कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहर का रहने वाला एक युवक अपने मृत भाई को न्याय दिलाने अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने जा रहा है। यह कानूनी लड़ाई भी किसी आम व्यक्ति से नहीं, बल्कि पुलिस डिपार्टमेंट से है। यह मामला दतिया पुलिस के एक एनकाउंटर से जुड़ा है। जहां दतिया पुलिस ने जिस युवक को मुठभेड़ में मार दिया था। वह युवक खुशालीराम निर्दोष था। हाइकोर्ट ने भी इस बात को मान लिया है कि खुशालीराम का एनकाउंटर नहीं होना था। ऐसे में हाईकोर्ट ने शासन पर 1 लाख रुपए की कोस्ट लगाने के साथ इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर के खिलाफ जांच के निर्देश भी दिए हैं। हालांकि, परिजन की CBI जांच की मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

दरअसल, हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने दतिया के थरेट थाना क्षेत्र में करीब दो दशक पहले हुए एक विवादास्पद एनकाउंटर को लेकर जांचकर्ता अधिकारी पर कार्रवाई के लिए शासन को पत्र लिखा है। जो कई बार बुलाने के बाद भी खात्मा रिपोर्ट के मामले में अपने बयान देने न्यायालय में उपस्थित नहीं हुए। वहीं शासन पर डिवीजन बेंच ने एक लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है। मामला दतिया के बहुचर्चित छोटू उर्फ खुशालीराम केवट एनकाउंटर से जुड़ा है। जिसे साल 2006 में दतिया पुलिस ने एक एनकाउंटर में उसके कथित साथी अमर सिंह के साथ मुठभेड़ दिखाकर मार दिया था। खुशालीराम अपने दो भाइयों और मां के साथ डबरा स्थित घर में था। एक रात दतिया पुलिस उसके घर अचानक पहुंची और तीनों भाइयों को उठाकर ले गई। बुजुर्ग मां कई दिनों तक पुलिस अधिकारियों के चक्कर लगाती रही और अपने तीनों बेटों की रिहाई की मांग करती रही। पुलिस अधिकारियों ने बाद में छोटू उर्फ खुशालीराम के अलावा उसके दोनों भाइयों को छोड़ दिया।

ऐसे हुआ मामले का खुलासा

कुछ दिन बाद दतिया पुलिस ने दावा किया कि उसने थरेट इलाके में दो कुख्यात डकैतों को मुठभेड़ में मार गिराया है। जब दोनों डकैतों के फोटो अखबार में छपे तब जनका बाई केवट को पता चला कि इसमें उसका एक बेटा छोटू उर्फ खुशालीराम भी है। जबकि दूसरा युवक अमर सिंह को डकैत बताया गया। जिस दूसरे डकैत बृज किशोर उर्फ कालिया को पुलिस ने मारना बताया था। वह उस समय झांसी की जेल में बंद निकला था। जनका बाई केवट ने पुलिस अधिकारियों से मामले की शिकायत की और इसमें दोषियों पर कार्रवाई करने की मांग की। छोटू कोई अपराधी नहीं था, उसके खिलाफ 2003 में एक आर्म्स एक्ट का केस ही दर्ज था। महिला ने इस मामले में सीबीआई से जांच करने की मांग करती रही, लेकिन शासन की ओर से बताया गया कि उसने मजिस्ट्रियल जांच करा ली है। उसमें कोई भी खामी नहीं पाई गई है। लेकिन तत्काल सीआईडी अधिकारी वीरेंद्र मिश्रा ने माना था कि अमर सिंह के साथ मारा गया युवक डकैत बृज किशोर उर्फ कालिया नहीं था।

मुठभेड़ में किसे मारा गया?

आखिर पुलिस ने किस युवक को मुठभेड़ में मारा था। इसके बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। जनका बाई केवट ने हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में रिट याचिका दायर की। सरकार की ओर से बताया गया कि पुलिस ने लंबे अरसे तक इस मुठभेड़ की जांच नहीं की थी। इसलिए शासन पर 20,000 की कास्ट लगाई गई। महिला अपने जवान बेटे की मौत से काफी आहत थी, उसने क्षतिपूर्ति राशि के अलावा सीबीआई की जांच की मांग को लेकर रिट अपील डिवीजन बेंच में दायर की। जिस पर डिवीजन बेंच ने शासन पर लगाई गई 20,000 की कास्ट को एक लाख कर दिया है और तत्कालीन आईओ के खिलाफ कोर्ट में जवाब नहीं देने पर उनके खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। लेकिन सवाल अभी भी वहीं खड़ा है कि किस निर्दोष युवक को आखिरकार पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था।

नहीं मिली कोई क्षतिपूर्ति

दुखद पहलू यह भी है कि अपने बेटे को इंसाफ दिलाने की मांग करने वाली मां जनका बाई केवट अब इस दुनिया में नहीं है।छोटू का भाई बालकिशन इस कानूनी लड़ाई को लड़ रहा है। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अब बालकिशन सुप्रीम कोर्ट जाने की कोशिश में है। क्योंकि उसके भाई के हत्यारे पुलिसकर्मियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है, न ही उसे कोई क्षतिपूर्ति मिली है।

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