कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। उत्तरप्रदेश के बाद अब मध्यप्रदेश में भी विधानसभा चुनाव की राजनीतिक पार्टियां तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल अंचल में बीजपी के लिए टिकट बांटना बड़ी चुनौती होगी। अंचल की एक-एक सीट पर बीजेपी के कई दावेदार मैंदान में आ चुके हैं। पढ़िए खास रिपोर्ट….

उत्तरप्रदेश में भाजपा की वापसी के बाद अब मध्यप्रदेश में भी चुनावी माहौल बनने लगा है। बीजेपी ने चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है। ग्वालियर चंबल अंचल में तो भाजपा के टिकट के लिए दावेदारों की फौज मैंदान में उतर चुकी है। ग्वालियर जिले की विधानसभा सीटों की बात करें तो पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा ने चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है, जो सुर्खियों में आ चुका है.

ग्वालियर जिले की इन सीटों पर टिकट वितरण की चुनौती

ग्वालियर पूर्व सीट से उपचुनाव में हारने वाले सिंधिया खेमे के मुन्ना लाल गोयल के साथ ही माया सिंह, अनूप मिश्रा दावेदार हैं।
वहीं ग्वालियर सीट से स्थानीय विधायक और ऊर्जामंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर को टिकट मिलना पक्का माना जा रहा है, लेकिन हाल ही में पूर्वमंत्री जयभान सिंह भी मैंदान में आ गए हैं,

एक सीट पर कई दावेदार

ग्वालियर दक्षिण सीट से पुराने भाजपाई पूर्व मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा, पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता और सिंधिया खेमे के मदन कुशवाहा टिकट के लिए दावेदारी कर रहे हैं। डबरा सीट की बात करें तो यहां से चुनाव हार चुकीं सिंधिया समर्थक इमरती देवी के साथ कप्तान सिंह सहसारी, हरीश मेवा फरोश टिकट के लिए दावेदारी जता रहे हैं। वहीं भितरवार सीट से अनूप मिश्रा, नरोत्तम मिश्रा के भतीजे विवेक मिश्रा और सिंधिया के खास मोहन सिंह राठौर टिकट के लिए दौड़ लगा कर रहे हैं।

कांग्रेस के पास नहीं है उम्मीदवार- बीजेपी

इसके साथ ही गोहद, करैरा, मुरैना, गुना की सीटों पर भी BJP के दावेदारों की संख्या 3 से ज्यादा हैं। दावेदारों की संख्या अधिक होने पर भाजपा में टिकट वितरण आसान नहीं है। हालांकि भाजपा ज्यादा दावेदारों को पार्टी के लिए बेहतर संकेत बता रही है। BJP का तर्क है कि उनकी पार्टी में योग्य नेता हैं, जिसके चलते दावेदार ज्यादा हैं, लेकिन जो सबसे योग्य और जनता का पसंदीदा होगा, उसको पार्टी टिकट देगी। साथ ही कांग्रेस पर तंज कसा है कि कांग्रेस के पास तो चुनाव लड़ाने के लिए उम्मीदवार नहीं है।

वहीं भाजपा के दावेदार भी मानते हैं कि प्रजातंत्र में 5 साल में एक बार मौका आता है, जब जनता अपने एमएलए और सांसद को चुनती है। जनता के लिए जो काम करेगा, वही टिकट पाएगा। हांलाकि उम्मीदवारी के बाद टिकट की कितनी उम्मीद है इसको लेकर वह मानते हैं कि यह आने वाला वक्त ही तय करेगा।

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