कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। इमली तो आप सभी ने खाई होगी, थोड़ी खट्टी तो थोड़ी मीठी इमली सभी को पसंद होती है, लेकिन मध्य प्रदेश के ग्वालियर में सुर सम्राट तानसेन के मकबरे के पास लगा इमली का पेड़ किसी जादुई पेड़ से कम नहीं है। ये पेड़ संगीत प्रेंमियों के लिए गला सुरीला करने वाली किसी जड़ी बूटी से कम नहीं है। तानसेन इसी के नीचे बैठकर संगीत का रियाज करते थे और ध्रुपद के राग सुनाते थे। कहते हैं कि तानसेन इसी इमली के पत्ते खाकर अपनी आवाज को सुरीला करते थे। बाद में कई गायकों ने इसी इमली के पत्ते खाए और संगीत की दुनिया में नाम कमाया। केएल सहगल, पंकज उदास सहित कई गायकों ने तानसेन मकबरे पर लगे इमली के पत्ते खाए हैं।
संगीत सम्राट तानसेन के मकबरे पर लगा ये इमली का पेड़ संगीत प्रेमियों के लिए बड़ी आस्था का विषय माना जाता है। कहा जाता है कि इस इमली के पेड़ के पत्ते और छाल खाने से गला सुरीला होता है। यही वजह है कि पहले इस जगह बड़ा पेड़ था। उसकी पत्तियां तो क्या छाल और जड़ों को भी लोग अपने साथ ले गए।
कई सौ साल पुराना पेड़ जब सूख कर खत्म हो गया तो यहां आने वाले संगीत प्रेमियों को निराशा होने लगी। लिहाजा इस स्थान पर इमली के पेड़ को फिर से जिंदा किया गया। इतिहास कार मानते है कि इस जगह तानसेन की रूह बसती है। दूर दूर से संगीत प्रेमी यहां आते है और इमली के पत्तों को तानसेन का प्रसाद मानकर साथ ले जाते हैं और खाते है।
ऐसी मान्यता है कि संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर लगे इमली के इस पेड़ में उनकी रूह बसती है और जो भी इस पेड़ की पत्तियां खाता है उसकी आवाज सुरीली हो जाती है। यही वजह है कि तानसेन की समाधि स्थल पर आने वाले लोग इस पेड़ की पत्तियां खाते हैं। संगीत प्रेमियों का मानना है कि लोगों की इस पेड़ को लेकर गहरी आस्था है।
पुराना पेड़ कई सौ साल पुराना होने के बाद गिर गया था। अब नए पेड़ में पत्तियां आ गई हैं, तो संगीत प्रेमी यहां आकर पत्तिया ले जाने लगे हैं। सुर सम्राट तानसेन अकबर के 9 रत्नों में से एक रत्न थे और उनके जीवन में इस इमली के पेड़ का बहुत महत्व था। यही वजह है कि सुर सम्राट तानसेन को पूजने वाला हर शख्स इस इमली के पेड़ को पूजता भी है और उसको प्रसाद के रूप में खाता भी है।
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