हेमंत शर्मा, इंदौर. मध्य प्रदेश का इंदौर, जिसे कभी ‘मिलो का शहर’ कहा जाता था. अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है. इसी धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है, अनंत चतुर्दशी पर निकलने वाली भव्य झांकियों की परंपरा, जिसे आज 101 साल पूरे हो चुके हैं. यह परंपरा सबसे पहले 1923 में सेठ हुकुमचंद द्वारा हुकुमचंद मिल से शुरू की गई थी. सेठ हुकुमचंद न केवल इंदौर के प्रसिद्ध उद्योगपति थे, बल्कि उन्होंने इंदौर के सामाजिक और धार्मिक आयोजनों में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.

101 साल पुरानी परंपरा की शुरुआत

सेठ हुकुमचंद ने इंदौर की हुकुमचंद मिल से पहली झांकी निकालने की परंपरा शुरू की थी. इस झांकी को बनाने में मिल के मजदूरों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. मजदूरों ने अपना एक दिन का वेतन झांकी निर्माण के लिए दान किया. यह परंपरा इतनी मजबूत थी कि हुकुमचंद मिल के बंद होने के बाद भी, मिल मजदूरों ने इस परंपरा को जीवित रखा.

इंदौर की अन्य मिलों ने भी निभाई भूमिका

हुकुमचंद मिल की झांकियों की परंपरा से प्रेरित होकर, इंदौर की अन्य प्रमुख मिलें जैसे मालवा मिल, स्वदेशी मिल, राजकुमार मिल, और कल्याण मिल ने भी अनंत चतुर्दशी पर झांकियों का निर्माण शुरू किया. इन मिलों के मजदूर और कलाकार आज भी इस परंपरा को निभा रहे हैं.हालांकि, इन मिलों के बंद होने के बावजूद, मिल मजदूर झांकियों के निर्माण के लिए नगर निगम और अन्य दानदाताओं से आर्थिक सहायता लेकर इस परंपरा को बनाए रखे हुए हैं.

चल समारोह का भव्य आयोजन

अनंत चतुर्दशी पर निकलने वाली इन झांकियों का भव्य चल समारोह इंदौर के जेल रोड से शुरू होता है. इस समारोह में सबसे पहले खजराना गणेश मंदिर की झांकी होती है, जिसमें खजराना गणेश भगवान की प्रतिमा विराजित होती है. जिला प्रशासन द्वारा विधिवत पूजन के बाद इस चल समारोह की शुरुआत होती है, जो राजवाड़ा और मुंबई बाजार होते हुए पूरे शहर से गुजरता है. झांकियों का समापन सुबह 4 से 6 बजे के बीच होता है, और इस दौरान सबसे सुंदर झांकी को पुरस्कृत किया जाता है. झांकियों की तीन श्रेणियों में विभाजन कर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है.

मिल कलाकारों की मेहनत और चुनौतियां

इन झांकियों के निर्माण में कई वर्षों से जुड़े कलाकार आज भी अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. राजकुमार मिल के प्रवीण, जो पिछले 40 सालों से झांकियां बना रहे हैं, जिनका कहना है कि उन्होंने मुंबई, आंध्र प्रदेश और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में झांकियां बनाई थीं, लेकिन परिवार के आग्रह पर वह इंदौर लौट आए और अब यहीं अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. प्रवीण की बनाई झांकियां सात बार पहले स्थान पर आ चुकी हैं. इस साल राजकुमार मिल में बच्चों के लिए विशेष मोटू-पतलू की झांकी बनाई गई है, जो आकर्षण का केंद्र बनने वाली है. हालांकि, कलाकारों के मुताबिक, झांकियों के निर्माण के लिए मिलने वाली आर्थिक मदद अक्सर पर्याप्त नहीं होती. नगर निगम और अन्य स्रोतों से मिलने वाले धन से उन्हें अपनी कला को जीवित रखना मुश्किल होता है, लेकिन मिलों के पुराने कलाकार फिर भी अपनी कला के प्रति समर्पित हैं और आधी मजदूरी पर भी काम करने को तैयार रहते हैं.

सुरक्षा के विशेष इंतजाम

झांकियों का यह चल समारोह लाखों लोगों को आकर्षित करता है. इंदौर की सड़कों पर शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक हजारों लोग इन झांकियों का आनंद लेने आते हैं. इस दौरान सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं. पुलिस बल की तैनाती के साथ-साथ पूरे मार्ग पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाते हैं, ताकि किसी भी प्रकार की अवांछनीय घटना पर त्वरित कार्रवाई की जा सके.

सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक

अनंत चतुर्दशी पर निकलने वाली ये झांकियां न केवल धार्मिक आयोजन हैं, बल्कि ये इंदौर की सांस्कृतिक धरोहर और मजदूरों की एकजुटता का प्रतीक भी हैं. सेठ हुकुमचंद की शुरू की गई यह परंपरा आज भी उसी उत्साह और भव्यता के साथ निभाई जाती है. इंदौर के लोग हर साल इस अनोखी परंपरा का हिस्सा बनते हैं और इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवित रखते हैं. इंदौर की झांकियों की यह परंपरा समय के साथ और भी भव्य और आकर्षक बनती जा रही है. सेठ हुकुमचंद की इस विरासत को इंदौर के लोग बड़े गर्व के साथ आगे बढ़ा रहे हैं. यह परंपरा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह इंदौर की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है.

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