हर्षराज गुप्ता,खरगोन। खरगोन में बाकी माता का ऐसा प्रचीन और ऐतिहासिक मंदिर है। जहां नवरात्र में सिर्फ पुरुष ही गरबा करते हैं। यहां महिलाएं मंदिर में बैठकर गरबा देखती है और गरबों को स्वर देती है। हालांकि उन पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन परंपरा के पालन के लिए सिर्फ पुरुष ही गरबा करते हैं।
मंदिर के पुजारी और बुजुर्गों का कहना है कि यह परंपरा पिछले कई वर्षो से चली आ रही है। जिसका अभी तक उसी श्रद्धा और भक्ति से निवार्हन कर रहे हैं। वर्षों से पुरानी परंपरा को अब भी श्रद्धालु उसी तरीके से निर्वाहन कर रहे हैं।
पुरूष ही क्यों करते हैं गरबा?
परम्परागत रूप से गाये जा रहे सात गरबे ही सौ-डेढ़ सौ साल से गाए जाते हैं। पुराने समय में महिलाएं घूंघट रखते हुए बड़े- बुजुर्गों से लिहाज और शर्म-हया रखती थी, इसी वजह से वे पुरुषों के साथ गरबों में शायद शामिल होने से कतराती थी। वही पुरानी परम्परा आज भी जारी है।
नवरात्रि में लगा रहता है मेला
मंदिर के प्रति सभी उम्र के भक्तों की श्रद्धा है। हिन्दू नववर्ष की प्रतिपदा से वर्ष भर यहां धार्मिक कार्यक्रम, अनुष्ठान, कथा पुराण, हवन होते रहते हैं। वर्ष की दोनों नवरात्रि में निमाड़-मालवा क्षेत्र के अनेक दर्शनार्थी आते हैं। इस मंदिर में नवरात्रि में आरती के पहले प्रतिदिन पुरुषों द्वारा सात गरबे करने की अनूठी परंपरा चली आ रही है। इन गरबों में मां के प्रति सच्ची आस्था दिखाई देती है। खास बात यह है कि यहां पुरुष श्रद्धालु डांडियों के बजाय हाथों से ताल से ताल मिलाकर झूमते हुए पूरी श्रद्धा आस्था के साथ गरबे करते हैं।
स्वपन में दिए थे दर्शन, उसके बाद कुएं से निकाली गई थी माता की पिंडी रुपी मूर्तियां
मंदिर के पूजारी रामकृष्ण भट्ट ने बताया कि बाकी माता मंदिर अद्भुत और अद्वितीय हैं। क्योंकि मंदिर विराजीत माता की पिंडियां कुंए से निकाली गई। मंदिर के स्थापक भटाम भट्ट दादा को देवी ने स्वप्न में दर्शन देकर बताया कि हम घर के बाहर झिरे में है, उसके बाद भटाम भट्ट दादा ने अपने नाती हाबया दादा से कुएं से मूर्तियो को निकाल कर पीपल की ओट से रख कर पूजन अर्चन शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि माता शीतल जल से निकली है और मंदिर में पीपल के पेड़ के नीचे चबुतरे पर विराजित है।
एक ही चबूतरे पर नौ देवियां
मंदिर में देवशक्ति स्वरूपा भगवान ब्रह्मा की शक्ति ब्राह्मी, भगवान महेश की माहेश्वरी, भगवान विष्णु की शक्ति वैष्णवी, कुमार कार्तिक की शक्ति कौमारी, भगवान इंद्र की शक्ति इंद्राणी, भगवान वराह की शक्ति वाराही और स्व प्रकाशित मां चामुण्डा के साथ ही महालक्ष्मी, सरस्वती, शीतला और बोदरी खोखरी माता मंदिर की चौपाल पर प्राण प्रतिष्ठित है। नौ माताओं के साथ भगवान महाबलेश्वर, अष्ठ भैराव और राम भक्त हनुमान एक ही चबुतरे पर विराजित हैं। किसी भी माता मंदिर में ऐसा नहीं देखा गया है। श्रद्धालु माता के चबुतरे की परिक्रमा के साथ ही सभी आराध्य की भी परिक्रमा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
सिर्फ नवरात्र में ही श्रद्धालु कर सकते है माता के कुएं के पानी से स्नान
मंदिर से जुड़े सुबोध जोशी ने बताया कि माता जिस कुंए से निकली थी। नवरात्रि के दौरान श्रद्धालु तड़के 5 बजे से कुएं के शीतल जल से स्नान करने के लिए आते हैं। श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ नवरात्रि के दौरान ही कुएं के जल से स्नान करने के लिए खोला जाता है। स्नान का दौर सुबह 10 बजे तक चलता है। उसके बाद स्नान बंद कर दिया जाता है। स्नान करने के बाद श्रद्धालु गिले कपड़ों के साथ ही माता के दर्शन कर उन्हें जल समर्पित करते हैं। इसके बाद वे उसी जल का चराणामृत के रुप में पान करते है।
मंदिर के पुजारी ने बताया कि माता के कुंए के जल से स्नान करने से कई प्रकार की बीमारियों से मुक्ति मिलती है। नवरात्र में माता के कुंए के जल से स्नान करने का भी बहुत महत्व है। नवरात्रि के दौरान रात 3 बजे से ही स्नान करने वालों की भीड़ लग जाती है। कुएं के आसपास मेले सा माहौल हो जाता है।
नवरात्रि के दौरान माता को प्रतिदिन “पान के बीड़े’ और “जुवार की धानी’ का लगाया जाता है भोग
बाकी माता मंदिर में नवरात्रि महापर्व के दौरान माता को प्रतिदिन विशेष रूप से “पान के बीड़े’ और ‘जुवार की धानी’ का भोग लगाया जाता है। प्रतिदिन दोपहर को होने वाली महाआरती के बाद लगाए जाने वाले इस पान के बीड़े का भोग उन श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है जो नवरात्रि में उपवास करते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, पान के बीड़े में उपयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियां जठराग्नि (उपवास होने से बढ़ने वाली पेट गर्मी) को शांत करता है। उपवास के दौरान ऊर्जा बनाए रखने में भी सहायक रहता है। वहीं उपवास न करने वाले श्रद्धालुओं को जुवार की धानी सहित अन्य प्रसाद दिया जाता है।
यह है पान के बीड़े में उपयोग की जाने वाली सामग्री
मंदिर के पुजारी ने बताया कि पान के बीड़े में दालचीनी, जायफल, लौंग, इलायची, जायपत्री, मिश्री, पिपरमेंट व जेष्ठिमा का उपयोग किया जाता है। मंदिर से जुड़े कैलाश खोड़े ने बताया कि दिन में पान के बीड़े व जुवार की धानी के अलावा रात 9.30 बजे होने वाली आरती के बाद अलग-अलग मिठाईयों का भोग भी लगाया जाता है और श्रद्धालुओं में वितरित किया जाता है।
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