ने ज्योति को रानी की समाधि पर स्थापित किया और पुष्पांजलि की। देशभक्ति गीतों के बीच हजारों लोगों ने रानी लक्ष्मीबाई समाधि पर नमन कर पुष्पांजलि चढ़ाई। जयभान सिंह पवैया ने कहा कि शहीद ज्योति आज रानी लक्ष्मीबाई की 1857 की क्रांति की याद दिलाती है। ग्वालियर की इस धरती पर रानी लक्ष्मीबाई ने शहादत दी थी। रानी के शहादत दिवस पर बीते 24 साल से वीरांगना बलिदान मेला आयोजित किया जा रहा है। इसके जरिए महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान को नमन किया जाता है।
बता दें कि, महारानी लक्ष्मीबाई की शहादत ग्वालियर में हुई थी। 18 जून को रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर किले पर अंग्रेजों से जमकर संघर्ष किया। दोनों हाथों में तलवार लेकर रानी ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा। किले से रानी अपने घोडे सहित स्वर्ण रेखा नदी किनारे कूद गई। घायल रानी गंगादास जी की शाला में पहुंची, जहां संतों ने रानी की देह को अंग्रेजों के हाथ नहीं लगने की इच्छा जताई। साधुओं ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी। 745 संत शहीद हो गए, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई की देह का अंतिम संस्कार संतों ने ही किया। इस जगह पर आज वीरांगना समाधि बन गई है।
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