भोपाल। मध्य प्रदेश में में विधानसभा चुनावा हुए ढाई साल से भी ज्यादा का वक्त बीत चुका है। ऐसे में प्रदेश की तीनों विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को 2023 के पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा है। ऐसे में ये चुनाव बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए खासी अहमियत रखने वाले हैं। मतदान के लिए महज 15 दिन ही शेष बाकी है, ऐसे में दोनों ही दल कोई भी कोर कसर न छोड़ते हुए जोर शोर से प्रचार में जुटे हुए हैं। प्रचार के बीच आखिर जनता के मुद्दे क्या हैं… जनता किन मुद्दों पर वोट डालने जा रही है.. किसका पलड़ा भारी है और कौन पिछड़ रहा है। ये हम आपको बताएंगे। पहले हम आपको ले चलते हैं रैगांव के रण में।

रैगांव का इतिहास

1977 से अस्तित्व में आई सतना जिले की रैगांव विधानसभा सीट पर अब तक 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं। जिनमें से पांच बार बीजेपी ने जीत दर्ज की है तो दो बार इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली है। जबकि एक बार बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी ने विजयश्री हासिल की थी। इसके अलावा दो बार अन्य दलों के प्रत्याशियों ने भी यहां जीत का स्वाद चखा है। यही वजह है कि रैगांव विधानसभा सीट को बीजेपी का गढ़ माना जाता है।

यहां 1993 से बीजेपी लगातार चुनाव जीतते आई है। हालांकि साल 2013 में बीएसपी की उषा चौधरी ने जीत दर्ज की थी। इस सीट से बीजेपी के जुगल किशोर बागरी पांच बार विधायक चुने गए। बागरी पहली दफा साल 1993 में, 1998 में दूसरी, 2003 में तीसरी, 2008 में लगातार चौथी बार विधायक बनकर इतिहास रच दिया था। लेकिन उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए पार्टी ने साल 2013 में उनके बड़े बेटे पुष्पराज बागरी को टिकट दिया था लेकिन वे बसपा की उषा चौधरी से चुनाव हार गए। बुजुर्ग बागरी पर साल 2018 पर पार्टी ने फिर से भरोसा जताया और वे फिर से विधायक चुने गए। साल 2003 में उमा भारती ने अपनी सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी थी लेकिन लोकायुक्त के एक मामले में उन्हें मंत्री पद गंवाना पड़ गया।

कांटे की टक्कर

भाजपा विधायक जुगल किशोर बागरी का कोरोना से निधन हो गया था। जिसके बाद रैगांव विधानसभा सीट खाली हुई थी। पारिवारिक विवाद में उलझी पार्टी ने यहां से बागरी की भतीजी प्रतिमा बागरी को टिकट दिया है। प्रतिमा बागरी युवा हैं और बीजेपी महिला मोर्चा में लंबे समय से सक्रिय थीं, उन्हें पार्टी ने जिला महामंत्री का दायित्व सौंपा था। महिला के साथ युवा को टिकट देकर बीजेपी ने यहां अपने परंपरागत वोटरों के अलावा युवा वर्ग और महिलाओं को भी साधने की कोशिश की है। वहीं कांग्रेस ने कल्पना वर्मा पर अपना दांव खेला है। कल्पना वर्मा को कांग्रेस ने साल 2018 के चुनाव में टिकट दी थी लेकिन जुगल किशोर बागरी ने उन्हें एक बड़े अंतर से तकरीबन 18 हजार वोटों से मात दी। बीजेपी प्रत्याशी जुगल किशोर बागरी 65910 वोट पाकर विजयी हुए थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी कल्पना वर्मा को 48489 मिले और बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी ऊषा चौधरी ने भी 12 हजार से ज्यादा वोट पाकर तीसरे पायदान पर जगह बनाई थी।

बीजेपी की इस परंपरागत सीट पर कब्जा जमाने के लिए कांग्रेस ने भी खासी तैयारी की है। दमोह उपचुनाव की तर्ज पर कांग्रेस ने इस सीट के लिए अलग रणनीति तैयार की है। कांग्रेस द्वारा सर्वे कर इस सीट के लिए अलग घोषणा पत्र तैयार कर रही है।

जातीय समीकरण

सतना जिले की रैगांव विधानसभा सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है। इस विधानसभा में 2 लाख 6 हजार 910 मतदाता है। जिसमें कि पुरुष मतदाताओं की संख्या 1 लाख 9 हजार 750, महिला मतदाता- 97 हजार 160, दिव्यांग 2 हजार 738 और सर्विस वोटर्स 518 हैं। यहां सामान्य वर्ग के लगभग 83 हजार वोटर, पिछड़ा वर्ग के 27 हजार वोट हैं, अनुसूचित जाति की 77 हजार एवं अनुसूचित जनजाति के 22 हजार मतदाता हैं। जातीय समीकरण की बात करें तो ब्राह्मण और क्षत्रिय बहुल इस सीट पर सामान्य वर्ग का मतदाता ही निर्णायक रहा है। जिसका वोट लगातार भाजपा के पाले में जाते रहा है। हालांकि इस उपचुनाव में कई विकास सहित कई मुद्दे ऐसे हैं जिनसे भाजपा की राह यहां आसान नहीं दिखती।

भीतरघात का डर

जुगल किशोर बागरी के बेटे पुष्पराज बागरी और उनकी बहु रानी बागरी ने इस सीट पर दावा किया था लेकिन बीजेपी ने इनमें से किसी को भी टिकट नहीं दिया। जिसके बाद दोनों ने निर्दलीय ताल ठोक दिया था। हालांकि बीजेपी के नेताओं के हस्तक्षेप के बाद पुष्पराज बागरी और रानी बागरी ने अपना नामांकन वापस ले लिया है। लेकिन उनकी नाराजगी का असर वोटों पर पड़ सकता है। हालांकि बीजेपी की नजर अपने नेताओं के साथ ही कांग्रेस के लोगों पर भी है। जिन्हें वह अपने पाले में लाने की लगातार कोशिश भी कर रही है।

ये है चुनौतियां

रैगांव बीजेपी की परंपरागत सीट है उसके साथ ही प्रदेश में भी बीजेपी की ही सरकार है। बावजूद इसके आज भी रैगांव विकास के लिए तरस रहा है। यहां न कोई बड़ा स्कूल है, जो स्कूलें मौजूद हैं उनकी स्थिति भी दयनीय हो चुकी है। सड़कें खराब हैं, पानी की व्यवस्था नहीं है। कृषि प्रधान यह क्षेत्र पिछले तीन दशकों से भी ज्यादा समय से सिंचाई के लिए नहर की राह तक रहा है। नर्मदा परियोजना के तहत बन रही नहर आज तक तीन-चार दशक बीतने के बाद भी पूरी नहीं हो सकी और आज भी इसका कार्य जारी है। क्षेत्र में बिजली की काफी समस्या है, बिजली की आंख मिचौली के चक्कर में किसानों को अपने खेत में पानी लगाने के लिए रतजगा करना पड़ता है। यहां पुराने किए गए वादे पूरे नहीं होने से लोगों में नाराजगी भी है। ये ऐसे मुद्दे हैं जो बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती है।

वहीं कांग्रेस की राह भी आसान नहीं है। स्टार प्रचारक बनाए गए अजय सिंह राहुल की गिनती विंध्य क्षेत्र के बड़े नेताओं में होती है। उनकी नाराजगी भी किसी से छिपी नहीं है। इस सीट पर क्षत्रिय वोटों पर उनका खासा दबदबा है। जिसका असर भी चुनावों में दिख सकता है।