कुमार इंदर, जबलपुर। मध्यप्रदेश के जबलपुर में शासकीय नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज परिसर में एक मृत मरीज का शव ले जाने को लेकर एंबुलेंस संचालक आपस में भिड़ गए। इस दौरान एक पक्ष ने दूसरे पक्ष पर प्लास्टिक के पाइप से हमला कर दिया। इस दौरान बीच बचाव करने वाले साथी के साथ भी मारपीट की गई। घटना शुक्रवार सुबह की बताई जा रही है। पीड़ित ने गढ़ा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई है।  

अस्पताल में युवक की मौतः ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिलने का आरोप लगा परिजनों ने सड़क किया जाम

सर्वेंट क्वाटर गढ़ा निवासी विशाल बाल्मीक ने गढ़ा थाने में शिकायत दर्ज करते हुए बताया कि वह एंबुलेंस चलाता है रोजाना की तरह सुपर स्पेशलिटी अस्पताल मेडिकल से फोन आया कि एक शव को सिहोरा ले जाना है। एंबुलेंस लेकर मौके पर पहुंचा तो वहां पहले से मौजूद राजवीर और बबलू बाल्मीक खड़े हुए थे। दोनों के द्वारा कहा गया कि सिहोरा शव उनकी गाड़ी ले जाएगी इस पर दोनों से कहा कि परिजनों ने उसकी बात हो गई। इस बात पर बबलू और राजवीर नाराज हो गए और गाली-गलौज करने लगे। गाली देने से मना किया तो दोनों ने प्लास्टिक पाइप से हमला कर दिया जिसमें हाथ-पैर और पीठ में गंभीर चोट आई है।

MP भीषण सड़क में एक ही परिवार के तीन की मौत: कार और ट्रक की आमने-सामने भिड़ंत, तीन घायल

बताया जा रहा है कि इससे पहले भी एंबुलेंस संचालक बबलू और राजवीर शव और मरीज को लाने और ले जाने को लेकर कई बार विवाद कर चुका है लेकिन पुलिस ने हर बार दोनों को समझाइश देकर छोड़ दिया। नतीजा ये हुआ कि दोनों ने फिर से मेडिकल परिसर के अंदर गुंडागर्दी करते हुए मारपीट की। फिलहाल पुलिस ने आरोपियों की तलाश तेज कर दी है।  

जबलपुर जिले का ही नहीं बल्कि महाकौशल का सबसे बड़ा नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज इन दोनों गुंडागर्दी का अड्डा बन चुका है, मरीज को ले जाने वाली एंबुलेंस ही यहां पर आए दिन झगड़े फसाद की वजह है, कारण मेडिकल कॉलेज में एक ही परिवार का कब्जा जमा हुआ है जो किसी भी दूसरी एंबुलेंस को मेडिकल के अंदर प्रवेश नहीं करने देता और जब भी कोई एंबुलेंस मेडिकल कॉलेज में प्रवेश करता है तो उसके साथ यहां पर गुंडागर्दी की जाती है। मारपीट की जाती है एंबुलेंस में तोड़फोड़ तक की जाती है।

शुक्रवार की घटना भी इसी एक ही परिवार के कब्जे की वजह है। बीती रात हुई घटना भी यही बयां कर रही है। मेडिकल में इलाज कराने आए एक मरीज की बीती रात मौत हो गई थी, जिसका शव ले जाने के लिए परिजनों ने एंबुलेंस किया लेकिन जब मेडिकल के अंदर कब्जा जमाए लोगों ने पैसे ज्यादा मांगे तो परिजनों ने बाहर खड़ी एम्बुलेंस ले आए। बाहर से आई एम्बुलेंस में जैसे ही शव रखा गया मेडिकल में कब्ज़ा जमाए लोगों ने उस शव को नीचे उतार एम्बुलेंस संचालक के साथ मारपीट की। पीड़ित एंबुलेंस संचालक का कहना है कि उसने घटना की शिकायत गढ़ा थाने में भी की लेकिन गढ़ा पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। वहीं पुलिस का कहना है कि, उन्होंने मामला कायम कर जांच शुरू कर दी है। लेकिन हकीकत ये है की अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

इससे पहले भी कलेक्टर बना चूके है गाईड लाइन 

यह कोई पहला मौका नहीं है जब मेडिकल कॉलेज में एंबुलेंस के संचालक को लेकर इस तरह की मारपीट हुई है, इससे पहले भी कई मर्तबा एंबुलेंस संचालक वर्चस्व की लड़ाई को लेकर विवाद होते रहे हैं। इसी का नतीजा था कि इससे पहले जबलपुर कलेक्टर रहे डॉक्टर इलैया राजा टी ने आदेश लागू कर दिया था कि, मेडिकल कॉलेज के अंदर किसी की भी एंबुलेंस नहीं रहेगी, जब तक डॉ इल्लिया राजा जबलपुर के कलेक्टर थे तब तक तो उनके आदेश पर अमल होता रहा।  लेकिन जैसे इलैयाराजा यहां से ट्रांसफर होकर निकले फिर से एंबुलेंस संचालकों  की मेडिकल के अंदर धमाचौकड़ी शुरू हो गई।

एंबुलेंस संचालक और अस्पतालों की है मिली भगत 

दरअसल एंबुलेंस का खेल सिर्फ मारपीट तक ही सीमित नहीं है, बल्कि एंबुलेंस संचालक और कई  निजी अस्पतालों के बीच में एक मिली भगत का खेल भी चल रहा है। खेल कुछ इस तरह है कि एंबुलेंस संचालकों और निजी अस्पतालों के बीच में ऐसी सांठगांठ है कि एंबुलेंस के ड्राइवरों को जिन मरीजों को लेकर सरकारी मेडिकल कॉलेज या जिला अस्पताल जाना होता है वह एंबुलेंस संचालक मरीजों को गुमराह करके निजी अस्पताल ले जाते हैं। जहां पर एंबुलेंस संचालकों को अच्छी खासी मोटी रकम दी जाती है यहां तक की एक-एक मरीज पर 25-25 हजार रुपये एक-एक एंबुलेंस की कमीशन के तौर पर बंधा हुआ है।

शवों के साथ भी की जाती है शैतानियत 

मेडिकल कॉलेज में हो या फिर जिला अस्पताल में एंबुलेंस संचालक शवों के साथ भी सौदा करना नहीं छोड़ते। दूसरे जिले में शव ले जाने के लिए इस तरह से पैसे लिए जाते है जिसका कोई हिसाब किताब ही नहीं है। जबलपुर से मंडला की दूरी 100 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए भी 20 से 25 हज़ार रुपए एंबुलेंस संचालक के द्वारा मांगे जाते हैं। लेकिन किसी भी परिजनों की इतनी हिम्मत नहीं है कि वह इनके मनमाने पैसे देने से मना कर दे। एंबुलेंस संचालक जानते हैं कि उनकी मोनोपोली इतनी है कि उनके अलावा कोई यहां से शव ले ही नहीं जा सकता।

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus