कुमार इंदर, जबलपुर। मध्यप्रदेश के 453 नर्सिंग कॉलेजों से जुड़े मामले की आज हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमथ और जस्टिस पी.के कौरव की डबल बेंच में सुनवाई की गई। इस दौरान प्रदेश के सभी 453 नर्सिंग कालेजों के ओरिजनल दस्तावेजों को पेश किया गया। राज्य सरकार की तरफ से अधिवक्ता स्वप्निल गांगुली ने बताया कि लगभग 35 हजार पन्नों की ये रिपोर्ट है जिसमें ऑरिजनल दातावेज लगे हुए हैं।
‘केबिन में बुलाकर कॉफी पिलाएं और दस्तावेजों का करवाएं परीक्षण’
लॉ स्टूडेंट एसोसिएशन की तरफ से मध्य प्रदेश के 453 नर्सिंग कॉलेजों के खिलाफ याचिका दायर की गई है। याचिका में बताया गया है कि कि बारात घर और होटलों में नर्सिंग कॉलेज खुले हुए हैं, जिस पर आज राज्य सरकार ने नर्सिंग कॉलेजों से संबंधित दस्तावेज पेश किया। इन दस्तावेजों की याचिकाकर्ता ने अवलोकन की मांग की। पर शासकीय अधिवक्ता ने ओरिजिनल दस्तावेजों का हवाला देते हुए आपत्ति जाहिर की। इस पर हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए शासकीय अधिवक्ता को कहा कि ‘ याचिकाकर्ता के वकील को आप अपने केबिन में ले जाकर कॉफी पिलाते हुए दस्तावेजों का परीक्षण करवाएं”..अब मामले की सुनवाई कोर्ट की छुट्टियों के बाद होगी।
लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल की तरफ से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि, शैक्षणिक सत्र 2020-21 में प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में 55 नर्सिंग कॉलेजों को मान्यता दी गई थी। मध्य प्रदेश नर्सिंग रजिस्ट्रेशन काउंसिल ने निरीक्षण के बाद इन कॉलजों को मान्यता दी गई थी, जबकि वास्तविकता में यह कॉलेज सिर्फ कागज में संचालित हो रहे हैं ऐसा कोई कॉलेज नहीं है जो निर्धारित मापदण्ड पूरा करता हो। अधिकांश कॉलेज की निर्धारित स्थल पर बिल्डिंग तक नहीं है। कुछ कॉलेज सिर्फ चार-पांच कमरों में संचालित हैं। ऐसे कॉलेज में प्रयोगशाला समेत अन्य आवश्यक संरचना नहीं है। बिना छात्रावास ही कॉलेज का संचालन किया जा रहा है। नर्सिंग कॉलेज को फर्जी तरीके से मान्यता दिए जाने के आरोप में मध्य प्रदेश नर्सिंग रजिस्ट्रेशन काउंसिल के रजिस्ट्रार को पद से हटा दिया गया था।
आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस अभ्यार्थियों को बड़ी राहत
मध्य प्रदेश हाईकार्ट ने आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस ओबीसी/एससी/एसटी वर्ग के आरक्षकों राहत देते हुए डारेक्टर जनरल आफ पुलिस और एडीजी (प्रशासनिक) को 2 महीने के अंदर चॉइस के आधार पर पोस्टिंग देने के आदेश दिए हैं। दरअसल, साल 2017 की पुलिस भर्ती में आरक्षित वर्ग यानी (OBC/SC/ST) के अभ्यर्थी मेरिट में आने के बाद उनका चयन अनारक्षित(ओपन) वर्ग में किया गया था, लेकिन उनको उनकी पसंद के आधार पर पोस्टिंग नहीं दी गई थीं। सभी आरक्षित वर्ग के लोगों को अनारक्षित वर्ग में चयन होने के बाद भी सभी को SAF बटालियनों में पदथापना दी गई थी। जबकि उनको मेरिट के बेस पर जिला पुलिस बल, स्पेशल ब्रांच, क्राइम ब्रांच आदि शाखाओं में पदस्थापना दी जाना थी। लिहाजा याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने कोर्ट को बताया कि पुलिस विभाग द्वारा वर्ष 2017 की भर्ती में अपनाई गई प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश और फैसलों के अनुसार नहीं है।
वकील ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की 9 जजो की बैंच के इंद्रा शाहनी बनाम भारत संघ, भारत संघ वनाम रमेश राम, रीतेश आर शाह जैसे दर्जनों फैसलों से कोर्ट को अवगत कराया । वकील ने कोर्ट को बताया कि आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस अभ्यर्थी को अपनी पसंद के पद पर पोस्टिंग प्राप्त करने का कानूनी अधिकार है। अर्थात याचिकाकर्ताओं ने अपनी पहली पसंद की वरीयता में जिला पुलिस बल, स्पेशल ब्रांच आदि में दी थी, लेकिन पुलिस विभाग ने मनमाने रूप से पोस्टिंग कर दी।कोर्ट ने सुनवाई के बाद ग्रह सचिव, पुलिस महानिदेशक, अतिरिक्त पुलिस महा निरीक्षक को आदेश देते हुए 60 दिनों के अंदर याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के आधार पर उनकी पसंद के आधार पर पदस्थापना देने के आदेश दिए हैं।
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