शिखिल ब्यौहार, भोपाल। एक बार फिर मध्यप्रदेश और गुजरात के बीच नर्मदा जल को लेकर विवाद की स्थिति बन रही है। दरअसल, नर्मदा जल समझौते के तहत दोनों ही प्रदेशों के बीच करार हुआ था। इस करार के तहत एमपी को 45 साल में अपने हिस्से के पानी का उपयोग करना है। इसकी डेडलाइन आगामी 10 माह बाद दिसंबर 2024 में पूरी होने जा रही है।
इस अवधि में यदि अपने हिस्से का पानी उपयोग नहीं किया तो गुजरात में पानी के उपयोगिता का अधिकार होगा। साथ ही मामला नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के समक्ष होगा। डेडलाइन को देखते हुए एमपी सरकार हरकत में आई है। साथ ही 15 हजार करोड़ के सिंचाई प्रोजेक्ट को मंजूरी देने की तैयारी कर ली है। इन प्रोजेक्टों के जरिए सिंचाई का रकबा पांच लाख लाख हेक्टेयर बढ़ जाएगा।
बता दें कि नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण ने 1979 में नर्मदा जल समझौते के तहत चार राज्यों में पानी का बंटवारा किया था। इसमें सबसे ज्यादा 18.25 एमएएफ मध्यप्रदेश के हिस्से में आया। गुजरात को 9.0, राजस्थान को 0.5 और महाराष्ट्र को 0.25 एमएएफ पानी उपयोग का अधिकार मिला। बताया जा रहा है कि मध्यप्रदेश में 35 फीसदी जल उपयोग किया जाना बाकी है।
नर्मदा जल को लेकर सियासत
वहीं इस मामले को लेकर सियासत भी शुरू हो गई है। कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता अभिनव बरोलिया ने बताया कि सरकार की लापरवाही के कारण ही किसानों समेत पूरे प्रदेश का नुकसान हो रहा है। न ही जल उपयोगिता की प्लानिंग की गई न ही प्रोजेक्टों पर अमल। जो प्रोजेक्ट बनाए गए उनमें भी भारी धांधली की गई। एमपी सरकार सिर्फ इवेंट में लगी हुई है।
इधर, बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता नरेंद्र सलूजा ने कहा कि एमपी के पास विजन भी है और उपयोगिता का प्लान भी। दस माह में पानी का उपयोग किया जाएगा। बीजेपी ने दिग्विजय सिंह शासनकाल का हवाला देते हुए यह भी कहा कि बीती सरकारों में सिंचाई के साथ बिजली को किसान तरसते थे। लिहाजा कांग्रेस यह न सिखाए कि प्रदेश में विकास कैसे किया जाता है। बीजेपी ने दावा किया कि नर्मदा जल को लेकर किसी भी प्रकार का विवाद नहीं होगा।
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