अजय नीमा, उज्जैन। धर्म और आस्था की राजधानी मानी जाने वाली उज्जैन नगरी में गंगा दशहरे के पावन पर्व पर सिंहस्थ कुंभ जैसा नजारा देखने को मिला। नीलगंगा घाट पर गुरुवार सुबह हजारों साधु-संतों, विशेषकर नागा साधुओं की उपस्थिति ने पूरे माहौल को अध्यात्म और सनातन संस्कृति की ऊर्जा से भर दिया। श्रद्धालुओं ने साधु-संतों का फूल बरसाकर स्वागत किया, मानो सिंहस्थ का दृश्य एक बार फिर जीवंत हो उठा हो।

गौरतलब है कि उज्जैन में आगामी 2028 में सिंहस्थ कुंभ मेला आयोजित होगा। लेकिन उससे पहले ही इस वर्ष गंगा दशहरे पर जिस तरह का आध्यात्मिक समागम और साधु-संतों की पेशवाई देखने को मिली, उसने भावी कुंभ की आहट दे दी।

पेशवाई की झलक ने किया भावविभोर

गंगा दशहरे के अवसर पर श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा द्वारा नीलगंगा घाट पर पारंपरिक तरीके से मां गंगा का पूजन किया गया। इस दौरान साधु-संतों का भव्य गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकला, जो नीलगंगा पड़ाव स्थल से चलकर नीलगंगा सरोवर तक गया। यह पेशवाई वैसी ही थी जैसी सिंहस्थ के दौरान देखने को मिलती है।

नीलगंगा सरोवर का पौराणिक महत्व

नीलगंगा सरोवर का वर्णन स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में मिलता है। मान्यता है कि इसी पवित्र सरोवर में मां गंगा ने अवतरण किया था। इसलिए यहां गंगा दशहरे के दिन साधु-संत स्नान कर विशेष पूजन-अनुष्ठान करते हैं। श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के मुख्य संरक्षक और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि महाराज की प्रेरणा से यह आयोजन वर्षों से परंपरागत रूप से आयोजित होता आ रहा है।

महाकाल की नगरी में जगी श्रद्धा की अलख

गंगा दशहरे पर महाकाल की नगरी में उमड़ी भक्तों की अपार भीड़ ने यह प्रमाणित कर दिया कि उज्जैन न केवल तांत्रिक शक्ति का केंद्र है, बल्कि यह सनातन परंपरा की जीवित धरोहर भी है। नागा साधुओं की उपस्थिति और साधु-संतों की संयमित शोभायात्रा ने श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक अनुभूति कराई।

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