इमरान खान, खंडवा। मध्यप्रदेश के खंडवा जिले (Khandwa) में खेती को लाभ का धंधा बनाने और महिलाओं को इससे जोड़ने के लिए कुसुम (KUSUM) की खेती (Farming) की जा रही है। ग्रामीण आजीविका मिशन (Rural Livelihood Mission) के माध्यम से महिलाओं के स्व सहायता समूह (Self Help Group) को कुसुम के बीज और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई गई। आज यह महिलाएं आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही है। इससे महिलाओं की आर्थिक स्थिति तो मजबूत होगी ही साथ ही समाज में आयुर्वेद के प्रति लोगों का रुझान भी बढ़ेगा। क्योंकि कुसुम के फूल पत्ती कहीं तरह की दवाइयों में उपयोग की जाती है।
कुसुम एक तिलहन फसल है। इसका बायोलॉजिकल (Biological) नाम कार्थमस टिंटिरीयस है। इसका फूल बीज और पत्ती तीनों ही आयुर्वेदिक दवा (Ayurvedic Medicine) बनाने के काम आता है। ग्रामीण आजीविका मिशन ने स्व सहायता समूह की महिलाओं को आर्थिक रूप से संपन्न बनाने के लिए उन्हें कुसुम के बीज और तकनीकी मार्गदर्शन उपलब्ध कराया। खेती को लाभ का धंधा बनाने की दिशा में यह सकारात्मक पहल की गई। खंडवा के 13 गांव की 120 महिलाएं लगभग 125 एकड़ भूमि में कुसुम की खेती कर रही हैं। करीब 2 महीने की मेहनत के बाद इनके खेत अब फूलो के रंग से पटे पड़े हैं और सुनहरे भविष्य की ओर इशारा कर रहे हैं।
कई तरह की बीमारियों के इलाज में होता है उपयोग
प्राचीन ग्रंथों में कुसुम के बीज और फूल का कई तरह की बीमारियों के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है। आयुर्वेदिक दवाई बनाने वाली कंपनियों में भी इनकी बहुत डिमांड (Demand) है। यही कारण है कि राज्य सरकार ने महिलाओं को आत्मनिर्भर (Self-reliance) बनाने के लिए कुसुम जैसे आयुर्वेदिक फसलों का सहारा लिया है। कुसुम की खेती कम पानी और हल्की जमीन में भी भरपूर पैदावार देती है। साथ ही इसका फूल भी महंगे दामों पर बिकता है। इसका फूल शुगर, बीपी जोड़ों का दर्द और महिलाओं से संबंधित बीमारियां दूर होने में कारगर सिद्ध होता है। स्थानीय ग्रामीण भी इसका उपयोग कर लाभ प्राप्त कर रहे है।
लागत 10 हजार और कमाई प्रति एकड़ एक लाख तक
कुसुम की पैदावार प्रति एकड़ लगभग एक लाख रुपये तक उत्पादन देती है, जबकि लागत महज 10 हजार रुपये तक आती है। हल्की जमीन और कम पानी में पकड़ने वाली यह फसल निमाड़ (Nimar) की साधारण भूमि के लिए वरदान साबित हो सकती है। ग्रामीण आजीविका मिशन ने इन महिलाओं को निशुल्क बीज और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराई है। बाकी का काम इन महिलाओं ने स्वयं संभाल लिया।
राजस्थान की आयुर्वेदिक कंपनियों से टाईअप
अधिकारियों ने इस फसल के उत्पाद को बेचने के लिए राजस्थान (Rajasthan) की आयुर्वेदिक कंपनियों से इसका टाईअप (Tie UP) भी करवाया है। कंपनी खेतों से ही इनका माल खरीदेगी। कुसुम के बीज का तेल खाने के काम आता है। आजीविका मिशन (Livelihood Mission) गांव में ही कुसुम के बीजों (Safflower) से तेल निकालने के लिए यूनिट लगाने के बारे में विचार कर रही है। खेती को लाभ का धंधा बनाने और महिलाओं इससे जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने की यह पहल कितना रंग लाती है यह आने वाला वक्त ही बताएगा।
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